मनोज कुमार / नई दिल्ली । उत्तर प्रदेश के गोरखपुर व फुलपुर लोकसभा क्षेत्र में उपचुनाव को लेकर सत्तापक्ष बीजेपी का पसीना छूट रहा है। क्योंकि राजस्थान के अलवर, अजमेर संसदीय उपचुनाव और मांडलगढ़ विधानसभा उपचुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा ये बात अलग है कि पश्चिम बंगाल से राहत की खबर ये थी कि भाजपा दूसरे पायदान पर पहुंची। राजस्थान उपचुनाव में मिली जीत के बाद कांग्रेस ने कहा कि ये देश का मूड है जो राजस्थान में नजर आया है। ऐसे में सवाल है कि देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में होने वाले उपचुनाव में गोरखपुर, फूलपुर और कैराना (सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद) में मतदाताओं का मूड क्या रहता है।
केंद्र व राज्य दोनों में ही भाजपा काबिज है। फिर भी भाजपा चुनाव में जाने से कतरा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे के बाद गोरखपुर और फूलपुर में चुनाव होना है। अब सांसद हुकुम सिंह के निधन के बाद कैराना संसदीय क्षेत्र में भी उपचुनाव की नई चुनौती खड़ी हो गई है। कैराना में इस समय हमदर्दी की लहर है। भाजपा इस मौके को चूकना नहीं चाहेगी।
गोरखपुर और फूलपुर की सीट रिक्त घोषित हो गई है और निर्वाचन आयोग किसी भी दिन इसके चुनाव का कार्यक्रम घोषित कर सकता है। योगी को सीएम बने काफी समय हो गया है लेकिन उपचुनाव करवाने से कतरा रहे हैं। क्योंकि उपचुनाव में अगर भाजपा की हार होती है तो पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम योगी दोनों की नीतियों पर सवाल उठने लगेंगे।
माना जा रहा है कि आयोग कैराना का भी चुनाव साथ ही करा दे। कैराना से हिंदुओं के पलायन के मुद्दे को हुकुम सिंह ने ही उठाया था। पूर्ववर्ती समाजवादी सरकार में इस मामले को देश भर में सुर्खियां मिलीं। भाजपा ने जिस तरह कानपुर देहात के सिकंदरा विधानसभा क्षेत्र के विधायक मथुरा पाल के निधन के बाद उनके पुत्र को चुनाव मैदान में उतारा और जीत हासिल की, उसे देखते हुए यही कयास लग रहा है कि कैराना में भी हुकुम के परिवार को ही मौका मिलेगा।
2017 के विधानसभा चुनाव में हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को भाजपा ने चुनाव में मौका दिया था। चूंकि 2014 में हुकुम सिंह के सांसद बनने के बाद रिक्त हुई विधानसभा सीट पर उपचुनाव में उन्होंने अपने भतीजे अनिल को उम्मीदवार बनाया था, इसलिए 2017 में टिकट न मिलने पर अनिल ने बगावत कर चुनाव में ताल ठोंक दिया। भतीजे और बेटी की जंग में हुकुम सिंह की परंपरागत सीट भाजपा के हाथ से फिसल गई। वहां सपा के नाहिद हसन जीत गए।
मिशन 2019 और भाजपा अध्यक्ष की टीम
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की टीम में पिछले वर्ष तक पदाधिकारी रहे उत्तर प्रदेश के कई नेता अब योगी सरकार में मंत्री हैं। यहां मंत्री बनने के बाद भाजपा के केंद्रीय संगठन में उनकी भूमिका समाप्त हो गई है। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों को देखते हुए यह उम्मीद लगाई जा रही है कि उत्तर प्रदेश के कुछ दूसरे नेताओं को उनकी जगह मौका मिल सकता है।
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और गुजरात के प्रभारी रह चुके हैं। प्रदेश सरकार में स्वतंत्र प्रभार के ग्राम्य विकास राज्य मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह भाजपा में राष्ट्रीय मंत्री के साथ ही असम के प्रभारी रहे। डॉ. महेंद्र को असम की ऐतिहासिक जीत का श्रेय भी मिला, लेकिन अब उनकी भी सक्रियता उत्तर प्रदेश में है।
सबका साथ, सबका विकास पर जोर
भाजपा में केंद्र की राजनीति से ही उत्तर प्रदेश में सक्रिय हुए राज्य सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह और ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा इस समय प्रदेश सरकार के प्रवक्ता का भी दायित्व संभाल रहे हैं। इन दोनों नेताओं को भी केंद्रीय संगठन में मंत्री और प्रवक्ता की जिम्मेदारी थी। दोनों नेताओं की यहां वापसी के बाद यह माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि से जुड़े युवा नेताओं को आगे किया जा सकता है। विस चुनाव से ठीक पहले बसपा छोड़कर भाजपा में आए दारा सिंह चौहान को पार्टी ने पिछड़ा वर्ग मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था।
विधानसभा चुनाव जीतने के बाद दारा सिंह को योगी सरकार में वन मंत्री बनाया गया। अब दारा के पास दोहरा दायित्व है। जाहिर है कि उनसे भी संगठन का दायित्व लिया जाएगा। भाजपा में कई पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संगठन में सक्रिय हैं, लेकिन उनका कहीं समायोजन नहीं है। फ्रंटल संगठनों में भी पूर्व में पदाधिकारी रह चुके कई युवा नेताओं को केंद्रीय संगठन में सक्रिय किया जा सकता है। भाजपा का जोर सामाजिक और भौगोलिक समीकरण पर है। अगड़ी जाति के कई वरिष्ठ नेताओं की केंद्रीय संगठन में सक्रियता रही है। बाद में पिछड़ों को भी उभारा गया। अब संकेत यही मिल रहे हैं कि अगड़ों के साथ ही पिछड़ी जाति खासतौर से यादव, कुर्मी और अन्य पिछड़ा वर्ग के नेताओं को संगठन में सक्रिय किया जाएगा।
2017 के विधानसभा चुनाव में हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह को भाजपा ने चुनाव में मौका दिया था। चूंकि 2014 में हुकुम सिंह के सांसद बनने के बाद रिक्त हुई विधानसभा सीट पर उपचुनाव में उन्होंने अपने भतीजे अनिल को उम्मीदवार बनाया था, इसलिए 2017 में टिकट न मिलने पर अनिल ने बगावत कर चुनाव में ताल ठोंक दिया। भतीजे और बेटी की जंग में हुकुम सिंह की परंपरागत सीट भाजपा के हाथ से फिसल गई। वहां सपा के नाहिद हसन जीत गए।