जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । अमेरिकी संसद में पेश बिल से भारत में कॉल सेंटर में काम करने वाले करोड़ों लोगों की नौकरी खतरे में पड़ सकती है। कांग्रेस में यह बिल पास हो जाता है तो फिर इसका असर उन बीपीओ पर सर्वाधिक पड़ेगा, जो अमेरिकन लोगों की भारत में बैठकर सहायता करते हैं।
बिल में किया गया है यह प्रावधान
इस बिल में यह प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक कॉल सेंटर कर्मचारी को अपनी लोकेशन के बारे में जानकारी देनी होगी और उसे कस्टमर को यह अधिकार देना होगा कि वो कॉल को अमेरिका में बैठे एजेंट को ट्रांसफर कर सके। ओहियो के सीनेटर शेरोर्ड ब्राउन द्वारा पेश किए गए इस बिल में उन कंपनियों की भी लिस्ट तैयार करने का भी प्रावधान है जो कॉल सेंटर नौकरियों को ऑउटसोर्स करती हैं तथा उन्होंने इसे अमेरिका के बाहर ट्रांसफर नहीं किया है।
अमेरिकी एजेंट से कर सकेंगे कस्टमर बात
अमेरिकी कस्टमर को उन कॉल सेंटर एजेंट से बात कर सकेंगे जो उनके देश में मौजूद होंगे। अभी अमेरिकन जब कॉल सेंटर पर बात करते हैं, तो उनकी कॉल को भारत सहित किसी और देश में ट्रांसफर कर दिया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि ज्यादातर अमेरिकी कंपनियों ने अपना बीपीओ बिजनेस ऐसे देशों में स्थापित किया हुआ जहां कॉस्ट काफी कम आती है। ज्यादातर भारतीय बीपीओ कर्मचारी अमेरिकी नामों का प्रयोग करके वहां के कस्टमर से बात करते हैं।
भारत और मेकिस्को में सबसे ज्यादा बिजनेस
ब्राउन ने अपने बिल में कहा है कि ज्यादातर अमेरिकी कंपनियों ने अपने बीपीओ बिजनेस को अमेरिकी शहरों में बंद करके उसे भारत या फिर मेक्सिको में शिफ्ट कर दिया है। अब इस बिल के जरिए अमेरिका बीपीओ बिजनेस को देश में फिर से शुरू करने की कवायद कर रहा है। अगर अमेरिकी संसद में यह बिल पास हो जाता है तो फिर भारत में स्थित उन सभी बीपीओ कंपनियों पर असर पड़ेगा, जो कि अमेरिकी वासियों के लिए कॉल सेंटर चलाते हैं।
पहले भी पेश हुआ था एक बिल
इससे पहले पिछले साल भी डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद गेने ग्रीन और रिपब्लिकन सांसद डेविड मैकिनली की ओर से ‘यूएस कॉल सेंटर एंड कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट’ शीर्षक वाले बिल को अमेरिकी संसद में पेश किया था।
भारत को हो सकता है सबसे ज्यादा नुकसान
बिल में प्रावधान किया गया है कि जो अमेरिकी कंपनियां अपने कॉल सेंटर अमेरिका छोड़कर अन्य देशों में स्थापित करती हैं उनकी सरकारी सहायता या बैंक लोन रोके जा सकते हैं। बिल के तहत जो अमेरिकी कंपनियां अपने देश को छोड़कर विदेशों में नौकरियों की आउटसोर्सिंग करेंगी उन्हें बैड एक्टर माना जाएगा और उनकी एक सार्वजनिक सूची तैयार की जाएगी।
दोनों सांसदों के अनुसार ‘इस सूची में जिन कंपनियों के नाम होंगे वो सरकार की ओर से मिलने वाली मदद और बैंक लोन लेने के लिए योग्य नहीं होंगी।’
25 लाख अमेरिकी ही बीपीओ सेक्टर में
वहीं डेमोक्रेटिक सांसद ग्रीन ने कहा कि अमेरिका के ग्रेटर ह्यूस्टन में ही अकेले 54 हजार के करीब कॉल सेंटर्स जॉब हैं जबकि पूरे अमेरिका में यह आंकड़ा 25 लाख से ज्यादा है। ऐसे में यह जरूरी है कि अमेरिकी युवाओं को अपने देश में ही बेहतर नौकरियां और उचित वेतन मिल सकें। बदकिस्मती से हमारी यह महत्वपूर्ण नौकरियां भारत और फिलिपींस जैसे देशों में जा रही हैं।