जनजीवन ब्यूरो/ नई दिल्ली । मध्यप्रदेश चुनाव में इस बार सत्तारुढ़ भाजपा को कांग्रेस की तरफ से कड़ी चुनौती मिल रही है। भाजपा लगातार 15 साल से सत्ता पर काबिज है और कांग्रेस वापसी की पुरजोर कोशिश में है। इस बार मुख्यमंत्री शिवराज चौहान को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें से सबसे बड़ा मुद्दा एससी-एसटी एक्ट का है। सवर्ण मतदाताओं में इसे लेकर भाजपा के प्रति भारी रोष दिखाई दे रहा है।
जातियों की आबादी के नजरिए से देखें तो राज्य में एससी-एसटी 33 फीसदी, सवर्ण 29 फीसदी, ओबीसी 14 फीसदी और अन्य 24 फीसदी हैं। एक वक्त इस राज्य की सियासत में ब्राह्मणों का वर्चस्व हुआ करता था लेकिन अब हालात बदल गए हैं। 1956 से 1990 तक राज्य में 5 ब्राह्मण मुख्यमंत्री रहे।
राज्य की 30 सीटें ऐसी हैं जो इस बार भाजपा का खेल बिगाड़ सकती हैं। इस बार इन सीटों पर घमासान मचना तय है और जो भारी पड़ेगा उसी को सत्ता की चाबी मिल सकती है। ये 30 सीटें सतना, रीवा, सीधी, सिंगरौली, शहडोल, अनूपपुर और उमरिया जिले में हैं। ये 30 सीटें विंध्य यानी बघेलखंड क्षेत्र में आती हैं।
सतना
यहां कुल 7 सीटें हैं जहां 2013 में कांग्रेस ने 5 सीटें जीतकर सभी को चौंका दिया था। हालांकि, मैहर सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने बाजी मार ली थी।
रीवा
रीवा जिले में कुल 8 विधानसभा सीटें हैं और 2013 में यहां भापा का पलड़ा भारी रहा है। भाजपा ने 5, कांग्रेस ने 2 और बसपा ने एक सीट जीती थी। 28 सितंबर को राहुल गांधी रीवा पहुंचे थे और रीवा राजघराने के महराज मार्तंड सिंह के बेटे पुष्पराज सिंह को कांग्रेस में शामिल करवाकर भाजपा की परेशानी बढ़ा दी।
सीधी
यहां कुल 4 विधानसभा सीटें हैं जिनमें से भाजपा और कांग्रेस के पास 2-2 सीटें हैं। चुरहट की सीट भी यही है जो कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह की सीट रही है। यहां मुकाबला दिलचस्प रहने की संभावना है।
सिंगरौली और शहडोल
सिंगरौली की तीन सीटों में दो भाजपा के पास और एक कांग्रेस के पास है। शहडोल में भी तीन सीटें हैं जिनमें दो भाजपा के पास और एक पर कांग्रेस का कब्जा है।
अनूपपुर और उमरिया
अनूपपुर में तीन जबकि उमरिया में दो विधानसभा सीटें हैं। अनूपपुर में दो सीटें कांग्रेस के पास और एक सीट भाजपा के पास है। उमरिया की दोनों सीटें बांधवगढ़ और मानपुर भाजपा के कब्जे में है।
बता दें कि मध्यप्रदेश में 28 नवंबर को मतदान होगा। मध्यप्रदेश में इस बार भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला है। भाजपा 15 साल से सत्ता पर काबिज है और इस बार वोटरों में उसके प्रति नाराजगी देखी जा रही है। सीएम शिवराज सिंह से सामने सत्ता बचाए रखने की चुनौती है। बसपा ने कांग्रेस को झटका देकर शिवराज की चुनौती की थोड़ा कम जरूर किया है लेकिन भाजपा का रास्ता आसान नहीं है।