जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में कथित नक्सली लिंक के आरोप में गिरफ्तार किए गए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को 6 सितंबर तक हाउस अरेस्ट में रखने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि आरोपियों को गिरफ्तार करने की बजाय हाउस अरेस्ट किया जाए। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को करेगी। उधर महाराष्ट्र सरकार ने कहा है कि गिरफ्तार किए गए लोगों का संबंध नक्सलियों से हैं जिसके सबूत मिले हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा’ असहमति का होना किसी भी लोकतंत्र के लिए सेफ्टी वॉल्व है। अगर असहमति की अनुमति नहीं होगी तो प्रेशर कूकर की तरह फट भी सकता है।’ आपको बता दें कि 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगांव + हिंसा, नक्सलियों से संबंधों और गैर-कानूनी गतिविधियों के आरोपों में 5 लोगों को अरेस्ट किया है।
इनमें वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वेरनोन गोन्जाल्विस और अरुण फरेरा शामिल हैं। इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तरफ से रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, माया दर्नाल और एक अन्य ने सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी दाखिल की थी। इनकी तरफ से सीनियर ऐडवोकेट और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी कोर्ट में पेश हुए।
उधर, पुणे पुलिस ने दावा किया कि आरोपियों के खिलाफ पर्याप्त सबूत हैं। पुलिस ने आरोप लगाया कि आरोपियों के प्रतिबंधित सीपीआई माओवादी से संबंध हैं। पुलिस ने दावा किया कि ये बड़े नेताओं की हत्याओं की साजिश कर रहे थे। पुलिस ने सबूत के तौर पर हार्ड डिस्क, लैपटॉप इत्यादि कब्जे मे लेने का दावा किया है।
पुणे पुलिस द्वारा पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले ने राजनीतिक तूल पकड़ लिया है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मोदी सरकार, संघ पर पर हमला करते हुए कहा कि भारत में सिर्फ एक ही एनजीओ के लिए जगह है और उसका नाम आरएसएस है। राहुल ने तंज करते हुए लिखा कि सभी ऐक्टिविस्ट्स को जेल में डाल दो और जो विरोध करे उसे गोली मार दो।
इसपर बीजेपी और केंद्र सरकार की तरफ से राहुल पर हमला बोला गया। केंद्रीय गृह राज्य मंत्री मंत्री किरेन रिजिजू ने इसके जवाब में ट्वीट करते हुए लिखा कि मनमोहन सरकार ने माओवादियों को आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा घोषित किया था। उन्होंने लिखा कि अब राहुल गांधी ‘माओवादी शुभचिंतकों’ को सपॉर्ट कर रहे हैं।
बता दें कि मामले में पुणे पुलिस ने मंगलवार को देश भर में कई नक्सल समर्थकों के आवास पर छापे मारे और माओवादी समर्थक वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, बरनोन गोंजालविस और गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया है।
छापेमार कार्रवाई के बाद हुई इन गिरफ्तारियों के खिलाफ रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, माया डार्नल और एक अन्य कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और गौतम नवलाखा की गिरफ्तारी के खिलाफ उच्चतम न्यायालय पहुंचे हैं।
पुलिस ने इन गिरफ्तारियों पर कहा है कि नक्सलियों से संपर्क और जून में गिरफ्तार पांच लोगों से संबंध रखने वालों के घरों पर छापे मारे गए। संदिग्धों के वित्तीय लेनदेन और संचार के तरीकों की छानबीन भी की जा रही है। सभी आरोपियों पर आईपीसी की विभिन्न धाराओं और यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून) के तहत मामला दर्ज किया गया है। पुलिस ने कहा कि गिरफ्तार हुए पांच लोगों पर नजर रखी जा रही थी। और एक हफ्ते से उनकी हर एक हरकत पर निगरानी थी।
मोदी की हत्या की साजिश के पत्र में था वरवरा का नाम
पुलिस ने इस मामले में जून, 2018 में गिरफ्तार पांच लोगों में एक के ठिकाने से पीएम नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश से जुड़ा एक पत्र जब्त किया था। इसमें पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की ही तरह मोदी को भी निशाना बनाने की बात कही गई थी। इस पत्र से ही वरवरा राव का नाम सामने आया था।
क्या है महाराष्ट्र को झकझोर देने वाला भीमा-कोरेगांव हिंसा कांड
पुणे के नजदीक एक जनवरी को भीमा-कोरेगांव युद्ध के 200 साल पूरा होने के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान दो समूहों के बीच संघर्ष में एक युवक की मौत हो गई थी और चार लोग घायल हुए थे।
इस हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो जाने के बाद इसकी आंच महाराष्ट्र के 18 जिलों तक फैल गई। भीमा-कोरेगांव में लड़ाई की 200वीं सालगिरह को शौर्य दिवस के रूप में मनाया गया। दलित समुदाय के पांच लाख से ज्यादा लोग शौर्य दिवस मनाने के लिए एकत्र हुए थे। भीमा कोरेगांव के विजय स्तंभ पर मुख्य कार्यक्रम शांतिपूर्वक चल रहा था, हालांकि पड़ोस के गांवों में हिंसा भड़क गई।
इस दौरान कुछ लोगों ने भीमा-कोरेगांव विजय स्तंभ की तरफ जाने वाले लोगों की गाड़ियों पर हमला बोल दिया। इसके बाद हिंसा भड़क गई जिसमें साणसवाड़ी के राहुल पटांगले की मौत हो गई। कार्यक्रम का आयोजन हर साल किया जाता था, हालांकि इस बार हिंसा भड़क गई।
इस हिंसा के विरोध में दलित संगठनों ने बंद बुलाया था जिसमें मुंबई, नासिक, पुणे, ठाणे, अहमदनगर, औरंगाबाद और सोलापुर सहित राज्य के एक दर्जन से अधिक शहरों में दलित संगठनों ने जमकर तोड़फोड़ और आगजनी की थी।
महाराष्ट्र के पुणे से शुरू हुई जातीय हिंसा मुंबई और कई अन्य शहरों तक पहुंच गई। कई जगह दुकानों और ऑफिसों को आग के हवाले कर दिया गया। हालात बिगड़ते देख खुद राज्य के मुख्यमंत्री ने मामले में न्यायिक जांच के अलावा मृतक के परिजन को 10 लाख रुपये मुआवजा देने की घोषणा की।