नई दिल्ली । लोकसभा चुनाव वक्त से पहले कराए जाने की अटकलों के बीच माना जा रहा था कि मोदी सरकार का आखिरी बजट ‘लोकलुभावन’ होगा जिसमें सभी सभी वर्गों का पूरा ख्याल रखा जाएगा, लेकिन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जब अपना पिटारा खोला तो मिडिल क्लास और शहरों में बसने वाले नौकरीपेशा लोगों को मायूसी ही हाथ लगी। सरकार ने कुछ रियायतें दीं भी, लेकिन दूसरे रास्ते से वापस भी ले लीं। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर मोदी सरकार ने अपने आखिरी साल में मिडिल क्लास को निराश करने का ‘बड़ा रिस्क’ क्यों लिया? क्या गरीबों, दलितों और किसानों का ख्याल रखने के चक्कर में सरकार ने जानबूझकर मिडिल क्लास की ‘अनदेखी’ की? इन सवालों के जवाब हाल में कुछ राज्यों में हुए निकाय चुनाव और गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों में छिपे हुए हैं।
दरअसल, शहरों में रहने वाले मिडिल क्लास बीजेपी का वोटर माना जाता है और इस वर्ग में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जबरदस्त लोकप्रियता आज भी बरकरार है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो 2014 के बाद हुए कई विधानसभा चुनाव और शहरी निकाय चुनावों में इस बात की तस्दीक हुई है कि मोदी का जादू शहरों में अब भी कायम है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि कांग्रेस सहित किसी भी विपक्षी दल में मोदी के कद का कोई नेता लोगों को नजर नहीं आता। ऐसे में बेहतर विकल्प न होने की वजह से भी मिडिल क्लास और शहरी वर्ग मोदी से जुड़ा हुआ है। गुजरात विधानसभा चुनाव में कथित नाराजगी के बावजूद जिस तरह शहरी वोटरों ने बीजेपी का साथ दिया, वह इस बात की पुष्टि करता है कि शहरों में रहने वाले मिडिल क्लास को अब भी मोदी से उम्मीद है। इसके अलावा यूपी के शहरी निकाय चुनाव में भी बीजेपी को शहरों में काफी समर्थन मिला। माना जा रहा है कि बीजेपी ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए मिडिल क्लास की अनदेखी करना का ‘जोखिम’ उठाया है।
किसानों पर मेहरबानी क्यों?
बताया जा रहा है कि गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजों की समीक्षा के दौरान बीजेपी ने पाया कि ग्रामीण इलाकों में पार्टी के खिलाफ नाराजगी बढ़ रही है। सिर्फ गुजरात ही नहीं, उत्तर से लेकर दक्षिण तक कई अन्य राज्यों में भी किसान सरकार से नाखुश बताए जाते हैं। फसलों का सही दाम न मिलने, कर्ज और खुदकुशी सहित कई अन्य परेशानियां झेल रहे किसान कई बार सरकार के खिलाफ आंदोलन भी कर चुके हैं। ऐसे में सरकार पर उनके लिए ‘कुछ बड़ा’ करने का दवाब था। यही वजह रही कि सरकार ने आगामी खरीद की फसलों को उत्पादन लागत से कम-से-कम डेढ़ गुना कीमत पर लेने का फैसला लिया है। टमाटर, आलू और प्याज जैसे सालभर प्रयोग में आने वाले खाद्य वस्तुओं के लिए ‘ऑपरेशन फ्लड’ की तर्ज पर ‘ऑपरेशन ग्रीन’ लॉन्च करने की घोषणा की गई है। इसके लिए सरकार ने 500 करोड़ रुपये का आवंटन किया है। ऐसे पौधे जिनका दवाइयों में इस्तेमाल होता हो उनका भी सरकार उत्पादन बढ़ाने के लिए बढ़ावा देगी। जैविक खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। क्रेडिड कार्ड मछुआरों और पशुपालकों को भी मिलेगा। 42 मेगा फूड पार्क बनेंगे। मछली पालन और पशुपालन के लिए 10 हजार करोड़ रुपये रखे जा रहे हैं। बांस की पैदावार बढ़ाने के लिए भी सरकार ने 1200 करोड़ का फंड मुहैया कराने की घोषणा की है। माना जा रहा कि पूर्वोत्तर के राज्यों में इस फैसले का बड़ा असर होगा।
गरीबों पर बड़ा दांव इसलिए?
मोदी सरकार के अबतक के कार्यकाल में गरीबों के लिए जनधन और उज्ज्वला जैसी कुछ बड़ी योजनाएं जरूर लॉन्च की गईं, लेकिन सरकार अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले गरीबों के लिए एक और बड़ी योजना लाना चाहती थी। इसकी तैयारी सरकार पिछले काफी समय से कर रही थी। इसी के तहत सरकार ने 10 करोड़ गरीब परिवारों के लिए 5 लाख रुपये की स्वास्थ्य बीमा योजना का ऐलान कर बड़ा दांव खेला है। बीजेपी को उम्मीद है कि सरकार का यह फैसला अगले लोकसभा चुनाव में पार्टी को बड़ा फायदा पहुंचाएगी क्योंकि इसके दायरे में बड़े पैमाने पर एससी-एसटी के वोटर्स आएंगे।
वक्त से पहले चुनाव कराने का संकेत?
वित्त मंत्री अरुण जेटली का बजट भाषण इस बात का गहरा संकेत दे गया कि इन तमाम घोषणाओं के बूते सरकार तय वक्त से पहले लोकसभा चुनाव करा सकती है। प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ कराए जाने की वकालत की थी, जिसे इसी से जुड़ा इशारा माना गया था। बजट में सरकार ने जिस तरह गांव, गरीब, किसानों और दलितों के लिए योजनाओं का ऐलान किया है, उसे देखते हुए माना जा रहा है कि मोदी सरकार वक्त से पहले चुनाव करा सकती है।