अमलेंदु भूषण खां
40 साल पहले लगे आपातकाल की निंदा लगातार हो रही है, लेकिन जिन परिस्थितियों के कारण आपातकाल लगाया गया था उसे नकारा भी नहीं जा सकता। देश में परिस्थितियां आपातकाल लगाने की बन रही थीं। इस संदर्भ में उन्होंने रेल हडताल, एनएन मिश्रा हत्यांकांड और इसके साथ जयप्रकाश नारायण द्वारा सेना और पुलिस से अवैध आदेशों का पालन नहीं करने का आहवान का जिक्र किया है। आपातकाल के मात्र ढाई साल का विश्लेषण किया जाए तो यह तथ्य सामने आते हैं कि जितना विकास उस समय हुआ उतना अबतक कभी नही हुआ। रेल गाड़ियों के समय पर नहीं चलने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि आपातकाल के दौरान कैसे रेलगाड़ियां समय पर चलती थी।
हालांकि आपातकाल को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निजी सचिव रहे आर के धवन ने दावा किया है कि आपातकाल को लेकर राजीव गांधी और सोनिया गांधी का अपना कोई पक्ष नहीं था । उन्हें इस मुद्दे पर कोई आपत्ति नहीं जताई। हालांकि मेनका गांधी के बारे में धवन ने बताया कि इस बारे में वो सबकुछ जानती थी। उन्हें पता था कि आखिर संजय गांधी क्या कर रहे हैं?सवाल यह उठता है कि जब राजीव गांधी को राजनीति से कोई लगाव नहीं था तो उन्हें इस मामले में घसीटना कहांतक जायज है।
धवन के मुताबिक मेनका को अपने पति संजय गांधी के हरकदम की जानकारी थी इसलिए वो इससे अनजान होने का दावा नहीं कर सकती हैं। आरके धवन ने अपने खुलासों में इंदिरा गांधी का बचाव करते दिखाई दिए। उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी को आपातकाल के दौरान की गई ज्यादतियों जैसे जबरन नसबंदी और तुर्कमान गेट गिराने जैसे मामलों की जानकारी नहीं थी। धवन के मुताबिक इस सबके लिए संजय गांधी अकेले जिम्मेदार हैं। इतना ही नहीं इंदिरा गांधी को तो इसकी भी जानकारी नहीं थी कि संजय गांधी मारूती प्रोजेक्ट के लिए जमीन का अधिग्रहण कर रहे थे।
धवन की बात से हटकर देखें तो नसबंदी का फायदा पूरे देश को मिल रहा है। लोगों में इससे जागरूकता बढ़ी। नसबंदी कार्यक्रम की प्रशंसा इंदिरा के विरोधी भी किए हैं। गरीब वर्ग व अशिक्षित वर्ग के लोगों के परिवारो में आधे दर्जन बच्चे पैदा करने की ललक अभी भी है उसका नुकसान न सिर्फ उन्हें उठाना पड़ रहा है बल्कि पूरे देश को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
धवन के दावों पर गौर करें तो ये सबकुछ संजय गांधी की योजना थी जिसमें उन्होंने भी साथ दिया और मुझे इसमें कुछ गलत नहीं लगा। आरके धवन ने वाशिंगटन पोस्ट की उस स्टोरी को भी खारिज कर दिया जिसमें दावा किया गया था कि संजय गांधी अपनी मां का आदर नहीं करते थे और उन्होंने इंदिरा गांधी को 6 थप्पड़ भी मारे थे। धवन के मुताबिक संजय अपनी मां की बेहद इज्जत करते थे। कोई भी भारतीय अपनी मां पर हाथ नहीं उठा सकता। भारतीय संस्कार में ऐसा है ही नहीं।
70 साल के हो चुके धवन ने बताया कि 1975 में इंदिरा गांधी को आपातकाल लगाने का विचार पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री एसएस रे ने दिया था। उन्होंने ही इसका असल वास्तुकार कहा जा सकता है। धवन के दावों पर गौर करें तो आपातकाल की योजना काफी पहले ही बना ली गई थी। उन्होंने बताया कि इंदिरा गांधी के चुनाव को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा रद्द किए जाने के बाद उनके राजनीतिक करियर को बचाने के लिए आपातकाल नहीं लगाया गया। बल्कि इस मामले में इंदिरा गांधी खुद भी इस्तीफा देना चाहती थी। इस मामले में इस्तीफा लिखा जा चुका था लेकिन उन्होंने उस पर हस्ताक्षर नहीं किया था। हालांकि बाद में उनके चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने ही उन्हें सशर्त प्रवास दिया था।
धवन की मानें तो आपातकाल की वजह उस दौरान गुजरे तीन-चार साल की घटनाएं थी। उन्होंने रेलवे हड़ताल, एलएन मिश्रा की हत्या, विपक्ष द्वारा सरकार को अपाहिज करने की कोशिश, जयप्रकाश नारायण का बढ़ता कद और पुलिस के नियमों की अनदेखी जैसे मुद्दों को इमरजेंसी की वजह बताया।आरके धवन ने खुलासा करते हुए कहा कि आपातकाल लगाने के विरोध में पूरी कैबिनेट से केवल कैबिनेट मंत्री स्वर्ण सिंह ने आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि आखिर आपातकालकी जरूरत क्या है और क्यों पूरा कैबिनेट इसका समर्थन कर रही है? हालांकि ये बैठक महज 15 मिनट में खत्म हो गई। धवन ने बताया कि कैबिनेट के बाद इंदिरा गांधी और एसएस रे इस फैसले को लेकर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद के पास गए और उनसे कहा कि हम आपातकाल लगाना चाहते हैं। इसके तुरंत बाद राष्ट्रपति ने भी हस्ताक्षर कर दिए। उन्हें इस फैसले में कोई हिचकिचाहट नहीं थी। राष्ट्रपति ने एसएस रे से इस फैसले का खाका मांगा। आधी रात से पहले ही धवन खुद पूरी रिपोर्ट के साथ राष्ट्रपति भवन हस्ताक्षर के लिए पहुंचे।आरके धवन के मुताबिक इस मुद्दे पर पूरी योजना 20-21 जून को इसको लेकर तैयारी की गई। इसमें ये भी लिस्ट बनी की आखिर किस-किस की गिरफ्तारी की जाएगी। इसके बाद राज्यों को मुख्यमंत्रियों को बुलाया गया और उन्हें आरएसएस से जुड़े लोगों और विपक्ष के नेताओं की पूरी लिस्ट दी गई जिन्हें गिरफ्तार करना था। इसकी पूरी योजना दिल्ली में बना ली गई थी।
धवन ने आगे बताया कि 1977 में इंदिरा गांधी ने चुनाव का ऐलान उस समय किया जब उन्हें आईबी ने बताया था कि चुनाव में उन्हें 340 सीटें आ सकती हैं। इस मुद्दे पर मुख्य सचिव पीएन धार ने रिपोर्ट भेजी जिस पर इंदिरा ने विश्वास कर लिया। हालांकि इंदिरा को चुनावों में मिली हार का कोई अफसोस नहीं था।
धवन ने वॉशिंगटन पोस्ट की उस स्टोरी का खंडन भी किया है, जिसके मुताबिक संजय ने इंदिरा को डिनर पर 6 बार थप्पड़ मारा था। उन्होंने कहा कि संजय तो इंदिरा की काफी इज्जत करते थे। हालांकि, धवन ने बताया कि संजय को कुछ मुख्यमंत्री और नौकरशाह अपने इशारों पर चलाते थे और यह कहकर उन्हें उनकी मां की तुलना में अधिक शक्तिशाली होने का अहसास कराते थे कि वह ज्यादा भीड़ खींचते हैं। यह बात संजय के मन में घर कर गई थी।