योगेश भारद्वाज / नई दिल्ली: यूं तो मोदी सरकार इन दिनों अपनी सरकार के 4 साल पूरे होने पर अपने मंत्रालयों के कामो का गुणगान कर रही है. जिसमें कुछ मंत्रालय तो निसंदेह ही अच्छा कार्य कर रहें है. लेकिन कई मंत्रालय ऐसे भी है जिनकी स्थिति जो पहले थी वो आज भी है. इस मामले में सरकार का समाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय भी इसी हाल में है. भले ही मंत्रालय दिव्यांगों को कृत्रिम अंग वितरण आदि में अपनी पीठ थपथपा लें. लेकिन मंत्रालय आज भी 23 साल से गैरकानूनी इस काम को देश से खत्म नही कर पाया है. नतीजा देश भर में आज भी लगभग सात लाख लोग रोजाना अपने सर पर मैला ढोने को मजबूर हैं. आज जब इस मामले में केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद्र गहलोत से पूछा गया तो मंत्री ने बताया की उप्र में सबसे ज्यादा सिर पर मैला ढ़ोने वालों की संख्या है. और केंद्र सरकार अब इनका सर्वे कराकर इस कुरीति को समाप्त करने की दिशा में कार्य करेगी.
गौरतलब है कि 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि अब भी देश के कुल 18 करोड़ घरों में से 1.86 लाख में ऐसे शौचालय हैं जिनकी सफाई दलितों को करनी पड़ रही है. बरहाल 23 साल से गैरकानूनी होने के बावजूद आज भी देश भर में लगभग सात लाख लोग रोजाना अपने सर पर मैला ढोने को मजबूर हैं. और सरकार अभी सर्वे कराने पर विचार कर रही है.
देश में यह है सर पर मैला ढ़ोने वालो की स्थिति…
2011 की जनगणना के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद टाइगर कमांड को पता चला की अब भी देश के कुल 18 करोड़ घरों में से 1.86 लाख में ऐसे शौचालय हैं जिनकी सफाई दलितों को करनी पड़ रही है. इनमें सबसे ज़्यादा – 63713 – महाराष्ट्र में हैं. पंजाब में ऐसे घरों की संख्या 11949, मध्यप्रदेश में 23093 और कर्नाटक में 15375 है. इतनी बड़ी तादाद में अब भी कच्चे शौचालयों का होना यह साबित करता है कि कड़े कानूनों के बाद भी सिर पर मैला ढोने की रवायत आज भी बड़े पैमाने पर जारी है. एक अनुमान के अनुसार आज भी देशभर में सिर पर मैला ढोने वालों की संख्या लगभग सात लाख है.
केंद्र सरकार करायेगी सर्वे…
विभिन्न राज्य सरकारें अपने यहां मैला ढोने की बात को कम करके आंकती रही हैं. अब इसके सही आंकड़ों की पड़ताल के लिए केंद्र सरकार एक सर्वे करवा रही है. यह सर्वे गांवों के साथ शहरी क्षेत्रों में भी होगा. इसके साथ ही मैला ढ़ोने के इस काम पर रोक लगाने के लिए भारत सरकार ने कुछ और कदम भी उठाए हैं. केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय को इसकी जिम्मेदारी सौंपी गई है और मंत्रालय ने टाइगर कमांड को बताया है की इसके लिए एक निगरानी समिति का भी गठन किया गया है. इस समिति में सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक बिंदेश्वर पाठक और गरिमा अभियान से जुड़े मध्यप्रदेश के आसिफ को भी सदस्य बनाया गया है.