जनजीवन ब्यूरो अमृतसर । इसे इत्तेफाक कहें या दुर्भाग्य, 10 साल पहले जिस ट्रैक पर पिता की मौत हुई थी, उसी ट्रैक पर ‘रावण’ की जान चली गई, लेकिन जाते-जाते भी उसने बहादुरी वाला काम कर दिखाया। ऐसा काम, जिसे वो तीन जिंदगियां ताउम्र नहीं भूल पाएंगी। अगर वो न होता तो अमृतसर ट्रेन हादसे में मरने वालों की संख्या में तीन और जुड़ जाते।
खास बात यह है कि रावण का किरदार निभाने वाले दलबीर सिंह ने अपनी जान की परवाह किए बिना कई लोगों को रेल की पटरियों से हटाकर उनकी जान बचाई थी। दलबीर के एक दोस्त ने बताया कि तेज रफ्तार से आ रही ट्रेन को देखकर वह (दलबीर) उन्हें बचाने के लिए भागा था। उन्होंने कहा, ‘दलबीर ने सात से आठ लोगों को रेल की पटरियों से पीछे धकेला लेकिन उसकी नियति में कुछ और ही लिखा था। ट्रेन ने उसे कुचल दिया जिससे मौके पर ही उसकी मौत हो गई।’ दलबीर की आठ माह की एक बेटी है। 10 साल पहले इसी ट्रैक पर उनके दृष्टिहीन पिता की भी मौत हुई थी। दलबीर की आठ महीने की बेटी है। दलबीर को रामलीला से काफी लगाव था और हर साल उत्सुकता से इसका इंतजार करता था।
ट्रैक पर लोगों के बीच मौजूद थे दलबीर सिंह
अमृतसर ट्रेन हादसे में ‘रावण’ दलबीर सिंह भी मारे गए, जो उस वक्त ट्रैक पर ही मौजूद थे। इस खबर को सुनकर लोगों के होश उड़ गए। इस समय दलबीर का परिवार सदमे में है।
हादसे के बाद चश्मदीदों ने बताया, ‘भीड़भाड़ वाले इलाके से गुजरते हुए ट्रेन की रफ्तार अमूमन कम होती है लेकिन हादसे के वक्त ट्रेन काफी तेजी से गुजरी।’ उनका कहना था कि ऐसा मंजर उन्होंने पहले कभी नहीं देखा। वे अपने परिजनों को हादसे के बाद पहचान नहीं पा रहे थे। एक चश्मदीद के मुताबिक, ‘हादसे के बाद हाथ-पैर मिल जाते थे लेकिन यहां तो कुछ नहीं मिल रहा। हम पहचान नहीं पा रहे कि हमारे लोग कौन हैं।’
बताया जा रहा है कि दलबीर की मौत की खबर सुनकर उनकी मां और पत्नी बेहोश हो गई। उनके भाई को यकीन नहीं हो रहा है कि ऐसा हो गया। दलबीर कई साल से रावण का किरदार निभा रहे थे और कल वे घर से जल्दी निकल गए थे, ये कहकर कि उन्हें राम और लक्ष्मण को तैयार करना है।
दलबीर की पत्नी ने बताया कि वे एक खुशमिजाज इंसान थे। उन्हें रावण बनना और लोगों का मनोरंजन करना पसंद था। अपना काम करने के बाद वे जरूर लोगों के बीच पहुंच गए होंगे, लेकिन क्या पता था कि ये उनका आखिरी वक्त होगा।