जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । सुप्पीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई और उनकी गिरफ्तारी मामले में एसआईटी जांच की मांग वाली इतिहासकार रोमिला थापर एवं अन्य की याचिका पर शुक्रवार को अपना फैसला सुना दिया। कोर्ट ने उनकी नजरबंदी चार हफ्तों के लिए बढ़ा दी।
कोर्ट ने कहा कि आरोपी यह नहीं चुन सकता कि कौन सी जांच एजेंसी को मामले की जांच करनी चाहिए। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पांचों कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति खानविलकर ने कहा कि यह गिरफ्तारियां राजनीतिक अहसमति की वजह से नहीं हुई हैं, बल्कि पहली नजर में ऐसे साक्ष्य हैं जिनसे प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के साथ उनके संबंधों का पता चलता है।
हालांकि, न्यायमूर्ति डी. वाई. चन्द्रचूड़ ने बहुमत के विपरीत अपना फैसला पढ़ा। उन्होंने कहा कि पांच आरोपियों की गिरफ्तारी राज्य द्वारा उनकी आवाज को दबाने का प्रयास है।
इस मामले में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ की पीठ ने 20 सितंबर को दोनों पक्षों के वकीलों की दलील सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रखा था। इस दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, हरीश साल्वे और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी-अपनी दलीलें रखी थीं।
पीठ ने महाराष्ट्र पुलिस को मामले में चल रही जांच से संबंधित अपनी केस डायरी पेश करने के लिये कहा था। बता दें कि पांचों कार्यकर्ता वरवरा राव, अरुण फरेरा, वरनॉन गोंजाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा 29 अगस्त से ही अपने-अपने घरों में नजरबंद हैं।
थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक एवं देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रोफेसर सतीश देशपांडे और मानवाधिकारों के लिये वकालत करने वाले माजा दारुवाला की ओर से दायर याचिका में इन गिरफ्तारियों के संदर्भ में स्वतंत्र जांच और कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई की मांग की गई थी।
गौरतलब है कि पिछले साल 31 दिसंबर को ‘एल्गार परिषद’ के सम्मेलन के बाद राज्य के कोरेगांव-भीमा में हिंसा की घटना के बाद दर्ज एक एफआईआर के संबंध में महाराष्ट्र पुलिस ने इन्हें 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था। शीर्ष न्यायालय ने 19 सितंबर को कहा था कि वह मामले पर ‘पैनी नजर’ बनाये रखेगा, क्योंकि ‘सिर्फ अनुमान के आधार पर आजादी की बलि नहीं चढ़ायी जा सकती है।’
वहीं, वरिष्ठ अधिवक्ता आनंद ग्रोवर, अश्विनी कुमार और वकील प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया था कि समूचा मामला मनगढ़ंत है और पांचों कार्यकर्ताओं की आजादी के संरक्षण के लिये पर्याप्त सुरक्षा दी जानी चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने भी कहा था कि अगर साक्ष्य ‘मनगढ़ंत’ पाये गये तो न्यायालय इस संदर्भ में एसआईटी जांच का आदेश दे सकता है।