जनजीवन ब्यूरो /नई दिल्ली । साल 2006 में सोनिया गांधी के खिलाफ ‘लाभ के पद’ का मामला सामने आया था। सोनिया गांधी रायबरेली से सांसद थीं साथ हीं वह राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरमैन भी थीं, जिसे ‘लाभ का पद’ करार दिया गया था। इसकी वजह से सोनिया गांधी को लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा। जिसके बाद उन्होंने रायबरेली से दोबारा चुनाव लड़ा था।
इसी तरह साल 2006 में ही जया बच्चन पर भी ‘लाभ के पद’ का मामला बन गया था। जया राज्यसभा सांसद थीं। इसके साथ ही वह उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम की चेयरमैन भी थीं, जिसे ‘लाभ का पद’ करार दिया गया और चुनाव आयोग्य ने जया बच्चन को अयोग्य ठहराया था। जया बच्चन ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गईं लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली। इसकी वजह से जया बच्चन की संसद सदस्यता रद्द हो गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि अगर किसी सांसद या विधायक ने ‘लाभ का पद’ लिया है तो उसकी सदस्यता निरस्त हो जाएगी चाहे उसने वेतन या दूसरे भत्ते लिए हों या नहीं।
‘लाभ का पद’ क्या है
- संविधान के अनुच्छेद 102 (1) A के तहत सांसद या विधायक ऐसे किसी अन्य पद पर नहीं हो सकते जहां वेतन, भत्ते या अन्य दूसरी तरह के फायदे मिलते हों।
- इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 191 (1) (A) और जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 9 (A) के तहत भी सांसदों और विधायकों को अन्य पद लेने से रोकने का प्रावधान है।