जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस के आक्रमण से केंद्र की सरकार अंदर से विजलित तो है, लेकिन उपरी तौर पर वह अपने इरादे मजबूत दिखा रही है। कांग्रेस अध्य़क्ष राहुल गांधी के बार-बार संयुक्त संसदीय समिति से जांच कराने की मांग कर रहे हैं लेकिन नरेंद्र मोदी सरकार इसे नकार रही है। दरअसल जब-जब जेपीसी बनाई गई है, सत्तारूढ़ पार्टी का सफाया हो गया है यानी सरकार ही चली गई । ऐसे में आरोप लग रहे हैं कि इस बार फिर उठी जेपीसी की मांग पर भाजपा बच रही है।
दरअसल यूपीए सरकार के सत्ता में रहने के दौरान 22 फरवरी, 2011 को बजट सत्र के पहले दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने हजारों करोड़ रुपए के कथित 2जी घोटाले की जांच के लिए जेपीसी के गठन की घोषणा की थी। इसके बाद अगले तीन साल, 2014 के लोकसभा चुनाव तक सत्तारूढ़ यूपीए सरकार को घेरने के लिए 2जी भाजपा के लिए सबसे महत्वपूर्ण मसलों में से एक साबित हुआ।
वहीं अब कांग्रेस राफेल सौदे की जेपीसी से जांच कराने की मांग कर रही है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस मसले पर लगातार सरकार को घेर रहे हैं लेकिन सत्तारूढ़ भाजपा उनकी मांग को नजरअंजाज कर रही है। अगर जेपीसी का इतिहास देखा जाए तो यह पता चलता है कि विपक्षी के लिए जेपीसी ब्रह्मास्त्र साबित हुआ है।
अभी तक कुल छह मौकों पर जेपीसी का गठन किया गया है-
बोफोर्स घोटाला (1987)
हर्षद मेहता शेयर मार्केट घोटाला (1992)
केतन पारेख शेयर मार्केट घोटाला (2001)
सॉफ्ट ड्रिंक में कीटनाशक पाए जाने का मामला (2003)
2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला (2011)
वीवीआईपी हेलीकॉप्टर घोटाला (2013)
जेपीसी बनी और सत्ता से बाहुर हुई सरकार
पहला जेपीसी बोफोर्स मामले के लिए गठित किया गया था, जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। पिछले दो जेपीसी मनमोहन सिंह के शासन के दौरान गठित किए गए थे। एक संयोग यह भी है कि जब भी कोई जेपीसी गठित हुई तो उस दौरान की सरकार अगले लोकसभा चुनाव में सत्ता से बाहर हो गई।
जेपीसी से कांग्रेस को क्या होगा फायदा
माहौल बनेगा, फायदा होगा
किसी भी मामले पर जेपीसी के गठन से सत्ता पक्ष के खिलाफ माहौल बना रहता है। भाजपा जब विपक्ष में थी तो उसे 2जी पर गठित जेपीसी ने ऐसा ही फायदा पहुंचाया था। कांग्रेस और यूपीए के साझेदार दल रक्षात्मक भूमिका में आ गए थे। इसलिए कांग्रेस चाहती है कि राफेल डील पर वह बीजेपी के खिलाफ इसी तरह का माहौल बनाए।
भाजपा पर लगाएंगे घोटाले का दाग
बोफोर्स, 2जी स्पेक्ट्रम और वीवीआईपी हेलीकॉप्टर घोटाले की सच्चाई जो भी, इससे कांग्रेस सरकारों के बारे में एक धारणा तो बन ही गई है। इन सबमें जेपीसी जांच की अहम भूमिका रही है। कांग्रेस अब यही चाहती होगी कि जेपीसी जांच के द्वारा वह बीजेपी के दामन पर दाग लगा दे। जेपीसी की रिपोर्ट आएगी और इस पर विवाद होंगे। कहीं न कहीं एक संदेश देने की कोशिश की जाएगी कि बीजेपी राज में घोटाला हुआ है।
संसद में मिलेगा हंगामे का मौका
जेपीसी की मांग पर संसद में खूब हंगामा होने के आसार हैं। कांग्रेस इसकी मांग को लेकर संसद के शीतकालीन सत्र को बाधित कर सकती है। साल 2010 में बीजेपी द्वारा 2जी घोटाले की जांच की मांग को लेकर संसद का पूरा सत्र बर्बाद हो गया था। बीजेपी ने खूब हंगामा किया था और सत्तारूढ़ कांग्रेस इससे पसीना-पसीना हो गई थी। यही नहीं अगर राफेल पर जेपीसी बनी, तो इसकी रिपोर्ट आने के बाद भी संसद में कांग्रेस को खूब हंगामा करने का मौका मिल सकता है।
लग जाती है आधिकारिक मुहर
जेपीसी द्वारा जांच शुरू करने से किसी कथित घोटाले को एक तरह की आधिकारिक मुहर लग जाती है। भाजपा इस मामले में कांग्रेस से भाग्यशाली थी कि सीएजी ने भी यह रिपोर्ट दी थी कि 2जी घोटाले से देश के खजाने को 1.76 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इसकी जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई द्वारा की गई। राफेल के मामले में ऐसा कुछ नहीं हो पाया है। इसलिए राहुल गांधी यह चाहते हैं कि राफेल को कम से कम जेपीसी के द्वारा आधिकारिक मंजूरी मिले।
चुनाव में फायदा
इसके पीछे मुख्य उद्देश्य चुनाव में फायदा उठाना होता है। 2जी पर जेपीसी रिपोर्ट के दम पर ही भाजपा यह धारणा बनाने में सफल रही थी कि कांग्रेस सरकार भ्रष्ट है। इसका 2014 के लोकसभा चुनाव में काफी फायदा हुआ। कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा और उसे इतिहास में सबसे खराब नतीजे मिले, 543 में से महज 44 सीटों पर संतोष करना पड़ा। कांग्रेस को लगता है कि राफेल डील पर हो-हल्ला कर वह इसी तरह से चुनाव में फायदा उठा सकती है।