जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली। बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए जदयू और राजद के बीच गठबंधन तो राजनीतिक हलकों में हो गई है लेकिन नीतीश कुमार और लालू प्रसाद का दिल नहीं मिला है। एक नहीं कई बार लालू और नीतीश के बोल अलग अलग मुद्दो पर अलग अलग दिखें हैं। माना जा रहा है कि चुनाव की घोषणा होते होते दोनों दल अलग अलग राह न पकड़ ले। यदि ऐसा होता है तो इसमें कांग्रेस की बड़ी भूमिका होगी।
सुषमा स्वराज और ललित मोदी प्रकरण के सामने आने पर लालू और नीतीश के सुर अलग अलग दिखाई पड़े। नीतीश ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में तरह-तरह के वादे कर भाजपा सत्ता में तो आ गई लेकिन अब सरकार चला नहीं पा रही है। सरकार फेवरेटिज्म (पक्षपात) कर रही है। जो लोग फेवरेट हैं, उन्हें मदद कर रही है। सरकार बनने के साथ कानून तोड़नेवाले की सहायता की जा रही थी। अब मानवीय आधार पर मदद करने की बात कह कर अब पल्ला झाड़ा जा रहा है । नीतीश कुमार ने भाजपा को घेरते हुए कहा कि केंद्र में यह कैसा राज है, जहां एक भगोड़े आर्थिक अपराधी की मदद के लिए मंत्री और प्रधानमंत्री तक आगे आ रहे हैं। नीतीश अपनी तरफदारी करने से नहीं चूके और कहा कि 10 वर्षो के शासन में मेरे द्वारा न किसी अपराधी की पैरवी की गयी और न ही किसी को फंसाया गया।
वहीं लालू की प्रतिक्रया नीतीश के ठीक विपरीत रही। लालू सुषमा और मोदी सरकार के प्रति पूरी तरह मुलायम रहे। लालू ने तो इतना तक कह दिया कि यह कोई मामला है ही नहीं। इस तरह की बात तो राजनीतिक जीवन में प्रत्येक दिन देखने को मिलती है। सुषमा ने मानवीय आधार पर अच्छा काम किया है।
लालू और नीतीश के विरोधाभाषी बयान को आगे की राजनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल नीतीश कुमार कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने का मन अभी भी बनाए हुए हैं। उन्हें यह पता है कि लालू और भाजपा के नेता एक दूसरे के सम्पर्क में हैं। भाजपा का लालू पर दबाव है कि गठबंधन किसी तरह टूट जाए। लालू के सामने जयललिता का उदाहरण दिया गया है। लालू तो फंसे ही हैं उनके करीबी प्रेम चंद गुप्ता पर केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा कसता जा रहा है। नीतीश कुमार को राहुल गांधी से मिलने का समय देना और सोनिया गांधी ने लालू को मिलने का समय नहीं देना, इससे लालू अबतक खफा हैं । माना जा रहा है कि लालू टिकट वितरण तक कांग्रेस को जोड़ का झटका दे सकते हैं।