जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । गोरक्षा के नाम पर देशभर में हो रही भीड़ हिंसा पर देश की सर्वोच्च अदालत ने सोमवार को सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की इजाजत नहीं है। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने कहा कि भीड़ हिंसा पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी राज्यों की है।
गोरक्षा के नाम पर हो रही भीड़ हिंसा पर रोक लगाने के संबंध में दिशानिर्देश जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी। अदालत ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा कि यह कानून एवं व्यवस्था का मामला है और इसकी जिम्मेदारी संबंधित राज्यों की है। पीठ ने कहा कि वह इस मामले में एक विस्तृत फैसला सुनाएगी। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि हिंसा की घटनाएं वास्तव में भीड़ हिंसा के मामले हैं, जो कि अपराध है।
इस मामले में सुनवाई के दौरान पीठ ने टिप्पणी की कि गौ रक्षा के नाम पर हिंसा की घटनायें वास्तव में भीड़ द्वारा की जा रही हिंसा है और यह अपराध है। अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल पी एस नरसिम्हा ने कहा कि केन्द्र इस समस्या के प्रति सचेत है और इससे निबटने का प्रयास कर रहा है। उन्होंने कहा कि मुख्य चिंता तो कानून व्यवस्था बनाये रखने की है। पीठ ने कहा कि कोई भी कानून अपने हाथ में नहीं ले सकता और ऐसी घटनाओं की रोकथाम करना राज्य सरकारों की जिम्मेदारी है।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल छह सितंबर को सभी राज्यों से कहा था कि गौ संरक्षण के नाम पर हिंसा की रोकथाम के लिये कठोर कदम उठाए जाएं। इसमें प्रत्येक जिले में एक सप्ताह के भीतर वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को नोडल अधिकारी नियुक्त किया जाए और उन तत्वों के खिलाफ तत्परता से अंकुश लगाया जाये खुद के ही कानून होने जैसा व्यवहार करते हैं।
इसके साथ शीर्ष अदालत ने राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश सरकारों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई के लिये दायर याचिका पर इन राज्यों से जवाब भी मांगा था। यह अवमानना याचिका महात्मा गांधी के प्रपौत्र तुषार गांधी ने दायर की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि इन तीन राज्यों ने शीर्ष अदालत के छह सितंबर , 2017 के आदेशों का पालन नहीं किया है।