जनजीवन ब्यूरो / नयी दिल्ली : SC/ST ACT में किए गए संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। पीआईएल पर कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने इस कानून में किये गये संशोधन को निरस्त करने के लिए दायर याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी किया । केंद्र को छह सप्ताह के भीतर नोटिस का जवाब देना है।
याचिकाकर्ता पृथ्वी राज चौहान की ओर से पूर्व सॉलिसिटर जनरल मोहन पराशरन और वरिष्ठ वकील बलबीर सिंह अपना पक्ष रखेंगे। ब्रीफिंग काउंसिल निशांत गौतम ने बताया कि मौजूदा संशोधित कानून संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है साथ ही यह अनुच्छेद 14 और 21 का सीधे तौर पर उल्लंघन कर रहा है।
इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि संसद के दोनों सदनों ने ‘मनमाने तरीके’ से कानून में संशोधन करने और इसके पहले के प्रावधानों को बहाल करने का ऐसे निर्णय किया ताकि निर्दोष व्यक्ति अग्रिम जमानत के अधिकार का इस्तेमाल नहीं कर सके।
शीर्ष अदालत ने इस कानून का सरकारी कर्मचारियों के प्रति दुरूपयोग होने की घटनाओं का जिक्र करते हुये 20 मार्च को अपने फैसले में कहा था कि इस कानून के तहत दायर शिकायत पर तत्काल गिरफ्तारी नहीं होगी. न्यायालय ने इस संबंध में अनेक निर्देश दिये थे और कहा था कि अजा/अजजा कानून के तहत दर्ज ममलों में लोक सेवक को सक्षम प्राधिकारी की पूर्व अनुमति के बाद ही गिरफ्फ्तार किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के 20 मार्च के आदेश को लागू किया जाए। एससी-एसटी संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नए कानून 2018 में नए प्रावधान 18 A के लागू होने से फिर दलितों को सताने के मामले में तत्काल गिरफ्तारी होगी और अग्रिम जमानत भी नहीं मिल पाएगी। याचिका में नए कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है।
एससी एसटी संशोधन कानून 2018 को लोकसभा और राज्यसभा ने पास कर दिया था और नोटिफिकेशन जारी हो चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने गत 20 मार्च को दिए गए फैसले में एससी-एसटी कानून के दुरुपयोग पर चिंता जताते हुए दिशा निर्देश जारी किए थे।
क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में शिकायत मिलने के बाद तुरंत मामला दर्ज नहीं होगा डीएसपी पहले शिकायत की प्रारंभिक जांच करके पता लगाएगा कि मामला झूठा या दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं है। इसके अलावा इस कानून में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभियुक्त को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। सरकारी कर्मचारी की गिरफ्तारी से पहले सक्षम अधिकारी और सामान्य व्यक्ति की गिरफ्तारी से पहले एसएसपी की मंजूरी ली जाएगी। इतना ही नहीं कोर्ट ने अभियुक्त की अग्रिम जमानत का भी रास्ता खोल दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद देशभर में विरोध हुआ था जिसके बाद सरकार ने कानून को पूर्ववत रूप में लाने के लिए एससी-एसटी संशोधन बिल संसद में पेश किया था और दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेजा गया था। राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद संशोधन कानून प्रभावी हो गया है।
एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18 ए जोड़ी गई
इस संशोधित कानून के जरिए एससी-एसटी अत्याचार निरोधक कानून में धारा 18 ए जोड़ी गई है जो कहती है कि इस कानून का उल्लंघन करने वाले के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं है और न ही जांच अधिकारी को गिरफ्तारी करने से पहले किसी से इजाजत लेने की जरूरत है।
संशोधित कानून में यह भी कहा गया है कि इस कानून के तहत अपराध करने वाले आरोपी को अग्रिम जमानत के प्रावधान (सीआरपीसी धारा 438) का लाभ नहीं मिलेग, यानि अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी। संशोधित कानून में साफ कहा गया है कि इस कानून के उल्लंघन पर कानून में दी गई प्रक्रिया का ही पालन होगा और अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी।
साफ है कि यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट के आदेश से बिल्कुल उलट होगा और पहले की तरह इस कानून में शिकायत मिलते ही एफआईआर दर्ज की जाएगी और अभियुक्त की गिरफ्तारी होगी। और किसी भी परिस्थिति में अभियुक्त को अग्रिम जमानत नहीं मिलेगी और उसे जेल जाना होगा।