अमलेंदु भूषण खां / नई दिल्ली। विकास के मामले को लेकर नरेंद्र मोदी की सरकार जितनी भी ढोल पीटे लेकिन सच्चाई यह है कि भूख व कुपोषण के मामले में भारत नीचे की ओर ही जा रहा है। बताया जा रहा है कि 2016 की तुलना में भारत तीन पायदान और खिसक कर 100वें स्थान पर पहुंच गया है। भूख और कुपोषण के खिलाफ होने वाले पहले विश्व संसदीय शिखर सम्मेलन में भारत को इस बात की सफाई देनी होगी। यह सम्मेलन 29-30 अक्तूबर 2018 को स्पेन की राजधानी मैड्रिड में होना है। इसका आयोजन संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) कर रहा है। सम्मेलन के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री को न्यौता दिया गया है।
पिछले वर्ष अक्तूबर में वॉशिंगटन स्थित इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) की ओर से वैश्विक भूख सूचकांक पर जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि दुनिया के 119 विकासशील देशों में भूख के मामले में भारत 100वें स्थान पर है। इससे पहले बीते साल यानी 2016 में भारत 97वें स्थान पर था।
कृषि मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की ओर से भारत को न्यौता मिला है और भारत इसमें प्रतिनिधित्व करेगा। लेकिन अभी यह तय नहीं है कि इसमें केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह जाएंगे या अपने किसी सहयोगी मंत्री को भेजेंगे। गौरतलब है कि केंद्रीय कृषि मंत्रालय में तीन-तीन राज्य मंत्री हैं।
एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में 81.5 करोड़ लोग भूख से पीड़ित हैं जबकि चार साल पहले यह तादात 77 करोड़ थी। जाहिर है कि भूख से पीड़ित लोगों की तादात बढ़ती जा रही है और यह वैश्विक चिंता का विषय है। जहां तक भारत की बात है तो भारत उत्तर कोरिया, इराक और बांग्लादेश से भी बदतर हालत में है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में तस्वीर विरोधाभासी है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्यान उत्पादक देश होने के साथ ही इसके माथे पर दुनिया में कुपोषण के शिकार लोगों की आबादी के मामले में भी दूसरे नंबर पर होने का धब्बा लगा है। भूख पर इस रिपोर्ट से साफ है कि तमाम योजनाओं के एलान के बावजूद अगर देश में भूख व कुपोषण के शिकार लोगों की आबादी बढ़ रही है तो योजनाओं को लागू करने में कहीं न कहीं भारी गड़बड़ियां और अनियमितताएं हैं। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) और मिड डे मील जैसे कार्यक्रमों के बावजूद न तो भूख मिट रही है और न ही कुपोषण पर अंकुश लगाने में कामयाबी मिल सकी है।