जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्लीः यह जानकर आपको हैरानी होगी कि किडनी खराब रोगियों की जिंदगी बचाने के लिए ना तो पिता सामने आते हैं और ना ही भाई । सिर्फ मां, बहन और पत्नी की अपनों की जिंदगी बचाने के लिए अपनी किडनी दान में देतीं हैं। विश्व किडनी दिवस के मौके पर आईएमए ने किडनी डिजीज प्रिवेंशन प्रोजेक्ट शुरू किया जिसका मकसद हमारे देश में तेजी से फैल रही क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) की महामारी पर लगाम लगाना है।
आईएमए किडनी डिजीज प्रिवेंशन प्रोजेक्ट की संयोजक और नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. गरिमा अग्रवाल ने कहा “हमारे देश में हर साल गर्भधारण से जुड़े किडनी रोग मातृत्व मृत्यु दर का एक बड़ा कारण माना जाता है। भारत में प्रति दस लाख लोगों (पीएमपी) में से लगभग 800 लोग क्रोनिक किडनी रोग के शिकार हैं जबकि प्रति पीएमपी एडवांस्ड किडनी रोग से ग्रसित 230 लोगों को डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांट के रूप में किसी न किसी तरीके से किडनी रिप्लेसमेंट थेरापी की जरूरत पड़ती है। भारत में फिलहाल स्वास्थ्य सेवा अधोसंरचना के सदर्भ में इतनी बड़ी संख्या के मरीजों के लिए संसाधनों और दक्षता का स्तर नाकाफी है। विशेषज्ञों और इलाज तक सीमित पहुंच की समस्या से निपटने के लिए बचावकारी उपायों से किडनी रोग के मामलों को कम करने के लिए एक महत्वपूर्ण पद्धति अपनाने का प्रयास किया जाना चाहिए। यह तो स्पष्ट है कि किडनी रोग और इसके एडवांस्ड स्टेज यानी अंतिम चरण में पहुंच चुके रोग का इलाज काफी महंगा होता है और यह औसत भारतीय की पहुंच से बाहर होता है। लिहाजा सबसे महत्वपूर्ण है कि क्रोनिक किडनी रोग से बचाव को ही चिकित्सा जगत, भारत सरकार और आम लोगों के बीच लक्ष्य बनाया जाए।”
उनके अनुसार किडनी रोग से ग्रसित 90 फीसदी रोगियों की जिंदगी महिलाएं ही बचाती हैं।
आईएमए के महासचिव डॉ. आरएन टंडन के मुताबिक, “क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के दो तिहाई मामले डायबिटीज और हाइपरटेंशन के कारण होते हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के हालिया आंकड़े बताते हैं कि शहरी भारत के युवा आबादी में डायबिटीज और हाइपरटेंशन दोनों की मौजूदगी 20 फीसदी की दर से बढ़ी है। भारत में विभिन्न प्रकार की लाइफस्टाइल बीमारियों के बढ़ते मामलों के साथ-साथ किडनी रोग के मामले भी पिछले एक दशक में लगभग दोगुना हो चुके हैं और आगे भी इसके तेजी से बढ़ने की आशंका है। असंचारी रोगों (डायबिटीज और हाइपरटेंशन) के बड़े पैमाने पर लगातार बढ़ते बोझ के अलावा विभिन्न आयुवर्ग के लोग ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) दवाइयों और परंपरागत दवाइयों के कारण किडनी रोग की चपेट में आ रहे हैं क्योंकि इन दवाइयों में किडनी को नुकसान पहुंचाने वाले हेवी मेटल्स की मौजूदगी रहती है।”
इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के साथ ही विश्व किडनी दिवस (डब्ल्यूकेडी) भी मनाया जा रहा है और इस मौके पर आईएमए किडनी की सेहत पर नए सिरे से फोकस करना चाहता है और साथ ही परिवार तथा समाज की सेहत में महिलाओं की अहम भूमिका पर प्रकाश डाल रहा है। सीकेडी बढ़ने का खतरा महिलाओं में भी उतना ही रहता है जितना कि पुरुषों में, बल्कि उससे ज्यादा ही हो सकता है। हालांकि भारत में पुरुषों की संख्या के मुकाबले डायलिसिस कराने वाली महिलाओं की संख्या कम है।
आईएमए के डॉ विनय अग्रवाल ने बताया की इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और इसके चिकित्सा प्रमुखों ने भारत में क्रोनिक किडनी रोग के कारणों से निपटने के लिए राष्ट्रव्यापी बचाव एवं जागरूकता कार्यक्रम शुरू करने का संकल्प लिया है। आईएमए ही एकमात्र समस्त भारत का चिकित्सा संगठन है जिसमें इतने बड़े पैमाने पर चिकित्सा समुदाय खासकर प्राथमिक चिकित्सा फिजिशियनों से संपर्क करने, उन तक पहुंच बनाने और उन्हें प्रभावित करने की क्षमता है।
भारत में महिलाओं पर विशेष ध्यान देने से किसी भी योजना को बड़ी कामयाबी मिल सकती है क्योंकि वे हमारे परिवारों, खानपान की आदतों और संस्कृति परिवर्तन का आधार होती हैं, इसलिए इस मुहिम में महिलाओं को सबसे महत्वपूर्ण भागीदार बनाया गया है। इस परियोजना में जोखिम वाली आबादी की पहचान करने, प्राथमिक चिकित्सा से जुड़े फिजिशियनों के स्तर पर किडनी स्वास्थ्य जागरूकता चलाने और समस्त भारत में किडनी पर केंद्रित प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने के लिए स्क्रीनिंग योजनाओं को शामिल किया गया है जिसमें स्थानीय नेफ्रोलॉजिस्ट भी शामिल हैं।