मृत्युंजय कुमार/ नई दिल्ली। पूरबिया यानी बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों को पहले दिल्ली, पंजाब की आबो हवा अच्छी लगती थी लेकिन अब इन लोगों को दक्षिण भारत तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश रास आ रहा है. यह बात साल 2011 के सर्वे के आधार पर जनसंख्या से जुड़े डेटा से सामने आई है.
इस डेटा के अनुसार दक्षिण भारत में हिंदी भाषियों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है. जबकि उत्तर भारतीय राज्यों में तमिल, मलयालम, कन्नड़, तेलुगू बोलने वालों की संख्या में साल 2001 की जनगणना के मुकाबले कमी दर्ज की गई है .
साल 2001 के सर्वे में उत्तर भारतीय राज्यों में लगभग 8.2 लाख तमिल भाषी लोग रहते थे जो अगले दस वर्षों में घटकर 7.8 लाख हो गए. इसी तरह मलयालम बोलने वाले लोगों की संख्या भी 8 लाख से गिरकर 7.2 लाख रह गई.
लेकिन इस आंकड़े के उलट इन्हीं 10 वर्षों के दौरान दक्षिण भारतीय राज्यों में हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि दर्ज की गई है.
डेटा के अनुसार दक्षिण भारत में द्रविड़ भाषी जनसंख्या में गिरावट आई है.
साल 2001 का जनगणना के अनुसार दक्षिण भारतीय राज्यों में लगभग 58.2 लाख उत्तर भारतीय लोग रहते थे , दस साल के भीतर इस आंकड़े में 20 लाख की वृद्धि हुई है और अब दक्षिण भारतीय राज्यों में 77.5 लाख हिंदी भाषी लोग रहने लगे हैं.
नौकरी के अवसर
दक्षिण भारत में हिंदी भाषी लोगों की बढ़ती जनसंख्या के पीछे सबसे पहली वजह वहां नौकरी के अधिक अवसरों का होना बताया जाता है.
अर्थशास्त्री जयरंजन के अनुसार उत्तर भारत के लोग दक्षिण भारत में नौकरी की तलाश में ही आते हैं. वे कहते हैं, ”दक्षिण भारत में नौकरियां तो बहुत हैं लेकिन यहां इन्हें करने के लिए पूरे लोग नहीं हैं. देश के दक्षिणी और पश्चिमी हिस्से को भारतीय अर्थव्यवस्था के ‘विकास का इंजन’ कहा जाता है. इन इलाकों में लेबर की ज़रूरत होती है, इसे उत्तर भारत से आए लोग भरने की कोशिश करते हैं.”
अगर उत्तर भारत के इस मजदूर वर्ग की दक्षिण भारत में कमी हो जाए तो इसका अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा, इस पर जयरंजन कहते हैं, ” निर्माण उद्योग से जुड़े धंधे अधिकतर इन्ही मजदूरों के सहारे चलते हैं, अगर इस वर्ग में कमी आएगी तो इन उद्योंगो पर इसका सीधा असर देखने को मिलेगा.”
दक्षिण में उत्तर भारतीयों की बढ़ती जनसंख्या से वहां कुछ नए तरह की आर्थिक गतिविधियां भी शुरू हो गई हैं जैसे दक्षिण भारत में उत्तर भारतीय खान-पान से जुड़े रेस्टोरेंट का खुलना.
इसका अर्थव्यवस्था पर कितना असर पड़ा है, इस बारे में जयरंजन बताते हैं, ”यह देखना होगा कि इसका फ़ायदा हुआ है या नुकसान. जैसे तमिल फिल्में आज पूरे विश्व में देखी जाती हैं, तमिल बोलने वाले लोग विदेशों तक अपनी पहुंच बनाने में सफल हुए हैं. इस तरह जब कोई भी समुदाय दूसरी जगह जाता है तो वह अपनी सांस्कृतिक पहचान जैसे, खान-पान, संस्कार, संगीत आदि भी वहां ले जाता है.”
प्रवासी कामगारों की बढ़ती जनसंख्या
तमिलनाडु का पश्चिमी हिस्सा यानि कोयंबटूर और तिरुपुर के आस-पास का इलाका, औद्योगिकीकरण के लिए सबसे अधिक जाना जाता है.
बांग्लादेश और नाइजीरिया से गैरक़ानूनी तरीकों से आए लोग यहां के वस्त्र उद्योग में काम करते हैं और कई बार गिरफ़्तार भी होते हैं. इस तरह की गिरफ़्तारियां हर महीने होती रहती हैं.
राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक पिछले कुछ सालों में इन इलाकों में प्रवासी मजदूरों की संख्या में खासी वृद्धि दर्ज की गई है.
इसी इलाके के औद्योगिक संगठन की तरफ से जारी किए डेटा के अनुसार हाल के कुछ दशकों में यहां वस्त्र उद्योग के निर्यात में भी वृद्धि दर्ज की गई है.
तिरुपुर को उसकी वस्त्र उत्पादन की वजह से ‘भारत की निटवियर राजधानी’ भी कहा जाता है. तिरुपुर एक्सपोर्टर एसोसिएशन के अनुसार इस शहर से साल 2017-18 में 24 हज़ार करोड़ रुपये के कपड़ों का निर्यात किया गया जबकि इससे पहले साल 2016-17 में यह आंकड़ा 26 हज़ार करोड़ रुपए था.
तिरुपुर एक्सपोर्टर एसोसिएशन के अध्यक्ष राजा शनमुगम ने बीबीसी तमिल को बताया, ”हमें लगातार मजदूरों की ज़रूरत रहती है और मज़दूरों की मांग भी लगातार बढ़ रही है, ऐसे में उत्तर भारत से आने वाले मज़दूर हमारे उद्योग के लिए फ़ायदेमंद हैं. पहले ये मज़दूर एजेंटों के ज़रिए ही आते थे लेकिन अब इन्हें इस इलाके की जानकारी हो गई है और अब ये मज़दूर खुद यहां आ जाते हैं.”
वे बताते हैं, ”जो लोग पिछले कुछ सालों तक अकेले यहां आते थे वे अब अपने परिवारों के साथ आने लगे हैं, लेकिन हम सभी को रहने के लिए घरों की व्यवस्था नहीं कर सकते. यहां मज़दूरों के लिए बुनियादी ढांचा बहुत अच्छा नहीं है. सरकार को इस संबंध में उचित कदम उठाने चाहिए.”
अब धीरे-धीरे उत्तर भारत में भी उद्योग धंधे विकास करने लगे हैं, ऐसे में अगर ये उत्तर भारतीय मज़दूर वापस अपने घरों की तरफ लौटने लगें तो इसका दक्षिण भारत पर कोई नकारात्मक असर पड़ेगा.
इस विषय में राजा शनमुगम कहते हैं, ”अगर कोई आदमी एक जगह पर 10 साल तक रह जाता है तो वह जगह उसकी अपनी हो जाती है. कल जो मज़दूर होगा आज वह मालिक बन जाएगा. इसलिए वे लौटकर नहीं जाएंगे.”