अमलेंदु भूषण खां/ चुनाव आयोग ने पूर्वोत्तर के तीन राज्यों त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में विधानसभा चुनावों का ऐलान कर दिया. इन तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव दो चरणों में संपन्न होंगे. पहले चरण में 18 फरवरी को त्रिपुरा में वोटिंग होगी. दूसरे चरण में 27 फरवरी को मेघालय और नागालैंड में वोट पड़ेंगे. 3 मार्च को तीनों राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के लिए काउंटिंग होगी और नतीजों की घोषणा की जाएगी.
पूर्वोत्तर राज्यों में आजादी मिलने के बाद से दशकों तक कांग्रेस का दबदबा रहा है. ये बात अलग है कि कांग्रेस के दबदबे को कम करने के लिए क्षेत्रीय दलों ने कमर कसी. लेकिन सुविधा के मुताबिक कभी कांग्रेस के साथ गए तो कभी विरोध भी करते रहे. इन सबके बीच भाजपा इन इलाकों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में नाकाम रही.लेकिन केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनते ही पूर्वोत्तर के कई राज्यों में कमल खिल गया. तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा अध्यक्ष काफी पहले से ही दौरे कर रहे हैं.
त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड, कुछ ऐसी बन रही है सियासी तस्वीर
2014 के लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी ने नॉर्थ ईस्ट में भी अपनी पकड़ मजबूत बनानी शुरू कर दी है. पहले असम और बाद में मणिपुर की सत्ता में आने के बाद बीजेपी की निगाह अब त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के विधानसभा चुनावों पर है.
त्रिपुरा में लेफ्ट बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती: बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती त्रिपुरा में ही है. पिछले दो दशक से माणिक सरकार के नेतृत्व में सीपीएम यहां की सत्ता पर काबिज है. 60 सीटों वाले त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बीजेपी अपने पूरे दम-खम से उतर रही है. 2013 के विधानसभा चुनावों में यहां सीपीएम को 49 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस के खाते में 10 सीटें आई थीं. सीपीएम के उभार ने त्रिपुरा में कांग्रेस को हाशिए पर धकेल दिया है. हालांकि इस बार राजनीति थोड़ी बदली है. ऐसा पहली बार देखने को मिल रहा है कि किसी राज्य में कम्युनिस्ट पार्टी और बीजेपी में सीधी टक्कर हो रही है.
बीजेपी को इस बार मोदी के अलावा योगी के नाम पर भी भरोसा है. दरअसल यहां योगी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है. बीजेपी के एक नेता के मुताबिक त्रिपुरा में करीब 35 पर्सेंट बंगाली नाथ संप्रदाय से हैं. यह वही संप्रदाय है, जिसे यूपी सीएम योगी ने अपना लिया था. इसलिए योगी के नाम को लेकर यहां लोग काफी उत्साहित हैं. त्रिपुरा में बीजेपी की निगाह हिंदू वोटबैंक पर है. बीजेपी ने पहले ही असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्व सरमा को त्रिपुरा चुनाव के लिए प्रभारी बनाने का ऐलान कर दिया है.
नगालैंड विधानसभा में भी 60 सीटें हैं. यहां नगा पीपल्स फ्रंट (NPF) बीजेपी के समर्थन से अपनी सरकार चला रहा है. बीजेपी के सामने चुनौती है कि नागालैंड में एनडीए की सत्ता बनी रहे. बिहार और केंद्र में बीजेपी की सहयोगी जेडीयू ने नगालैंड में अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है. फिलहाल नगालैंड के सत्तारूढ़ गठबंधन में जेडीयू भी शामिल है.
बीजेपी ने नगालैंड के लिए गृह राज्यमंत्री किरेन रिजिजू को चुनाव प्रभारी बनाया है. बीजेपी चाहेगी कि इस बार न केवल उसके समर्थन वाली सरकार बचे बल्कि खुद पार्टी की भी सीटें बढ़ें. नगा समस्या को लेकर नागालैंड में विधानसभा चुनावों को टालने की मांग की जा रही है. चुनाव आयोग ने असम राइफल्स से 1643 किमी लंबी भारत-म्यांमार सीमा पर गश्त बढ़ाने को कहा है. ऐसी आशंकाएं हैं कि सीमापार से सक्रिय उग्रवादी नगालैंड के आगामी चुनावों में हिंसा कर सकते हैं.
नागालैंड भी अलग नहीं
नागालैंड में पिछली बार भाजपा ने 11 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे जिनमें से 8 उम्मीदवार जमानत नहीं बचा सके. 2008 में भाजपा द्वारा मैदान में उतारे गए 23 उम्मीदवारों में से 2 ही चुनाव जीत सके जबकि 15 की जमानत जब्त हो गई. 2003 में पार्टी ने 38 उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिनमें से 7 उम्मीदवार जीते और 28 की जमानत जब्त हो गई. 1993 में भाजपा के 6 उम्मीदवार थे, जिनमें से किसी की भी जमानत नहीं बची.
नागालैंड विधानसभा में वर्तमान स्थिति
एनपीएफ – 45
बीजेपी – 4
जेडीयू – 1
एनसीपी – 1
निर्दलीय – 8
खाली – 1
नागालैंड में भाजपा के लिए मौका
नागालैंड में इसी साल जुलाई में नागा पीपुल्स फ्रंट में हुए अंदरूनी झगड़े के बाद सीएम शुरोजली लैजिस्ट को सीएम पद छोड़ना पड़ा था, क्योंकि वह सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाए थे. उनके पद छोड़ने के बाद नागा पीपुल्स फ्रंट के ही दूसरे नेता टीआर जेलियांग को सीएम पद की शपथ दिलाई गई. उन्होंने विधानसभा में बहुमत भी साबित कर दिया. जेलियांग को भाजपा का समर्थन था और वह भाजपा की मदद से सरकार चला रहे हैं. राज्य में हुई इस सियासी उठापटक के बाद भाजपा के लिए नागालैंड में मौका बन सकता है. अगर भाजपा नागालैंड को नहीं जीत पाती है तो उस हालात में भी गंवाने के लिए कुछ भी नहीं है. भाजपा 2003 को छोड़कर कभी भी राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करवा सकी है.
कांग्रेस की कसमकस: 2014 में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी के उभार ने कांग्रेस को देश की राजनीति में काफी सिमटा दिया है. फिलहाल केवल पांच राज्यों में कांग्रेस की सरकार है. इसमें एक मेघालय भी है. कांग्रेस की असल चिंता इस बार किसी भी तरह मेघालय में सरकार को बचाने की है. हालांकि बीजेपी ने यहां भी कांग्रेस के गढ़ में सेंध लगा दी है. दिसंबर में कांग्रेस के एक सहित 4 विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया है.
मेघालय
इस महीने भी कांग्रेस के 5 सहित आठ विधायक मेघालय में एनडीए की सहयोगी नैशनल पीपल्स पार्टी (एनपीपी) में शामिल हुए हैं. एनपीपी का नेतृत्व पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी ए संगमा के बेटे कॉनराड के संगमा कर रहे हैं. एनपीपी बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन नार्थ-ईस्ट डेमोक्रैटिक अलायंस (एनईडीए) में शामिल है . यह अलायंस 2016 में बना था. 2013 में मेघालय विधानसभा चुनावों की 60 सीटों में से कांग्रेस को 29 सीटें मिलीं थीं.
मेघालय में साल 2013 में हुए पिछले चुनाव में कांग्रेस ने 29 सीटों के साथ जीत दर्ज की थी. कांग्रेस के अलावा सीटों के आधार पर दूसरे नंबर पर निर्दलीय उम्मीदवार रहे. निर्दलियों ने 13 सीटों पर कब्जा जमाया था. यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी (मेघालय) को कुल 8 और हिल स्टेट पिपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को सिर्फ 4 सीटों से संतोष करना पड़ा था. एनसीपी ने भी 2 सीटों के साथ राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी, जबकि भाजपा यहां खाता भी नहीं खोल पायी थी. साल 2008 के चुनाव में भी कांग्रेस ने 25 सीटें हासिल की थीं, जबकि एनसीपी को राज्य में 14 सीटें मिली थीं. यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी को 11 और भाजपा सिर्फ 1 सीट से संतोष करना पड़ा था.
मेघालय विधानसभा की मौजूदा तस्वीर
कांग्रेस – 24
यूडीपी – 7
एचएसपीडीपी – 4
बीजेपी – 2
एनसीपी – 2
एनपीपी – 2
एनईएसडीपी – 1
निर्दलीय – 9
9 जगहें खाली हैं.
त्रिपुरा का इतिहास
2013 के चुनाव में बीजेपी ने 50 उम्मीदवार मैदान में उतारे, जिनमें से 49 की जमानत जब्त हो गई थी. 2008 में भी पार्टी के 49 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई थी. इसी तरह 2003 में बीजेपी के 21 उम्मीदवार अपनी जमानत नहीं बचा सके थे. 1998 में पार्टी ने पहली बार राज्य की सारी 60 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन पार्टी के 58 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
त्रिपुरा के भाजपा अध्यक्ष बिप्लव कुमार देव कहते हैं कि प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत 3.33 लाख महिलाओं को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन मुहैया कराए गए हैं. एक परिवार में औसतन चार सदस्यों का हिसाब रखें तो राज्य के 25 लाख में से आधे वोटरों को इसका लाभ मिला है. उनका कहना है कि राज्य के लोग भाजपा के पक्ष में हैं और अगले चुनाव के बाद पार्टी राज्य में सरकार बनाएगी.
त्रिपुरा विधानसभा में दलों की वर्तमान स्थिति
सीपीएम गठबंधन – 51
बीजेपी – 7
कांग्रेस – 2
भाजपा नेताओं का दावा है कि राज्य में महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामलों में काफी तेजी आई है और यहां बेरोजगारी की दर देश में सबसे ज्यादा (20 फीसदी) है. देब दावा करते हैं कि राज्य की 67 फीसद आबादी गरीबी रेखा से नीचे रह रही है. बीते विधानसभा चुनाव में बीजेपी को एक भी सीट नहीं मिली थी.
क्या कर सकते हैं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ
योगी आदित्यनाथ भाजपा के लिए गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में स्टार प्रचारकों में से एक रहे हैं. लेकिन सुदूर पूर्वोत्तर के छोटे से राज्य त्रिपुरा में भी वे भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभा सकते हैं. त्रिपुरा में गोरक्षनाथ के दो मंदिर हैं, एक अगरतला में और दूसरा धर्मनगर में. कुल 35 लाख की आबादी वाले इस राज्य में नाथ संप्रदाय से जुड़े लोगों की संख्या 12-13 लाख है. यानी एक तिहाई आबादी नाथ संप्रदाय को मानती है.
सबसे बड़ी बात यह है कि योगी आदित्यनाथ पूरे देश में नाथ संप्रदाय के प्रमुख हैं. योगी आदित्यनाथ के गुरु स्वर्गीय योगी अद्वैतनाथ दो बार त्रिपुरा आ चुके हैं. अगरतला में गोरक्षनाथ मंदिर के सचिव निखिल देवनाथ कहते हैं कि दोनों बार योगी अद्वैतनाथ उनके घर पर ही रुके थे. निखिल देवनाथ चाहते हैं कि योगी जब चुनाव प्रचार के लिए त्रिपुरा आएं तो गोरक्षनाथ मंदिर जरूर आएं.
त्रिपुरा में गोरक्षनाथ संप्रदाय को मानने वाले ओबीसी के कोटे में आते हैं. लेकिन राज्य में उन्हें ओबीसी आरक्षण का लाभ नहीं मिल रहा है. माकपा सरकार एससी और एसएसटी को मिल रहे 48 फीसदी आरक्षण के कारण ओबीसी को आरक्षण नहीं दे पाने की मजबूरी बताती रही है. निखिल देवनाथ चाहते हैं कि यदि योगी आदित्यनाथ नाथ संप्रदाय को आरक्षण दिलाने का ठोस भरोसा दिला दें, तो फिर नाथ का एक-एक वोट भाजपा को जाएगा. लेकिन ओएनजीसी में इंजीनियर और त्रिपुरा राज्य नाथ कल्याण समिति के पूर्व सचिव डीएन नाथ कहते हैं कि सिर्फ योगी आदित्यनाथ के आने से बहुत फर्क पड़ जाएगा. उनका कहना है कि योगी आदित्यनाथ उनके गुरूभाई हैं और उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं यह नाथों के लिए गर्व की बात है.
मंत्रालय के जरिए राजनीति साधने की कोशिश
नरेंद्र मोदी के पीएम बनने के बाद 2014 से ही पूर्वोत्तर के राज्य राजनीतिक लक्ष्य के लिहाज से भाजपा के फोकस वाले राज्य रहे हैं. इन्हीं राज्यों के विकास को आधार बनाकर पीएम ने अपने कैबिनेट में पूर्वोत्तर राज्यों के विकास संबंधी मंत्रालय भी बनाया है. इसके अलावा हाल ही में केंद्र सरकार ने इन राज्यों के विकास के लिए 90 हजार करोड़ का पैकेज भी जारी किया है.