जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित दंडात्मक प्रावधान को असंवैधानिक करार देते हुए उसे मनमाना और महिलाओं की व्यक्तिकता को ठेस पहुंचाने वाला बताते हुए निरस्त किया।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से व्यभिचार से संबंधित 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त किया।
भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के अनुसार यदि कोई पुरुष यह जानते हुये भी कि महिला किसी अन्य व्यक्ति की पत्नी है और उस व्यक्ति की सहमति या मिलीभगत के बगैर ही महिला के साथ यौनाचार करता है तो वह पर स्त्रीगमन के अपराध का दोषी होगा। यह बलात्कार के अपराध की श्रेणी में नहीं आयेगा। इस अपराध के लिये पुरुष को पांच साल की कैद या जुर्माना अथवा दोनों की सजा का प्रावधान था।
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति आर. एफ. नरिमन, न्यायमूर्ति ए. एम.खानविलकर, न्यायमूर्ति धनन्जय वाई. चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने एकमत से कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है।
इस मामले में हुई सुनवाई से संबंधित घटनाक्रम कुछ इस प्रकार रहा
10 अक्टूबर, 2017 : केरल के एनआरआई जोसेफ शाइन ने न्यायालय में याचिका दायर कर आईपीसी की धारा 497 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी। याचिका में शाइन ने कहा कि पहली नजर में धारी 497 असंवैधानिक है क्योंकि वह पुरूषों और महिलाओं में भेदभाव करता है तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है।
आठ दिसंबर, 2017 : न्यायालय ने व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक प्रावधानों की संवैधानिक वैधता की समीक्षा करने पर हामी भरी ।
पांच जनवरी, 2018 : न्यायालय ने व्यभिचार से जुड़े दंडात्मक कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा ।
11 जुलाई, 2018 : केन्द्र ने न्यायालय से कहा कि धारा 497 को निरस्त करने से वैवाहित संस्था नष्ट हो जाएगी ।
एक अगस्त, 2018 : संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई शुरू की।
दो अगस्त, 2018: न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक पवित्रता एक मुद्दा है लेकिन व्यभिचार के लिए दंडात्मक प्रावधान अंतत: संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन है।
आठ अगस्त, 2018: केन्द्र ने व्यभिचार के संबंध में दंडात्मक कानून बनाए रखने का समर्थन किया, कहा कि यह सामाजिक तौर पर गलत है और इससे जीवनसाथी, बच्चे और परिवार मानसिक तथा शारीरिक रूप से प्रताड़ित होते हैं।
आठ अगस्त, 2018 : न्यायालय ने छह दिन तक चली सुनवाई के बाद व्यभिचार संबंधी दंडात्मक प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रखा ।
27 सितंबर, 2018 : न्यायालय की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक बताते हुए इस दंडात्मक प्रावधान को निरस्त किया ।