जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली। अहिंसा के पूजारी के जन्मदिन पर किसानों के ऊपर गोलियां चलाई गई । वही हरियाणा में कर्ज चुकाने वाले एक किसान की मौत हो गई।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि लाखो करोड़ रूनए लेकर नीरव मोदी भाग गए
नाना पटोले, अध्यक्ष, अखिल भारतीय किसान खेत मज़दूर कांग्रेस व चौधरी हरिंदर मलिक, पूर्व सांसद भी मौजूद थे।
भोले किसानों को ‘कोरे आश्वासनों’ के ‘राजनैतिक लॉलीपॉप’ दे, कर रहे ‘विश्वासघात’
‘जय जवान- जय किसान’ मोदी सरकार में बना ‘लूट किसान-पीट किसान’ !
किसानों पर गोलियों और लाठियों का क्रूर किरदार – ‘मोदी सरकार’
“आज़ाद भारत में किसानों के साथ न्याय नहीं हुआ तो करोड़ों जाग्रत किंतु भूखे रहने वाले किसान देश में ऐसी गड़बड़ी मचा देंगे कि एक बलशाली हुकूमत की फौजी ताकत भी उसे नहीं रोक सकेगी “- महात्मा गांधी
ऐसा प्रतीत होता है कि कल गाँधी व शास्त्री जी की जयंती पर किसानों को गहरे ज़ख़्म देने वाली मोदी सरकार के लिए ही यह कहा गया हो।
आज देश के कोने कोने से एक ही स्वर किसानों का सुनाई देता है- “नरेंद्र मोदी किसान विरोधी”। किसानों के सब्र की इंतेहा हो गई है । आज देश के किसान की हालत क्या है :-
• कल गाँधी जयंती पर, एक तरफ किसान दिल्ली में लाठियों से पिट रहे थे, तो दूसरी तरफ, मात्र 9 लाख का कर्जा न चुका पाने पर, भिवानी (हरियाणा) के किसान रणबीर सिंह ने जेल की सलाखों के पीछे दम तोड़ दिया। शायद गाँधी जयंती पर यह सबसे दर्दनाक घटना थी।
• किसान का सीना छलनी करती गोलियां व शरीर पर घाव देती लाठियाँ आज पूरे देश में मोदी सरकार के जुल्मों की निशानी बन गए है – चाहे वो मंदसौर (मध्य प्रदेश) में आधा दर्जन किसानों को पुलिस फायरिंग में मौत के घाट उतारना हो, दाहोद (गुजरात) में बेकसूर किसान को पुलिस की गोलियों से भूनना हो, चोमू व श्रीगंगानगर (राजस्थान) में किसानों पर गोलियां चलाना हो, या औरंगाबाद (महाराष्ट्र) में निहत्थे गन्ना किसानों पर गोलियाँ चलाना हो।
• भयंकर सूखे की मार झेल रहे तमिलनाडु के किसानों ने साल 2017 में दो महीने तक जंतर-मंतर व प्रधानमंत्री निवास पर प्रदर्शन किया, मल-मूत्र पीकर भी विरोध दर्ज किया, अपने साथी किसानों के नर-कंकालों की खोपडि़याँ भी लाये, पर राहत देना तो दूर, मोदी जी ने उन्हें मिलने तक से इंकार कर दिया।
• मार्च 2018 में महाराष्ट्र के नासिक से चल, 50,000 किसान दो सौ किलोमीटर दूर भाजपा सरकार का दरवाजा खटखटाने मुंबई पहुंचे। पैरों में छाले और दिल लहूलुहान था। पर झूठे भाजपाईयों ने वादा कर सब ठुकरा दिया। अप्रैल, 2018 में भावनगर (गुजरात) में 4,000 एकड़ अधिगृहित जमीन का मुआवजा माँगने वाले 10,000 से अधिक किसानों को राहत की बजाय बेरहमी की लाठियाँ मिली।
• सितम्बर 2018 में राजस्थान के श्रीगंगानगर – पदमपुर मार्ग पर अपनी मांग रखने वाले किसानों पर भाजपा ने बर्बरतापूर्ण तरीके से लाठियाँ व गोलियाँ चलाई। यही हाल बीकानेर जिले के लूणकरणसर में 11 दिनों तक चले किसान आंदोलन पर लाठियां चला व किसानों को लहूलुहान कर किया।
• वो भाजपा शासित हरियाणा हो, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ या उत्तराखंड बड़े पैमाने पर किसानों का दमन, गोलियाँ व लाठियाँ आए दिन की कहानी है। और कल गाँधी जी की 150वीं जयंती पर तो दिल्ली-उत्तर प्रदेश बॉर्डर पर सरकारी हिंसा का नंगा तांडव दिखा।
कल किसानों पर लाठियाँ- अश्रु गैस- वॉटर कैनन चला रही मोदी- योगी सरकारों ने आनन-फानन में रातों-रात एक बार फिर किसानों को ‘झूठे वादों की टोकरी’ पकड़ा दी ताकि आंदोलन खत्म हो जाए। पर सवाल यह है कि ‘राजनैतिक लॉलीपॉप’ व ‘वादों के विश्वासघात’ के सहारे भाजपाई सरकारें कब तक भोले किसानों को छलती रहेंगी।
समय आ गया है कि मोदी जी देश के अन्नदाता को जवाब दें:-
1) साल, 2014 में मोदी जी ‘लागत +50% मुनाफा’ का वादा कर सत्ता की सीढ़ी चढ़े थे। सवाल यह है कि आज यह वादा ‘जुमला’ क्यों बन गया? संलग्न A1 देखें।
2) RBI की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल, 2014 से अप्रैल, 2018 के बीच मोदी सरकार ने चुनिंदा उद्योगपतियों का 3,17,000 करोड़ कर्ज माफ कर दिया। सवाल यह है कि देश के अन्नदाता 62 करोड़ किसानों को ‘कर्जमुक्ति’ से मोदी सरकार कन्नी क्यों काट रही है?
3) आजादी के 71 वर्षों में किसी सरकार ने ‘खेती पर टैक्स’ नहीं लगाया। सवाल यह है कि मोदी सरकार ने किसान की खेती पर ‘गब्बर सिंह टैक्स’ GST क्यों लगाया? क्यों किसान खाद पर 5 प्रतिशत जीएसटी, ट्रैक्टर/खेती उपकरणों पर 12 प्रतिशत जीएसटी, कीटनाशक दवाईयों पर 18 प्रतिशत जीएसटी, ट्रैक्टर टायरों व ट्रांसमिशन पर 18 प्रतिशत जीएसटी देने को मजबूर है?
4) डीज़ल की अनाप-शनाप कीमतें बढ़ा किसान की कमर क्यों तोड़ डाली? सवाल यह है कि जब 16 मई, 2014 को डीज़ल की कीमत 55.49 रु. प्रति लीटर थी, जो आज 75.25 रु. प्रति लीटर है, तो फिर किसान के ईंधन, डीज़ल की कीमत 19.76 रु. प्रति लीटर क्यों बढ़ाई?
5) किसान की खाद की कीमतें बेतहाशा बढ़ाकर, उस पर बोझ क्यों डाला जा रहा है? DAP खाद की कीमत मई, 2014 में 1125 रु. प्रति बैग (50 किलो) थी। तो फिर वो आज बढ़कर 1400 रु. प्रति बैग (50 किलो) क्यों हो गई? यूरिया खाद के कट्टे का वजन 50 किलो से घटाकर, चालाकी से 45 किलो कर दिया गया, परंतु कीमतें वही रहीं? ‘सुपर’ खाद के 50 किलो के कट्टे की कीमत 260 रु. से बढ़ाकर 310 रु. क्यों कर दी? NPK खाद की कीमत बढ़ाकर 1350 रु. क्यों कर दी? क्या यह सही नहीं कि हर साल किसान 89.80 लाख टन डीएपी खरीदता है यानि अकेले डीएपी खरीदने उसे 4939 करोड़ रु. की चपत क्यों लगाई?
6) गन्ना पैदा करने वाले किसान का 16,600 करोड़ बकाया (अकेले उत्तर प्रदेश में 10,622 करोड़ बकाया) कब देंगे? क्या मोदी सरकार ने 14 दिन में गन्ना की सारी बकाया राशि देने का वादा नहीं किया था?
7) PM फसल बीमा योजना अब प्राईवेट बीमा कंपनी मुनाफा योजना क्यों बन गई?
8) क्या यह सही नहीं कि साल, 2016-17 व 2017-18 में कृषि कल्याण कर से मोदी सरकार ने 19,000 करोड़ रु. इकट्ठा किया, जिसका इस्तेमाल बीमा कंपनियों को फसल बीमा का प्रीमियम देने के लिए किया गया? क्या यह सही नहीं कि दो साल में किसानों को फसल बीमा योजना में मुआवज़ा मिला, केवल 5,650 करोड़, जबकि बीमा कंपनियों को प्रीमियम से मुनाफा हुआ, 14,828 करोड़ रु.? ये घोर अन्याय क्यों ?
9) क्या कृषि निर्यात मोदी सरकार में औंधे मुंह नहीं गिरा? क्या विदेशों से कृषि उत्पादों का बेतहाशा आयात नहीं बढ़ा? क्या किसान पर यह दोहरी मार नहीं?
10) क्या पूरे देश में फसल की कीमतों यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य भी न मिल पाने की वजह से किसानों में हाहाकार नहीं मचा है? क्या उड़द की एमएसपी है, 5600 रु. क्विंटल पर किसान को मिल रहा है, 2000-2200 रु. क्विंटल? क्या मूंग की एमएसपी है, 6975 रु. प्रति क्विंटल पर किसान को मिल रहा है, 4500-4600 रु. प्रति क्विंटल? क्या बाजरे की एमएसपी है, 1950 रु. प्रति क्विंटल, परंतु किसान को मिल रहा है 1400 रु. प्रति क्विंटल? क्या कपास और धान पैदा करने वाले किसान को फसल औने-पौने दाम में नहीं बेचनी पड़ रही? क्या किसान टमाटर की फसल को 1.5 रु. किलो में बेचने को मजबूर नहीं? क्या यही हाल लहसुन की फसल का भी नहीं? क्या मोदी सरकार ने इस बारे में सोचा है?