अमलेंदु भूषण खां
तेजी से बदलते कूटनीतिक वातावरण का बड़ा संदर्भ और समाभिरूपता से भिन्नता की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भारत-रूस द्विपक्षीय संबंधों की ओर इशारा करती है। समकालीन भू राजनीतिक और भू आर्थिक परिदृश्य, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत-रूस साझेदारी, क्षेत्रीय मुद्दे विशेषकर ऐसे मुद्दे जो क्षेत्र को प्रभावित कर रहे हैं और उनमें दोनों देशों की अत्याधिक रूचि है और अंत में द्विपक्षीय संबंधों की विशेषताओं, बाधाओं और संभावनाओं को समझना महत्वपूर्ण है।
भारत के दृष्टिकोण में रूस दुनिया का बड़ा खिलाड़ी है जिसका व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव और जिम्मेदारी है। भारतीय नेतृत्व रूस के साथ संबंधों को भारतीय विदेश नीति का मुख्य स्तंभ मानता है। इसलिए दोनों देशों के बीच दोस्ती और सहयोग के समीकरणों का वैश्विक और क्षेत्रीय महत्व है।
दुनिया को देखने के दृष्टिकोण में भारत के कई मुख्य तत्व समाविष्ट हैं। इनमें आर्थिक विकास के लिए शांति और सुरक्षा के प्रति वचनबद्धता को जरूरी या फिर कहें कि वास्तविक प्राथमिकता, अंतर्राज्यीय समस्याओं को सुलझाने के लिए बातचीत और शांतिपूर्ण तरीकों पर आश्रित रहने के लिए बताया गया है। धारणा है कि समकालीन दुनिया आवश्यक बहु-ध्रुवीय है, जिसमें अलग-अलग आकार और मजबूती के खंबे हैं और इनके बीच संतुलन शांति और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है। शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से यह धारणा है कि विश्व के शासन ढांचे को सत्ता समीकरणों के बदलाव में और अधिक क्रमिक होना चाहिए।
खासकर यूएसएसआर के समय से ही रूस का दुनिया को देखने का नजरिया बदला है। शीत युद्ध के बाद से शक्ति के संतुलन में आए बदलाव का सकारात्मक असर है। यह विचारधारा की बजाय राष्ट्रीय हितों को प्रधानता देता है और यह अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों को सुलझाने के लिए गुट-आधारित सोच की बजाय नेटवर्क कूटनीति को मानता है। सोवियत संघ प्राचीन समय की दो महाशक्तियों में से एक था, वहीं रूस आज जी-8 और ब्रिक्स का महत्वपूर्ण सदस्य है।
‘ कॉन्सेप्ट ऑफ फ़ॉरेन पॉलिसी ऑफ रशियन फेडरेशन’ नाम के दस्तावेज से यह स्पष्ट होता है कि रूस का लक्ष्य राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना, रूसी अर्थव्यवस्था को तेज और गतिशील विकास के लिए अनुकूल बाहरी परिस्थितियां बनाना, अंतर्राष्ट्रीय शांति और विश्वव्यापी सुरक्षा को प्रोत्साहन देना, अन्य देशों के साथ पारस्परिक हितकारी और बराबरी के द्विपक्षीय और बहुपक्षीय साझेदारी संबंध विकसित करना है। मॉस्को में यह मान लिया गया है कि मॉडर्न इतिहास में पहली बार वैश्विक स्तर पर प्रबल प्रतिस्पर्धा हो रही है, विकास के विभिन्न मॉडल सूचित करते हैं कि वे एक दूसरे से मुकाबला और संघर्ष करते हैं। दुनिया जिन चुनौतियों का सामना करती है, उनके अलावा उसे यूएन की केंद्रीय समन्वय भूमिका पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और दुनिया के पॉलिसेंट्रिक मॉडल पर आधारित क्षेत्रीय शासन के संयुक्त प्रयासों की जरूरत है। नेटवर्कों, संघों और आर्थिक समझौतों का उद्गमन सुरक्षा और वित्तीय तथा आर्थिक स्थिरता में वृद्धि औजार के रूप में आवश्यक है। रूसी व्यवस्था के कई औजारों में से एक सार्वजनिक कूटनीति है, जिसे वह दुनिया में अपनी वस्तुनिष्ठ समझ को आश्वस्त करने के लिए इस्तेमाल करता है।
पूर्व के पहलू के आधार पर मुख्य रूसी विशेषज्ञों की कमेटी (आरआईएसी) ने हाल ही में इस बात पर ध्यान दिया है कि अमेरिका और चीन के साथ भारत वैश्विक प्रभाव के केंद्र की हैसियत के लिए अधिकारपूर्ण दावा कर सकता है, लेकिन निष्कर्ष से पता चलता है कि भारत-रूस संबंधों को गतिहीनता का सामना करना पड़ा है। रूसी विद्वान (फ्योडोर लक्यानोव) के विश्लेषण में टिप्पणी की गई है कि भारत अपनी स्वतंत्रता को महत्वपूर्ण मानता है और उसके पास स्वतंत्र नीति पर चलने की क्षमता है। इस कारण से भारत ने विश्व सूची में एक नया स्तंभ स्थापित कर दिया है। लेकिन उन्होंने यह बात भी कही है कि भारत में वास्तविक सक्रिय नीति पर चलने की ललक नही है, क्योंकि नई दिल्ली गोलमाल स्थिति बनाता है…..जो सामान्य बयान के पीछे छिपी होती है। उन्होंने भारत को ऐसी विचारशील दुल्हन के रूप में दर्शाया है जिसे सब चाहते हैं और निष्कर्ष में कहा गया है कि मॉस्को अब भी भारत के लिए प्रतिस्पर्धा में कुछ अनुकूल परिस्थितियों का सामना कर रहा है।
इसी तरह रूस की भूमिका को लेकर भारत का दृष्टिकोण बेहद ध्यान देने योग्य है। यह ध्यान देने योग्य है कि भारतीय विश्लेषक वर्तमान रूस को पहले के सोवियत संघ से तुलना करने में मदद नही करते। उनमें से कई में सामान्यतः यह धारणा है कि रूस वास्तव में यूरोप और अपने पड़ोस में रूचि रखता है। इसके बावजूद रूस को अब भी दुनिया के मंच पर उभरते हुए साथी अर्थव्यवस्थाओं का महत्वपूर्ण खिलाड़ी माना जाता है। वह समय की कसौटी पर खरा उतरने वाला ऐसा मित्र है जिसके साथ भारत को अपने रिश्ते को समेकित और मजबूती प्रदान करनी चाहिए।
भारत-रूस संबंध द्विपक्षीय विवादों से बचा रहा है। इसे विशेष और विशेषाधिकृत कूटनीतिक साझेदारी के तौर पर समृद्धशाली बनाया गया है। इस तत्व और प्रक्षेप पथ को दोनों देश आपस में क्या कर रहे है और क्या नहीं के अतिरिक्त अमेरिका, चीन, ईयू और जापान जैसी बड़ी शक्तियों के संबंधों के स्वरूप के आधार पर ढाला गया है। इसलिए भारत-रूस की पारस्परिक समझ और सहयोग पर इस कारक के प्रभाव का अध्ययन और पता लगाना अति महत्वपूर्ण है।
इस संदर्भ में बहुपक्षीय व्यवस्था के संबंध में दो बातें कही जा सकती हैं। पहली, यूएन सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता को सुरक्षित करने की भारत की इच्छा को रूस का समर्थन, लेकिन भारत द्वारा यह आशा हमेशा से व्यक्त की जाती रही है कि रूस को और अधिक प्रयास करना चाहिए…….और वह इस दिशा में अधिक प्रयास करता नजर आ रहा है। दूसरी, आरआईसी (रूस, भारत और चीन), ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) और ईएएस (ईस्ट एशिया सम्मिट) इन तीन संस्थाओं के माध्यम से रूस और भारत अपने सहयोग और तालमेल को एक कदम आगे बढ़ा सकते हैं, यह रास्ता पारस्परिक फायदों को लंबे समय तक प्रोत्साहन दे सकता है।
द्विपक्षीय संबंधों के लिहाज से भारत और रूस दोनों को यह पता लगाने की जरूरत है कि उन्हें किन क्षेत्रों में बेहतर करने की जरूरत है। रक्षा, ऊर्जा (असैनिक परमाणु ऊर्जा सहित), संपर्क और आर्थिक संबंधों में आकर्षक संभावनाएं दिखाई देती हैं। इन सभी और अन्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को सर्वश्रेष्ठ ऊंचाइयों तक ले जाना चाहिए। इसके अलावा सार्वजनिक कूटनीति, मीडिया संपर्क, पर्यटन के क्षेत्र में अधिक सहयोग की जरूरत है। लोक समाज संपर्क मोटा लाभांश दे सकता है, मुख्यतः ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत के लोगों में वर्तमान रूस को लेकर सीमित जागरूकता है। इन सबसे से ज्यादा दोनों देशों के कूटनीति संवादों को विस्तृत करने की जरूरत है।