अमलेंदु भूषण खां / गिरिडीह । पेड़ पौधे भी हंसते और रोते हैं का राज खोलने वाले महान वैज्ञानिक सर जगदीश चंद्र बोस के मकान की तिजोरी में लगे ताले का राज आजतक नहीं खुल सका है। बोस इसी मकान में अंतिम सांस ली थी। जेसी बोस के मकान को अब विज्ञान भवन बना दिया गया है। इस तिजोरी को दो बार खोलने का कार्यक्रम जिला प्रशासन ने बनाया, लेकिन दोनों बार मिसाइल मैन और देश के प्रसिद्ध वैज्ञानिक व तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद नहीं आ सके।
पूरे देश और दुनिया के लोग आज भी जानने को उत्सुक हैं कि आखिर तिजोरी में बोस की क्या निशानियां होंगी। क्या शोध होंगे। कोई वैसी जानकारी भी हो सकती है, जिससे दुनिया को एक नई दिशा मिले। बावजूद तंत्र अभी तक इस ओर आंख मूंदे है।
कई शोध का गवाह रहा है यह मकान
गिरिडीह से बहुत अधिक लगाव रखनेवाले आचार्य बोस ने इसी भवन में रहकर अपने नए आविष्कारों और खोज को मूर्त रूप दिया। इस भवन से उनकी कई यादें जुड़ी हैं। उनकी कई निशानियां आज भी यहां मौजूद हैं। जिन्हें सहेजने की पहल नहीं हो रही है। प्रशासन का ध्यान कई बार इस ओर आकृष्ट कराया जा चुका है। विश्व की महान हस्तियों में से एक बोस का गिरिडीह में निवास होना सिर्फ गिरिडीह नहीं, पूरे झारखंड के लिए गर्व की बात है।
बांग्लादेश में हुआ था आचार्य बोस का जन्म
महान वैज्ञानिक आचार्य सर जगदीश चंद्र बोस ने जीव विज्ञान और भौतिकी में कई आविष्कार किए थे। 30 नवंबर 1858 को बांग्लादेश में उनका जन्म हुआ था। वे अक्सर स्वास्थ्य लाभ के लिए गिरिडीह आते थे। यहां वे अपने एक रिश्तेदार के घर ठहरते थे। शोध कार्य से पारसनाथ सहित जिले के विभिन्न क्षेत्रों का भ्रमण करने के बाद उनका विश्राम स्थल यही आवास होता था। इतना ही नहीं 23 नवंबर 1932 को इसी आवास में उन्होंने अंतिम सांस भी ली थी।
आवास में बन गया अब विज्ञान भवन
जिस मकान में बोस रहते थे, उसे अब विज्ञान भवन के नाम से जाना जाता है। उनकी यादों और कृतियों को सहेजने के लिए उस मकान को विज्ञान भवन के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है। इसे नाम दिया गया है जेसी बोस मेमोरियल जिला विज्ञान केंद्र। इसका उद्घाटन एकीकृत बिहार के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. एआर किदवई ने 28 फरवरी 1997 को किया था।
भवन में हैं एक से एक यंत्र
भवन में एक ओर सूक्ष्म तरंग डिटेक्टर की प्रतिकृति का मॉडल है, तो दूसरी तरफ केस्कोग्राफ की प्रतिकृति का मॉडल। इन दोनों का आविष्कार बोस ने ही किया था। बोस की खोज केस्कोग्राफ वह यंत्र है, जिससे पता चला था कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है। यह पौधों में होनेवाली वृद्धि तथा उद्दीपन की प्रतिक्रियाओं को मापने का यंत्र है। युवा वर्ग खासकर विद्यार्थियों के लिए यह काफी महत्वपूर्ण जगह है। वे यहां विज्ञान और आचार्य बोस के आविष्कारों से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
तस्वीरें बता रहीं महान वैज्ञानिक की कहानी
भवन में बोस से जुड़ीं कई तस्वीरें और दस्तावेज भी हैं। जो उनके जीवन के बारे में बताती हैं। बाल्यावस्था, युवावस्था के साथ-साथ शोध और अनुसंधान के दौरान उनकी विभिन्न गतिविधियों से संबंधित तस्वीरें हैं। माता-पिता सहित परिवार के अन्य सदस्यों और उनके दोस्तों की तस्वीरें भी यहां मौजूद हैं। तस्वीर ही बताती हैं कि उनके निधन के बाद उनके अंतिम दर्शन को किस कदर भीड़ उमड़ पड़ी थी। बोस को मिले विभिन्न तरह के सम्मान और उनके आविष्कारों की मान्यताओं से संबंधित दस्तावेज भी इस भवन में मौजूद हैं।
भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बोस ने न केवल भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में बल्कि वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया था। बोस हमेशा बताया करते थे कि इंसानों की तरह पेड़ और पौधों में भी जीवन होता है। वे भी हमारी तरह पीड़ा का अनुभव करते है। वह इसे सिद्ध करने के लिए दिन रात प्रयोग में जुटे हुए थे।आखिर वह दिन भी आ गया जब उन्हें लोगो के सामने इस बात को सिद्ध करना था | उस दिन उनका प्रयोग देखने के लिए दुनिया भर के वैज्ञानिक और लोग एकत्रित थे।
जब बोस के खिलाफ रची गई साजिश
बोस ने एक नजर भीड़ पर डाली जो बेसब्री से उनके प्रयोग की प्रतीक्षा कर रही थी और दूसरी नजर उस पौधे पर जिसके माध्यम से वह प्रयोग करने वाले थे। उन्होंने इंजेक्शन द्वारा उस पौधे को जहर दिया।बसु के प्रयोग के अनुरूप जहरीले इंजेक्शन से पौधे को मुरझाना चाहिए था लेकिन कुछ समय बाद भी जब पौधा नही मुरझाया तो वहां मौजूद लोग उनका मजाक उड़ाने लगे।
जब साजिश का हुआ पर्दाफाश
बसु के लिए यह अत्यंत कठिन घड़ी थी।वह अपने प्रयोग के प्रति पुरी तरह आश्वस्त थे। उन्हें लगा कि यदि जहरवाले इंजेक्शन से पौधे को नुकसान नही पहुचां तो वह उन्हें भी नुकसान हो सकता है। हो सकता है कि शीशी में जहर की बजाय कुछ ओर हो। यह सोचकर बोस ने जहर की शीशी उठाई और अपने मुंह से लगा दिया। उन्हें ऐसा करते देख सभी चिल्लाने लगे और वहा भगदड़ मच गयी लेकिन बोस को वह जहर पीने पर भी कुछ नही हुआ।
यह देखकर एक व्यक्ति वहां आया और उन्हें शांत करता हुआ बोला कि इसी ने जहर वाली शीशी बदलकर उसी रंग के पानी की शीशी रख दी थी ताकि यह प्रयोग सही सिद्ध न हो पाए। इसके बाद बोस ने विषवाली शीशी से पौधे को दोबारा इंजेक्शन दिया और देखते ही देखते कुछ ही क्षणों में पौधा मुरझा गया। इस तरह यह प्रयोग सफल रहा।