जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को भले ही लाभ के पद के एक मामले में 20 विधायकों को अयोग्य ठहराए जाने के चुनाव आयोग के फैसले पर फौरी राहत मिल गई है, लेकिन उसके 27 विधायकों पर इसी तरह के एक अन्य केस में अयोग्य ठहराए जाने का खतरा मंडरा रहा है।
दिल्ली के अस्पतालों में रोगी कल्याण समिति के अध्यक्ष के पद पर थे ये विधायक
इन 27 विधायकों का मामला भी चुनाव आयोग में लंबित है। दिल्ली सरकार के अस्पतालों में रोगी कल्याण समिति का अध्यक्ष पद संभालने वाले इन विधायकों में 11 ऐसे हैं जिनका नाम उन 20 विधायकों में शामिल है जिन्हें चुनाव आयोग ने 19 जनवरी को अयोग्य ठहरा दिया था। अगर आयोग ने इस मामले में भी आप के खिलाफ फैसला दिया तो उसके 16 विधायक अयोग्य करार दिए जाएंगे।
संसदीय सचिव नियुक्त करने के बाद बदला कानून
दिल्ली सरकार ने 13 मार्च, 2015 को 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया था। लगभग तीन महीने बाद 19 जून को एक युवा एडवोकेट प्रशांत पटेल ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से उनकी शिकायत कर दी। उन्होंने अपनी याचिका में कहा कि इन विधायकों ने लाभ का पद स्वीकार किया है, इसलिए उनकी सदस्यता रद्द कर दी जाए। इसके बाद विधायकों को बचाने के लिए दिल्ली सरकार ने दिल्ली विधानसभा सदस्य (अयोग्यता निवारण) संशोधन विधेयक, 2015 को पूर्व प्रभाव से पारित कर दिया।
राष्ट्रपति ने नहीं दी मंजूरी
मुखर्जी ने इस संशोधन विधेयक को मंजूरी देने से इनकार करते हुए उसे 13 जून, 2016 को दिल्ली विधानसभा को वापस लौटा दिया। याद रहे कि जनवरी, 2017 में पंजाब विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए आप के राजौरी गार्डन के विधायक जरनैल सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। इसके मद्देनजर उनके खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही खत्म कर दी गई।
क्या है लाभ का पद
संविधान के अनुच्छेद 102(1) और 191 (1) में केंद्र और राज्य के स्तर पर जनप्रतिनिधियों पर सरकारी पद स्वीकार करने की रोक लगाई गई है। अगर कोई इसका उल्लंघन करता है तो उसे अयोग्य ठहरा दिया जाएगा। बहरहाल, केंद्र और राज्य सरकारों ने समय-समय पर कानून पारित कर कई पदों को लाभ के पद से बाहर कर दिया है।
जब सोनिया को देना पड़ा इस्तीफा
भाजपा ने 2006 में सोनिया गांधी से लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देने की मांग की थी क्योंकि वे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष के पद पर बैठी हुई थीं जो लाभ के पद के दायरे में आता था। सोनिया ने तब इस्तीफा दे दिया था और बाद उस पद को लाभ के पद से बाहर कर दिया गया। बाद में वे उपचुनाव में अमेठी से जीतकर फिर संसद पहुंची थीं।
जया को छोड़नी पड़ी थी सदस्यता
सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में सपा सांसद जया बच्चन की राज्य सभा सदस्यता छीन ली थी क्योंकि वे उस समय उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष का पद संभाल रही थीं।