जनजीवन ब्यूरो / नयी दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को एक गैर-सरकारी संगठन ने आरोप लगाया कि केंद्र ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत कार्यक्रमों के लिए पैसों की अनुमानित मांग कम करने के लिए राज्यों पर दबाव डाल रहा है, जिसकी वजह से राज्य नागरिकों को रोजगार उपलब्ध कराने मे असमर्थ हैं. न्यायमूर्ति मदन बी लोकूर और न्यायमूर्ति एनवी रमण की पीठ को गैर-सरकारी संगठन स्वराज अभियान के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि केंद्र महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत धन की अधिकतम सीमा निर्धारित नहीं कर सकता है. इस कानून के तहत प्रत्येक परिवार को साल में सौ दिन का रोजगार देने का प्रावधान है.
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि आज आधे से अधिक राज्यों की सरकारों पर केंद्र में काबिज पार्टी का नियंत्रण है. इसी वजह से केंद्र ने राज्यों से कह रहा है कि कोष के बारे में अधिक आनाकानी नहीं करें. केंद्र कह रहा है कि अगर आप इसके बारे में आनाकानी करेंगे तो हम बजट में कटौती कर देंगे. उन्होंने कहा कि यदि साल में प्रति परिवार सौ दिन के रोजगार की सीमा पार करती है और सरकार सरकार धन को सीमित नहीं करती है, तो बजटीय बाध्यता आ सकती है.
उन्होंने कहा कि केंद्र राज्यों को अनुमानित मांग कम करने के लिए बाध्य कर रही है. उन्होंने इस कानून के तहत औसतन रोजगार प्रति वर्ष सौ दिन से घटकर 40-45 दिन हो गया है. भूषण ने इस मामले में मंगलवार को अपनी दलीलें पूरी कर लीं. अब अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल पांच मार्च को अपनी दलीलें पेश करेंगे. केंद्र ने इससे पहले न्यायालय से कहा था कि ऐसा कोई उदाहरण नहीं है, जिसमे उसने इस कानून के तहत रोजगार के अधिकतम दिनों को सीमित किया हो या राज्यों को धन उपलब्ध नहीं कराया हो.
केंद्र ने कहा था कि 2016-17 के वित्तीय वर्ष में 20 राज्यों ने बजट की उस सीमा को पार किया था, जिसके लिए सहमति बनीं थी और केंद्र ने उन्हें धन उपलब्ध कराया था. इस मामले में मंगलवार को सुनवाई के दौरान भूषण ने पीठ से कहा कि अनेक राज्यों ने इस कानून के तहत अधिक धन मुहैया कराने के लिए केंद्र को पत्र लिखा है, क्योंकि मंजूर किया गया बजट खत्म होने के बाद राज्य लोगों को रोजगार नहीं प्रदान कर सकते. उन्होंने कहा कि 2017-18 में कुल 48,500 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गयी थी.