जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : बहुराष्ट्रीय कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन के दोषपूर्ण हिप इम्प्लांट को भारत के 4700 मरीजों को लगाए जाने के मद्देनजर चिकित्सा विशेषज्ञों ने सरकार से मेडिकल इम्प्लांटों के उपयोग पर नजर रखने के लिए ‘‘राष्ट्रीय ज्वाइंट रिप्लेसमेंट रजिस्ट्री’’ नामक संस्था बनाए जाने की मांग की है।
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन तथा इंडियन कार्टिलेज सोसायटी (आईसीएस) के अध्यक्ष डॉ. राजू वैश्य ने कहा कि हमारे देश में यह बिडंबनापूर्ण स्थिति है कि भारत में 4700 मरीजों को दोषपूर्ण इंम्प्लांट लगाए गए लेकिन उनमें से 3600 मरीजों के बारे में कुछ पता ही नहीं चला है। जॉनसन एंड जॉनसन कम्पनी कहती है कि हॉस्पिटलों के पास इन मरीजों का डाटा होगा। हालांकि जिन अस्पतालों में इन इंप्लांटों की आपूर्ति हुई उन अस्पतालों में उपलब्ध डाटा से इन मरीजों की पहचान करना मुश्किल नहीं है।
डॉ. राजू वैश्य ने कहा कि हमारे देश में राष्ट्रीय ज्वांइट रिप्लेसमेंट रजिस्ट्री जैसी कोई सरकारी संस्था नहीं हैं हालांकि कुछ वर्श पहले ऐसी संस्था बनाने की सिफारिश की गई थी। उन्होंने कहा कि जॉनसन एंड जॉनसन के हिप इंप्लांट के दोषपूर्ण होने के बारे में कम से कम 2010 से ही पता थी लेकिन केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की और यह हमारे लिए बहुत बड़ी नियामक विफलता है।
डॉ. राजू वैश्य ने कहा कि उन्होंने सन 2012 में ‘‘द जर्नल ऑफ आर्थोप्लास्टी’’ में प्रकाशित अपने एक पत्र में जॉनसन एंड जॉनसन के हिप इंप्लांट के दोषपूर्ण होने के मुद्दे को उठाया था। उनका यह पत्र ‘‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के आर्थोपेडिक शल्य चिकित्सकों की एक टीम की ओर से प्रकाशित शोध पत्र ‘‘सूजन वाली आर्थराइटिस में हिप रिसरफेसिंग आर्थोप्लास्टी : तीन से पांच साल की फौलोअप स्टडी’’ के प्रतिक्रियास्वरूप लिखा गया था जिसमें उन्होंने कहा था कि आस्ट्रेलिया समेत दुनिया भर मे जॉनसन एंड जॉनसन के हिप इंम्प्लांट को वापस लिया जा रहा है लेकिन भारत में इस इम्प्लांट का इस्तेमाल जारी है।
इंडियन आर्थोपेडिक एसोसिएशन (आईओए) के सचिव डॉ. अतुल श्रीवास्तव ने भी ऐसी राष्ट्रीय संस्था बनाने की सलाह पर सहमति जताई। उन्होंने कहा कि ऐसी संस्था को राष्ट्रीय ज्वाइंट रिप्लेसमेंट रजिस्ट्री या राष्ट्रीय हेल्थकेयर डाटा संग्रह एवं प्रबंधन समिति जैसा नाम दिया जा सकता है ताकि दोषपूर्ण इंप्लांटों या मेडिकल उपकरणों का उपयोग बंद हो सके।
नई दिल्ली के फोर्टिस एस्कार्ट्स हार्ट इंस्टीच्यूट एंड रिसर्च सेंटर के ब्रेन एवं स्पाइन सर्जरी के अतिरिक्त निदेशक डॉ. राहुल गुप्ता ने कहा कि हमारे देश में ऐसा कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है ताकि मेडिकल इंप्लांटों एवं चिकित्सा उपकरणों पर नजर रखी जा सके और ऐसे में आने वाले समय में और बड़ी विफलता सामने आ सकती है। हमारे देश में किसी नियमन के अभाव में दोषपूर्ण इंप्लांटों एवं चिकित्सा उपकरणों की खामियों का पता नहीं चलता और अगर पता चल भी जाता है तो वर्षों तक कोई कार्रवाई नहीं हो पाती।
नई दिल्ली के कालरा हास्पीटल एंड एसआरसीएनसी के मेडिकल निदेशक डॉ. आर एन कालरा कहते हैं कि विकसित देशो में ऐसी स्थापित प्रणाली है ताकि डॉक्टर एवं मरीज किसी इंप्लांट के बारे में अपनी राय एवं उससे जुड़ी शिकायत दर्ज करा सकते हैं ताकि सरकारी अॅथारिटी को तत्काल किसी इंप्लांट में मौजूद खामी के बारे में पता चल जाए लेकिन भारत में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
गौरतलब है कि जिन 4700 मरीजों को जॉनसन एंड जॉनसन के हिप इंप्लांट लगाए गए उनमें से चार की मौत हो चुकी है और 3600 मरीजों का कुछ अता-पता नहीं चला है। भारत में 2006 से ही इस दोषपूर्ण हिप इंप्लांट का उपयोग हो रहा था। दिसंबर 2009 में आस्ट्रेलिया में इस इंप्लांट की खामी के कारण इसका उपयोग बंद कर दिया गया तथा अगस्त 2010 में पूरी दुनिया से यह इम्प्लांट वापस ले लिया गया लेकिन भारत ने कई वर्ष के इंतजार के बाद 2017 में दोषपूर्ण इंप्लांट की जांच की लिए एक कमेटी बनाई जिसने फरवरी 2018 में अपनी रिपोर्ट सौंपी जिसमें प्रभावित मरीज को 20 लाख रुपए का मुआवजा देने की सिफारिश की गई। लेकिन इस रिपोर्ट में यह बताया गया कि जिन 4700 मरीजों को यह दोषपूर्ण इम्प्लांट लगाया गया उनमें से 3600 मरीजों का पता नहीं लगाया जा सका।