जनजीवन ब्यूरो / बेंगलुरू। सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कावेरी विवाद पर फैसला सुनाया है । फैसले को कर्नाटक में कांग्रेस के लिए विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी जीत माना जा रहा है। फैसले के बाद तमिलनाडु व कर्नाटक के बीच राज्य सड़क परिवहन निगम (केएसआरटीसी) की बस सेवा प्रभावित हुई है। केएसआरटीसी के महानिदेशक (परिवहन) के।एस। विश्वनाथ ने बताया कि पुलिस अधिकारियों के निर्देश पर दोनों राज्यों की बसें राज्य की सीमा तक चल रही हैं। फैसले के बाद कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए बेंगलुरू, मांड्या, मैसूर और चामराजनगर में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है।
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव अप्रैल माह में होने की संभावना है। जिसके लिए कांग्रेस व बीजेपी कमर कस चुकी है। लगातार जीत दर्ज कर रही बीजेपी कर्नाटक में भी ऐंड़ी चोटी एक कर रही है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले आने के बाद बीजेपी के लिए राह आसान नहीं रह जाएगी।
केएसआरटीसी की प्रवक्ता टी।एस। लता ने आईएएनएस को बताया कि बस सेवा दोपहर 12 बजे तक सामान्य रही, लेकिन कुछ बसों को तमिलनाडु में प्रवेश करते ही बेंगलुरू से 30 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में कर्नाटक-तमिलनाडु सीमा पर अतिबेले जांच चौकी पर पुलिस ने रोक दिया। उन्होंने बताया कि मैसूर क्षेत्र से तमिलनाडु के कोयंबटूर और ऊटी जाने वाली बसें शुक्रवार सुबह से नहीं चल रही हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को अपने फैसले में 2007 में कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा कावेरी नदी में आवंटित तमिलनाडु की हिस्सेदारी को 192 अरब घनफुट से घटाकर 177।25 अरब घनफुट कर दिया है।
क्या है ये विवाद
ये विवाद कावेरी नदी के पानी को लेकर है जिसका उदगम स्थल कर्नाटक के कोडागु जिले में है। यहां से निकलकर ये नदी 750 किलोमीटर लंबी ये नदी कुशालनगर, मैसूर, श्रीरंगापटना, त्रिरुचिरापल्ली, तंजावुर और मइलादुथुरई जैसे शहरों से गुजरती हुई तमिलनाडु में बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
इसके बेसिन में कर्नाटक का 32 हजार वर्ग किलोमीटर और तमिलनाडु का 44 हजार वर्ग किलोमीटर का इलाका शामिल है। कर्नाटक और तमिलनाडु, दोनों ही राज्यों का कहना है कि उन्हें सिंचाई के लिए पानी की जरूरत है और इसे लेकर दशकों से उनके बीच लड़ाई जारी है।
क्या तर्क हैं कर्नाटक और तमिलनाडु के
पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक का आदेश दिया था कि वो तमिलनाडु को पानी दे लेकिन कर्नाटक का कहना है कि बारिश कम होने की वजह से कावेरी में जल स्तर घट गया है और इसीलिए वो पानी नहीं दे सकता। इसके खिलाफ तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
तमिलनाडु का कहना है कि उसे हर हाल में पानी चाहिए, वरना उसके लाखों किसान बर्बाद हो जाएंगे। दूसरी तरफ कर्नाटक के अपने तर्क है। सूखे की मार झेल रहे कर्नाटक का कहना है कि कावेरी का ज्यादातर पानी बेंगलुरु और अन्य शहरों में पीने के लिए इस्तेमाल हो रहा है। सिंचाई के लिए पानी बच ही नहीं रहा।
विवाद में और कौन
पानी के बंटरवारे का विवाद मुख्य रूप तमिलनाडु और कर्नाटक के बीच है लेकिन चूंकि कावेरी बेसिन में केरल और पुदुचेरी के कुछ छोटे-छोटे इलाके भी शामिल हैं, लिहाजा वो भी इसमें कूद गए हैं।
ये पुराना विवाद है
1892 में तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर रियासत के बीच पानी के बंटवारे को लेकर एक समझौता हुआ था। लेकिन जल्द ही ये विवादों में घिर गया। इसके बाद 1924 में भी विवाद के निपटारे की कोशिश की गई लेकिन मतभेद बने रहे।
कावेरी ट्रिब्यूनल ने क्या फैसला दिया था
जून 1990 में केंद्र सरकार ने कावेरी ट्रिब्यूनल, जिसने 16 साल की सुनवाई के बाद 2007 में फैसला दिया कि प्रति वर्ष 419 अरब क्यूबिक फीट पानी तमिलनाडु को दिया जाए जबकि 270 अरब क्यूबिक फीट पानी कर्नाटक के हिस्से आए। कावेरी बेसिन में 740 अरब क्यूबिक फीट पानी मानते हुए ट्रिब्यूनल ने ये फैसला दिया था। केरल को 30 अरब क्यूबिक फीट और पुदुचेरी सात अरब क्यूबिक फीट पानी देने का फैसला हुआ। कर्नाटक और तमिलनाडु, दोनों ही फैसले से खुश नहीं थे। लिहाजा उन्होंने समीक्षा याचिका दायर कर दी।