बैंकाक । थाईलैंड की घुप्प अंधेरी पानी से भरी और बेहद संकरे रास्ते वाली गुफा में 18 दिन से फंसे 12 फ़ुटबॉल खिलाड़ियों और उनके कोच को थाई नेवी सील ने सुरक्षित बाहर निकाल लिया है. घुप्प अंधेरी पानी से भरी और बेहद संकरे रास्तों वाली इस गुफा से बच्चों को सुरक्षित बाहर निकालने के अभियान पर दुनिया भर की नज़रें टिकी रहीं.
बच्चों के सुरक्षित बाहर आने की इस ख़बर का थाईलैंड और दुनियाभर के करोड़ों लोग बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे.
गौरतलब है कि 12 फ़ुटबॉल खिलाड़ी अपने कोच के साथ 23 जून को इस गुफा में गए थे और वहीं फंस कर रह गए थे.
ये बेहद मुश्किल हालात पर मानवीय उम्मीद और हौसले की जीत की कहानी है.
मिशन पूरा होने पर चियांग राय प्रांत के गवर्नर नारोंगसक ओसोटानकोर्न ने अभियान में शामिल टीम को ‘संयुक्त राष्ट्र टीम’ कहा.
बच्चों को सुरक्षित निकालने के अभियान में थाईलैंड की नौसेना और वायुसेना के अलावा ब्रिटेन, चीन, म्यांमार लाओस, ऑस्ट्रेलिया, अमरीका और जापान समेत कई देशों के विशेषज्ञ लगे थे.
गुफा के पास रहने वाले स्थानीय लोगों ने बचाव अभियान में जुटे स्वयंसेवकों के लिए खाना बनाया और गोताखोरों के कपड़े तक धोए.
दुनियाभर से आए विशेषज्ञ गोताखोरों ने अपनी जान का जोख़िम उठाकर गुफा के भीतर बच्चों और उनके कोच को खोजा और फिर लंबे और जटिल अभियान के बाद उन्हें आख़िरकार सुरक्षित बाहर निकाल लिया.
गुफा के बाहर इस समय जश्न का माहौल है लेकिन बहुत से लोग इस अभियान में जान गंवाने वाले स्वयंसेवक गोताखोर समन गुनान के बारे में भी सोच रहे होंगे.
थाईलैंड की सरकार अब उनका राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार करेगी.
गुफा से बचाए गए सभी खिलाड़ी और उनके कोच अब अस्पताल में एक साथ हैं. रविवार को चार बच्चों को गुफा से निकालकर अस्पताल पहुंचाया गया था. सोमवार को चार अन्य खिलाड़ियों को निकालकर अस्पताल पाया गया और मंगलवार को बाक़ी बचे चार खिलाड़ियों और कोच को सुरक्षित अस्पताल पहुंचा दिया गया.
इसे के साथ वो अभियान सफलतापूर्वक पूरा कर लिया गया जिसे शुरुआत में असंभव सा माना गया था. हालांकि अभी तक परिजनों को उनसे मिलने नहीं दिया गया है. कुछ परिजनों का कहना था कि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है जबकि अन्य का कहना था कि उन्होंने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी थी. सभी के चेहरे पर चमकीली मुस्कान है.
पहले आए आठ बच्चों की देखभाल करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि वो ठीक है. हालांकि दो सप्ताह से अधिक तक अंधेरी गुफा में रहने से मानसिक स्थिति पर हुए असर की जांच अभी की जाएगी.
ये बारह फुटबॉल खिलाड़ी एक टीम की तरह गुफा में गए थे. वहां एक टीम की तरह ही मुश्किल हालात में जीवित रहे और अब 72 घंटे चले बेहद मुश्किल बचाव अभियान के बाद वो फिर से टीम पूरी हो गई है.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप ने अभियान पूरा होने पर थाई नेवी सील को मुबारकबाद देते हुए लिखा, “अमरीका की ओर से 12 लड़कों और उनके कोच को सुरक्षित निकालने पर थाई नेवी सील को मुबारकबाद. ये कितना ख़ूबसूरत पल है- सभी आज़ाद हैं. अच्छा काम.”
जर्मनी की चांसलर एंगेला मर्केल के प्रवक्ता ने ट्वीट किया, “प्रशंसा करने के लिए कितना कुछ है- बहादुर बच्चों और उनके कोच की दृढ़ता, बचावकर्मियों की क्षमता और दृढ़ संकल्प.”
ब्रितानी प्रधानमंत्री टेरीज़ा मे ने भी बचावक्रमियों को मुबारकबाद देते हुए ट्वीट किया, “थाईलैंड की गुफा में फंसे लोगों को बचाए जाने से प्रसन्न हूं. पूरी दुनिया ये देख रही थी और हम इस अभियान में शामिल लोगों की बहादुरी को सलाम करते हैं.”
थाईलैंड की टैम लूंग गुफा में फंसी बच्चों की एक फुटबॉल टीम और उनके कोच को सुरक्षित बाहर निकालने के लिए बीते कुछ दिनों से बचाव अभियान चलाया जा रहा था.
अब सभी बच्चों और कोच को इस गुफा से सुरक्षित निकाला जा चुका है.
लेकिन सवाल ये उठता है कि गुफा से सुरक्षित बाहर निकाले गए इन बच्चों के दिमाग़ पर इस घटना के दूरगामी असर किस रूप में सामने आएंगे.
कैसी है गुफा से बाहर आए बच्चों की सेहत
थाईलैंड के स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया है कि बाहर निकाले गए बच्चों की हालत ठीक है.
कुछ बच्चों के फेफड़ों में संक्रमण की आशंका जताई जा रही है और उन्हें डॉक्टरों की निगरानी में रखा गया है.
हालांकि, किसी बच्चे के स्वास्थ्य से जुड़ी किसी बड़ी परेशानी की बात फ़िलहाल सामने नहीं आई है.
इन बच्चों की सेहत से जुड़े कुछ सवाल और भी हैं.
क्या हफ़्तों तक अंधेरी गुफा में रहने के बाद बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोई असर पड़ेगा?
क्या उन्हें लंबे वक़्त तक किसी परेशानी का सामना करना पड़ेगा?
किसी अंधेरी, सुनसान जगह में हफ़्तों फंसे रहने का एक बच्चे के दिमाग पर कैसा असर पड़ता है?
ब्रिटेन के किंग्स कॉलेज यूनिवर्सिटी में चाइल्ड साइकियाट्रिक्स डॉ. एंड्रिया डानेज़ी के मुताबिक़ चूंकि ये बच्चे ऐसे हालात से होकर गुज़रे हैं जहां वो ज़िंदगी और मौत के बीच में झूल रहे थे इसलिए सुरक्षित बाहर आने के बाद भी उन्हें कुछ भावनात्मक परेशानियों का सामना कर पड़ सकता है.
बात-बात पर रोने की आदत
डॉक्टर एंड्रिया के मुताबिक़ ऐसा हो सकता है कि इन्हें बात-बात पर रोना आए और वो पल भर के लिए भी अपने माता-पिता का साथ न छोड़ें.
अगर इसके दूरगामी असर की बात करें तो भयानक हालात में फंसने के बाद लोगों में डिप्रेशन, एंग्ज़ाइटी और पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसी तकलीफ़ों की आशंका बढ़ जाती है.
पोस्ट ट्रॉमैटिक डिसऑर्डर में बच्चे उस घटना और उससे जुड़ी चीजों को दोबारा याद नहीं करना चाहते.
हालांकि बुरी यादों को भुलाना आसान नहीं होता क्योंकि घटना से जुड़ी कोई न कोई बात सामने आती ही रहती है.
क्योंकि थाईलैंड की घटना पर दुनिया भर की निगाह थी इसलिए मीडिया, स्कूल, परिवार और दोस्त बच्चों से बार-बार सवाल पूछेंगे और उन्हें चीजें बार-बार याद आएंगी.
ऐसी हालत में मुमकिन है कि बच्चे अप्रिय सवालों और यादों से बचने के लिए खुद को लोगों से अलग-थलग कर लें.
अंधेरे के प्रति नफ़रत का भाव
चूंकि ये बच्चे लंबे वक़्त तक अंधेरी गुफा में रहे हैं इसलिए मुमकिन है कि वो अंधेरे से नफ़रत करने लग जाएं क्योंकि ये उन्हें गुफा में फंसे होने और बचाव अभियान की याद दिलाएगा.
इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ज़रूरी है कि बच्चों और उनके कोच को मनोवैज्ञानिक सलाह और मदद मुहैया कराई जाए.
मदद की दरकार
ज़िंदगी में किसी ऐसे हादसे से गुज़रने के बाद लोगों को ज़िंदगी को वापस पटरी पर लाने के लिए मदद की दरकार होती है.
प्रोफ़ेशनल मनोवैज्ञानिक की मदद से इन बच्चों को नकारात्मक विचारों में फंसे बिना अप्रिय स्थितियों का सामना करने में सहजता हासिल होगी.
ऐसी स्थितियों में अंधेरा और अपने अनुभवों के बारे में बात करने जैसी चीज़ें शामिल हैं.
साल 2010 में चिली में खान में काम करने वाले मज़दूरों के साथ भी ऐसे ही लक्षण देखे गए थे.
इन मज़दूरों के लिए एक खान में फंसना कोई आसान घटना नहीं थी. लेकिन उनके पेशे और ट्रेनिंग की वजह से उन्होंने ऐसी परिस्थिति से बचने के लिए तैयारी की होगी.
लेकिन थाईलैंड की गुफा में फंसने वाले बच्चों के लिए ये घटना पूरी तरह से अप्रत्याशित थी. इस वजह से इन बच्चों में मानसिक अवसादों के शिकार होने का ख़तरा ज़्यादा है.
किसी भी तरह से इन बच्चों के लिए रोजमर्रा की ज़िंदगी में वापस लौटना मुश्किल होगा.