जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है जिसे भारत में ही नहीं बल्कि और भी कई देशों में भी बड़े हर्ष और उत्साह के साथ मनाया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है।
यह पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि
को मनाया जाता है। माना जाता है भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अर्धरात्रि यानी ठीक
12 बजे भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था जो भगवान विष्णु का ही अवतार थे।
नारायण के इस अवतार का मुख्य उद्देश्य मुथरा के राजा कंस के बढ़ते अत्याचार को समाप्त करके
उसका विनाश करना था। जिसके लिए उन्होंने कंस की बहन देवकी की कोख से जन्म लिया। बहुत से
भक्त इस दिन व्रत-उपवास भी रखते है, जिसमें अर्ध रात्रि तक यानी 12 बजे कृष्ण जन्म तक उपवास
रखना होता है।
जन्माष्टमी के दिन जो भी व्रत रखते हैं उन्हें सुबह स्नान करके माता देवकी के लिए सूतिका गृह बनाना चाहिए। इसे फूलों से सजाएं। मंगल भवन के आचार्य भास्कर अमेठा जी के अनुसार सूतिका गृह में बाल गोपाल सहित माता देवकी की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए । इसके बाद देवकी मां, भगवान श्री कृष्ण, यशोदा माता, वसुदेव और माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए।
जनमष्टमी की पूजा के वक्त क्या रखे थाली में:
रोली/कुमकुम ·
चावल·
गंगाजल·
मिश्री·
मक्खन·
गोपी चन्दन ·
दीपक·
धूपबत्ती ·
कर्पूर ·
माचिस·
पुष्प ·
मोरपंख·
भगवान् श्री कृष्ण की प्रतिमा को इस दिन स्नान करवाकर उन्हें पीताम्बर यानी पीले रंग के कपड़े धारण करवाएं और पीले रंग के आभूषणों से उनका श्रृंगार करें। श्रृंगार करने के बाद उन्हें झूले पर झुलाएं।
मंगल भवन के आचार्य भास्कर अमेठा जी बताते है कि जन्माष्टमी का उपवास रखने के बाद कृष्ण
भगवान के जन्म के बाद पूजा करके ही भोजन ग्रहण किया जाता है। इस दिन कुछ लोग निराहार व्रत
करते हैं तो वहीं कुछ लोग केवल फल खाकर व्रत रखते हैं। उपवास रखने के बाद रात में 11 बजे स्नान
करके शास्त्रानुसार विधि पूर्वक नंदलाल की पूजा करनी चाहिए। रात में 12 बजे के बाद भगवान श्री कृष्ण के जन्म के बाद उन्हें दूध, दही, घी, मिश्री और गंगाजल अभिषेक करते हैं। इसके अलावा मखन, मिश्री अथवा पंजीरी का भोग लगाकर भगवान श्री कृष्ण की आरती करनी चाहिए।
जन्माष्टमी पर्व का उचित समय व् मुहूर्त
दिनांक:- 2 सितंबर
निशीथ पूजा:- 23:57 से 00:43 ( श्रीकृष्ण जन्म)
पारण:- 20:05 (3 सितंबर) के बाद
रोहिणी समाप्त- 20:05 (3 सितम्बर)
अष्टमी तिथि आरंभ – 20:47 (2 सितंबर)
अष्टमी तिथि समाप्त – 19:19 (3 सितंबर)
जन्माष्टमी का वृहद उत्सव मथुरा और उससे सटे कई क्षेत्रों में इस पर्व को बड़े ही धूम धाम के साथ
मनाया जाता है। इस पर्व पर बड़े-बड़े मंदिरों में श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। उत्सव के दौरान देश विदेश से लाखों भक्तगण मंदिरों में आते है। सिर्फ मथुरा में ही नहीं अपितु देश के कई अन्य
हिस्सों में भी इस पर्व को एक नन्हे बालक के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मंदिरों में विशेष झांकियों का आयोजन किया जाता है, भगवान कृष्ण को झुला झुलाया जाता है और बहुत से मंदिरों में रासलीला का भी आयोजन किया जाता है।