जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली। नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल में दिवालियापन से जुड़े मामलों की बाढ़ सी आ गई है। ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस समय NCLT की 10 बेंच (जजों और टेक्निकल स्टाफ समेत 26 लोग) दिवालियापन से जुड़े 2,500 से ज्यादा मामलों की सुनवाई कर रही है। एक साल पहले के वर्कलोड के आधार पर रिसर्चरों का अनुमान है कि भारत में दिवालियापन से जुड़े मामलों के समय से निपटारे के लिए अगले 5 सालों तक करीब 80 बेंचों की जरूरत पड़ेगी।
पीएम मोदी के लिए एक सुस्त बैंकिंग संकट को दुरुस्त करने के लिए एक सुव्यवस्थित दिवालियापन प्रक्रिया बेहद महत्वपूर्ण है। पुरानी व्यवस्था भारत की अर्थव्यवस्था से ऊर्जा को खत्म कर रही है। जजों की कमी को हल करने में विफलता से बड़े वैश्विक निवेशकों पर भी प्रभाव पड़ता है, जो स्टील से लेकर सीमेंट तक के उद्योगों में सौदेबाजी के लिए तैयार हैं।
दिल्ली के लक्ष्मीकुमारन ऐंड श्रीधरन अटॉर्नीज के एग्जिक्यूटिव पार्टनर पुनीत दत्त त्यागी ने कहा, ‘नैशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (एनसीएलटी) में स्टाफ की कमी होने से ऐसे मामलों में बढ़ोतरी होगी। समय के साथ यह स्थिति सुधरेगी, ऐसा प्रतीत नहीं होता है।’ ओकट्री भारत की दिवालिया प्रक्रिया का पालन कर रहा है। उसका कहना है कि ‘सही परिस्थितियों में’ ही वह लोकल ऑफिस खोल सकता है।
एनसीएलटी की स्थापना जून 2016 में की गई थी और 2017 में पूरी ताकत उस समय मिली, जब भारत का नया दिवालिया कानून प्रभाव में आया। 12 फरवरी को बैंकिंग रेग्युलेटर ने बैंकों को आदेश दिया कि यदि डिफॉल्टर अपने रिपेमेंट प्लान के साथ 6 महीने में हाजिर न हों तो उन्हें सीधे एनसीएलटी लाया जाए। इससे अदालत में ऐसे मामलों में तेजी आएगी। 31 जनवरी तक कोर्ट में ऐसे करीब 9073 मामले हैं, जिनमें 2511 दिवालियापन से जुड़े हैं, 1630 मामले मर्जर से जुड़े हैं और 4932 मामले कंपनी ऐक्ट की अन्य धाराओं से जुड़े हैं। हालांकि कोर्ट के आदेश को चुनौती दिए जाने से दिवालिया प्रक्रिया जोखिम से जुड़े मामले और जटिल हो रहे हैं।
इस मामले से जुड़े एक व्यक्ति ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सरकार जजों की कमी से हो रही समस्या से अनभिज्ञ नहीं है और बड़ी संख्या में जजों की नियुक्ति करने की तैयारी कर रही है, हालांकि यह संख्या क्या होगी, इस बारे में अभी कोई जानकारी नहीं है। इस व्यक्ति ने बताया कि एनसीएलटी की और बेंच भी तैयार की जाएंगी।