जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप होने पर महिलाओं को कार्डियोवैस्कुलर बीमारी का जोखिम बढ़ जाता है। जिन मरीजों को पहले भी उच्च रक्तचाप हो चुका है, उनको तो दोगुना खतरा रहता है। इसलिए प्रसव के तुरंत बाद और डिस्चार्ज करने से पहले महिलाओं के रक्तचाप की निगरानी की जाये।
दिल की विफलता, या पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी, जन्म देने के बाद पांच महीने तक हो सकती है। इस स्थिति के कुछ लक्षणों में थकावट, सांस की तकलीफ, एड़ी में सूजन, गर्दन की नसों में सूजन और दिल की धड़कनें अनियमित होना आदि शामिल हैं।
इसके बारे में बात करते हुए, डॉ. मनोज कुमार, हेड, कार्डियाक कैथ लैब, मैक्स बालाजी, पटपड़गंज ने कहा, ‘गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप मां और बच्चे दोनों के लिए एक बड़ा जोखिम होता है। उच्च रक्तचाप पूरे शरीर में रक्त प्रवाह में बाधा डाल सकता है, जिसमें प्लेसेंटा और गर्भाशय शामिल हैं। यह भ्रूण की वृद्धि को प्रभावित करता है और गर्भाशय से प्लेसेंटा के समय से पहले विच्छेदन को रोकता है। अगर प्रसव के पहले, उसके दौरान और बाद में बारीकी से निगरानी न की जाये, तो उच्च रक्तचाप भी ऐसी महिलाओं में दिल की विफलता सहित दिल की अन्य समस्याओं का एक प्रमुख कारण बन सकता है। उच्च रक्तचाप के कुछ अन्य घातक प्रभावों में समय से पहले बच्चे का जन्म, दौरे, या मां और बच्चे की मौत तक शामिल है।’
पेरिपार्टम कार्डियोमायोपैथी की गंभीरता को निकास अंश या इजेक्शन फ्रेक्शन कहा जाता है, जिसे मापा जा सकता है। यह रक्त की वह मात्रा है जिसे हृदय प्रत्येक धड़कन के साथ बाहर पम्प करता है। एक सामान्य निकास अंश संख्या लगभग 60 प्रतिशत होती है।
डॉ. कुमार ने आगे कहा, ‘प्रसवोत्तर उच्च रक्तचाप से प्रभावित महिलाओं को कुछ समय के लिए अस्पताल में भर्ती कराया जाना चाहिए। हालांकि दिल की विफलता के कारण होने वाली क्षति को रोका नहीं जा सकता, फिर भी कुछ दवाओं और उपचार की मदद से स्थिति में आराम मिल सकता है। गंभीर मामलों में हृदय प्रत्यारोपण की आवश्यकता हो सकती है। ऐसी महिलाएं दोबारा जब गर्भ धारण करना चाहें तो जीवन शैली में कुछ बदलाव करके रक्तचाप को नियंत्रण में रख सकती हैं।’
बीटा-ब्लॉकर्स जैसी दवाएं रक्तचाप को कम करने में मदद कर सकती हैं। ऐसे ही, डाइयूरेटिक्स वर्ग की दवाएं शरीर से अतिरिक्त पानी और नमक को हटाकर रक्तचाप को कम करने में मदद करती हैं। कुछ अन्य उपचार विकल्पों में कोरोनरी धमनी बाईपास सर्जरी और इम्प्लांटेबल कार्डियोवर्टर डिफिब्रिलेटर (आईसीडी) शामिल हैं। आईसीडी छाती या पेट में रखा एक छोटा सा उपकरण होता है। यह एरिथिमिया नामक दिल की अनियमित धड़कन का इलाज करने में मदद करता है। गर्भावस्था के दौरान, डिगॉक्सिन, बीटा-ब्लॉकर्स, लूप डाइयूरेटिक्स और हाइड्रेलेजिन व नाइट्रेट्स के लोड को कम करने वाली दवाएं सुरक्षित साबित हुई हैं और दिल की विफलता के उपचार का मुख्य आधार हैं। पोस्ट-डिलीवरी इलाज वैसा ही है जैसा गैर-गर्भवती महिलाओं के लिए डाइलेटेड कार्डियोमायोपैथी के समान होता है।
क्या करें, क्या न करें
* गर्भवती होने से पहले अपने रक्तचाप के स्तर को जानें।
* नमक या सोडियम का अधिक सेवन रक्तचाप को बढ़ा सकता है। इसलिए, नमक कम ही खाने का लक्ष्य रखें।
* गर्भ धारण करने से पहले खूब चलें-फिरें और सक्रिय रहें। एक ही जगह पर बैठे रहने वाली महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ने की संभावना रहती है, साथ ही बाद में उच्च रक्तचाप का खतरा बढ़ सकता है।
* सुनिश्चित करें कि आप ऐसी कोई दवा नहीं ले रही हैं जो रक्तचाप को बढ़ा सकती हो।
* यदि आपको पहले से ही उच्च रक्तचाप की शिकायत है, तो अपने डॉक्टर से उन सावधानियों के बारे में बात करें, जिनका पालन करने की आवश्यकता है।
* नियमित रूप से प्रसवपूर्व चैकअप कराती रहें।
* गर्भावस्था के दौरान तम्बाकू और शराब का सेवन करना उचित नहीं हैं और इससे बचा जाना चाहिए।