अमलेंदु भूषण खां / नई दिल्ली । फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की हार के कई वजह रही हैं। उपचुनाव में भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी भारी पड़ी तो केंद्र व राज्य सरकार का अहंकार भी भाजपा की नैया डूबोने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा।
भाजपा ने इस बार उपचुनाव में वाराणसी के पूर्व मेयर कौशलेंद्र सिंह पटेल को चुनाव मैदान में उतार कर हर किसी को चौंका दिया। पार्टी के इस निर्णय से स्थानीय कार्यकर्ता खासे नाराज रहे। कौशलेंद्र पर शुरुआत से ही बाहरी होने का ठप्पा लग गया। विपक्षी पार्टियों ने भी इसका खासा प्रचार किया। स्थानीय सभाओं में डैमेज कंट्रोल करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी कहना पड़ गया कि कौशलेंद्र को डिप्टी सीएम के कहने पर प्रत्याशी बनाया गया।
उपचुनाव में बसपा द्वारा समाजवादी पार्टी को समर्थन दिए जाने के बाद भाजपा के चुनाव प्रचार में खासा असर पड़ा। पार्टी नेता पूर्व में मोदी और योगी द्वारा किए गए विकास कार्यों के नाम पर जनता से वोट मांग रहे थे, लेकिन सपा-बसपा गठबंधन हो जाने के बाद सीएम, डिप्टी सीएम समेत प्रचार में लगे सभी कैबिनेट मंत्री सिर्फ अखिलेश और माया पर ही अपनी भड़ास निकालते रहे। इस वजह से पार्टी का चुनाव प्रचार दूसरी दिशा में भटक गया और बसपा के कैडर वोटों के साथ सपा के परंपरागत वोटों ने मिलकर जीत दिला दी।
फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में इस बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) ने कोई खास योगदान नहीं दिया। मतदान के ठीक पहले संघ के बड़े पदाधिकारी अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में हिस्सा लेने नागपुर चले गए। चर्चा इस बात की है कि कौशलेंद्र को फूलपुर से प्रत्याशी बनाये जाने पर भाजपा नेतृत्व ने संघ के पदाधिकारियों को विश्वास में नहीं लिया था। जबकि मतदान के लिए वोटरों तक पर्ची पहुंचाने और उन्हें केंद्र तक ले जाने का काम संघ कार्यकर्ता बखूबी करते हैं।
फूलपुर उपचुनाव में पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं कार्यकर्ता अपने कार्यालयों में बैठकर चुनाव की तैयारी तो करते रहे लेकिन वोटरों को मतदान केंद्र तक लाने की कारगर रणनीति नहीं बनाई गई। नतीजा यह रहा कि शहर उत्तरी विधानसभा में 22 तो पश्चिमी विधानसभा में महज 31 प्रतिशत ही मतदान हुआ। जबकि शहरी क्षेत्र में रहने वाले अधिकांश भाजपा के ही वोटर माने जाते हैं। मतदाता पर्ची तक घर-घर पहुंचाने का काम नहीं हुआ। इस कारण वोटर नहीं निकल सके।
निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे अतीक अहमद भी भाजपा की नैया पार नहीं लगा सके। अतीक ने जब नामांकन किया तो तमाम भाजपाई यह कहते नजर आए कि अब अतीक समाजवादी पार्टी के काफी वोट काट लेंगे, लेकिन बृहस्पतिवार को आए परिणाम के बाद अतीक अहमद सिर्फ शहर पश्चिम में ही सम्मानजनक वोट पा सके। शेष अन्य चारों विधानसभाओं में अतीक अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सके। उन्हें महज सात फीसदी ही वोट मिले।
फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में मतदाताओं की नाराजगी भी हार की एक प्रमुख वजह मानी जा रही है। दरअसल इस चुनाव में भाजपा के परंपरागत वोटरों ने अपने मताधिकार का प्रयोग नहीं किया। पार्टी अपने इसी वोट बैंक के भरोसे चुनावी बेड़ा पार करने की तैयारी में थी। राजरूपपुर निवासी विजय उपाध्याय ने बताया कि उनके क्षेत्र में पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा चुनावी पर्ची नहीं बांटी गई। इस वजह से भाजपा के परंपरागत वोटरों ने अपने मत का प्रयोग नहीं किया। उत्तरी और पश्चिमी विधानसभा के कई मोहल्लों में भाजपा के वोटरों ने पर्ची न मिलने की शिकायत पर नाराजगी जाहिर की थी।
उपचुनाव में भाजपा कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी भारी पड़ी। बृहस्पतिवार को मतगणना स्थल के बाहर भाजपा शिविर में बैठे तमाम कार्यकर्ताओं ने कहा कि प्रदेश में योगी सरकार का एक साल पूरा होने वाला है। पार्टी कार्यकर्ता जनहित से जुड़ी समस्याओं को लेकर अगर पुलिस या प्रशासन के अफसरों से मिलते हैं तो उनकी वहां सुनी नहीं जाती। कुछ चुनिंदा नेताओं की ही पुलिस और प्रशासन के अफसर सुनते हैं। पार्टी के बड़े नेता भी इससे वाकिफ हैं। इस वजह से तमाम कार्यकर्ताओं ने चुनाव के दौरान पूरे मन से काम नहीं किया।