जनजीवन ब्यूरो / पेइचिंग । दावोस में विश्व आर्थिक मंच से दिए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण की दुनियाभर में चर्चा हो रही है। खास बात यह है कि भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी चीन ने भी अप्रत्याशित रूप से मोदी के भाषण का स्वागत करते हुए तारीफ की है। मोदी ने अपने संबोधन में संरक्षणवाद को आतंकवाद की तरह ही खतरनाक बताया था। इसके साथ ही चीन ने ग्लोबलाइजेशन की प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए भारत के साथ सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया है। मोदी ने अपने संबोधन में दुनिया के समक्ष आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों पर चिंता जताई थी।
चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुवा चुनयिंग ने मीडिया से बातचीत में कहा, ‘मैंने देखा कि प्रधानमंत्री मोदी ने संरक्षणवाद के खिलाफ बोला है जिससे पता चलता है कि ग्लोबलाइजेशन समय का रुख है और यह सभी देशों के हितों को पूरा करता है। संरक्षणवाद के खिलाफ लड़ने और ग्लोबलाइजेशन का समर्थन करने की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि चीन ग्लोबलाइजेशन की प्रकिया को और मजबूत करने के लिए भारत और अन्य देशों के साथ काम करना चाहता है।
चीन के इस हैरान करने वाले बयान से पहले आधिकारिक मीडिया ने भी विश्व आर्थिक मंच में मोदी के संबोधन की सराहना की थी। ग्लोबल टाइम्स ने मोदी के संबोधन की तस्वीर पहले पेज पर छापी की है। जब हुवा से पूछा गया कि क्या संरक्षणवाद के खिलाफ भारत-चीन का समान रुख आपसी संबंधों को सुधारने में मदद करेगा हुआ ने कहा, ‘हमारा रुख साफ है। भारत चीन का बड़ा पड़ोसी है। दो बड़े विकासशील देश और दो करीबी पड़ोसी होने के नाते जाहिर है हम उम्मीद करते हैं कि हम द्विपक्षी संबंधों में स्थिरता के साथ विकास करें। यह दोनों देशों के हित में है।’
गौरतलब है कि पीएम मोदी ने अपने संबोधन में इशारों ही इशारों में अमेरिका पर निशाना साधते हुए कहा था कि बहुत से देश आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं । उन्होंने कहा था कि दुनिया के लिए अपने दरवाजे बंद करने की नीति का नया चलन आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन से कम खतरनाक नहीं है।
बता दें कि चीन ग्लोबलाइजेशन के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक है। ग्लोबलाइजेशन के सहारे ही चीन ने पूरी दुनिया में अपना डंका बजाया है। उसकी जीडीपी ग्रोथ रेट कई सालों से दहाई अंकों में है और वह दुनिया के सभी हिस्सों में अपना सामान निर्यात करता है। चीन डॉनल्ड ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के भी खिलाफ रहा है। पिछले साल दावोस में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के भाषण का मूल विषय यही था।