अमलेंदु भूषण खां / नई दिल्ली । श्रीलंका में उस वक़्त राजनीतिक बवंडर खड़ा हो गया जब पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री बनाकर उनकी सत्ता में वापसी कराई गई। राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने प्रधानमंत्री रानिल विक्रमासिंघे को बर्खास्त कर राजपक्षे को शपथ दिलाई है। हालांकि विक्रमासिंघे ने इसे अवैध और असंवैधानिक बताया है और कहा है कि वो संसद में बहुमत साबित करेंगे।
श्रीलंका के संसदीय अधिकारियों के मुताबिक, राष्ट्रपति सिरीसेना ने 225 सदस्यीय संसद की सभी बैठकों को 16 नवंबर तक के लिए निलंबित करने का फैसला किया है। बता दें कि रानिल विक्रमसिंघे ने खुद को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त किए जाने के खिलाफ शनिवार को संसद की आपात बैठक बुलाई थी, ताकि वो अपना बहुमत साबित कर सकें।
प्रधानमंत्री से बर्खास्त किए जाने के बाद विक्रमासिंघे ने स्पीकर से रविवार को संसद का सत्र बुलाने को कहा था ताकि वो बहुमत साबित कर सकें। इसी मांग के बाद राष्ट्रपति ने संसद का निलंबन कर दिया। विक्रमासिंघे ने संसद में आपातकालीन सत्र की भी मांग की थी। विक्रमासिंघे का कहना है कि 225 सदस्यों वाली संसद में उनके पास बहुमत है और उन्हें पद से हटाया जाना असंवैधानिक है।
यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के नेता विक्रमसिंघे ने शुक्रवार को पद से हटाये जाने के बावजूद बतौर प्रधानमंत्री अपना कामकाज निपटाया। उन्होंने दावा किया कि मैं प्रधानमंत्री हूं और महिंदा राजपक्षे की नियुक्ति असंवैधानिक है।’
वहीं, संसद के अध्यक्ष करु जयसूर्या ने कहा है कि वह शनिवार को वैधानिक सलाह लेने के बाद इस बात का निर्णय करेंगे कि राजपक्षे को मान्यता दी जाए अथवा नहीं।
दरअसल, सिरीसेना ने अपने पत्र में कहा, ‘मैंने आपको संविधान के 42 (1) (अनुच्छेद) के तहत प्रधानमंत्री नियुक्त किया था और आपको नियुक्त करने के प्राधिकार से आपको नोटिस देता हूं कि आपको प्रधानमंत्री के पद से मुक्त किया जाता है।’ गौरतलब है कि सिरीसेना ने शुक्रवार को एक नाटकीय घटनाक्रम में प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को बर्खास्त करके उनकी जगह पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को नया प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया था।
सिरीसेना और विक्रमासिंघे में आर्थिक और सुरक्षा के मुद्दों पर बढ़ते मतभेदों के कारण यह नाटकीय घटनाक्रम सामने आया है। सिरीसेना के यूनाइटेड पीपल्स फ़्रीडम गठबंधन ने विक्रमासिंघे की यूनाइटेड नेशनल पार्टी से अलग होने की घोषणा की है।
इस साल की शुरुआत में राजपक्षे की पार्टी की स्थानीय चुनावों में जीत के बाद से यह सरकार लड़खड़ा रही थी। कहा जा रहा है कि राजधानी कोलंबो में जब राजपक्षे और सिरीसेना ये सब कुछ कर रहे थे तो विक्रमासिंघे दक्षिण-पश्चिमी तटीय शहर गॉल में थे।
श्रीलंका फ़्रीडम पार्टी में सिरीसेना और राजपक्षे के बीच 2014 के चुनाव में मतभेद उभरकर सामने आया था। चुनाव में सिरीसेना ने राजपक्षे को चुनौती दी थी और वो जीत हासिल करने में कामयाब रहे थे। एक बार फिर से दोनों मनमुटाव भुलाकर साथ आ गए हैं। कहा जा रहा है कि यह 2019 के चुनाव में साथ उतरने की तैयारी है। हालांकि सिरीसेना के इस क़दम की वैधानिकता पर सवाल उठ रहे हैं।
विक्रमासिंघे ने मीडिया से कहा है, ”मैं अब भी इस देश का प्रधानमंत्री हूं।” हालांकि वित्त मंत्री मंगला समरवीरा ने ट्वीट कर कहा, “सिरीसेना का फ़ैसला अवैध, असंवैधानिक और अलोकतांत्रिक है।”
2015 में नेशनल यूनिटी सरकार श्रीलंका के संविधान में 19वां संशोधन लाई थी। इसके तहत राष्ट्रपति की शक्तियों को सीमित किया गया था और प्रधानमंत्री को बर्खास्त करने की ताक़त को भी ख़त्म कर दिया था। इस संशोधन में कहा गया है कि राष्ट्रपति के पास प्रधानमंत्री को हटाने का अधिकार नहीं है। पीएम का पद तभी ख़ाली हो सकता है जब प्रधानमंत्री अपने पद से ख़ुद ही इस्तीफ़ा दे या फिर संसद की उसकी सदस्यता ख़त्म हो जाए। प्रधानमंत्री के इस्तीफ़े से संसद के भंग होने की तरफ़ बढ़ जाती है।
श्रीलंका के संविधान के अनुच्छेद 42(4) के मुताबिक़, ”प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति उस संसद सदस्य को करेगा जिस पर राष्ट्रपति को सदन में बहुमत साबित करने का भरोसा होता है।” हालांकि संविधान के अनुच्छेद 46 (2) के अनुसार, ”जब तक कैबिनेट मंत्री संविधान के नियमों के तहत काम करते हैं तब तक प्रधानमंत्री अपने पद पर बना रहेगा। प्रधानमंत्री की कुर्सी राष्ट्रपति को भेजे इस्तीफ़े या सांसदी ख़त्म होने की सूरत में ही जा सकती है।”
अभी तक साफ़ नहीं है कि यूनाइटेड नेशनल पार्टी इस संवैधानिक संकट का सामना कैसे करेगी। श्रीलंका ने हाल ही में नलिन परेरा को मुख्य न्यायाधीश बनाया था। संविधान के 19वें संशोधन के मुताबिक़ राजपक्षे फिर से राष्ट्रपति नहीं बन सकते हैं, क्योंकि अब कोई व्यक्ति दो कार्यकाल तक ही राष्ट्रपति बन सकता है और राजपक्षे दो कार्यकाल पूरे कर चुके हैं।
हालांकि सत्ता से बाहर रहने की तुलना में राजपक्षे प्रधानमंत्री बन अब अपनी मंशा को अंजाम तक पहुंचा सकते हैं। राजपक्षे अपने प्रत्याशी को राष्ट्रपति बनवा सकते हैं। अगर इस नए राजनीतिक गतिरोध से श्रीलंका में वक़्त से पहले चुनाव होता है तो राजपक्षे उस हालत में आ सकते हैं कि संविधान में फिर से संशोधन करवा दें और दो कार्यकाल की सीमा को ख़त्म कर दें।
कोलंबो के राजनीतिक विश्लेषक कुसाल परेरा के अनुसार, ”राजपक्षे की कोशिश रहेगी कि उन्हें संसद में दो तिहाई बहुमत मिले। संविधान के 19वें संशोधन के अनुसार दो तिहाई बहुमत के प्रस्ताव से संसद को भंग किया जा सकता है। हमलोग को उम्मीद है कि संसदीय चुनाव 2019 से पहले ही हो जाए। मेरा आकलन है कि राजपक्षे दो-तिहाई बहुमत की उम्मीद कर रहे हैं ताकि संविधान में संशोधन किया जा सके।”
विक्रमासिंघे की तकदीर दूसरी बार दगा दे गई। विक्रमासिंघे 2001 में श्रींलकाई फ़्रीडम पार्टी की गठबंधन सरकार में प्रधानमंत्री बने थे। 2004 में राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगे ने उन्हें प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था। शुक्रवार की शाम से श्रीलंका में राष्ट्रपति सिरीसेना के फ़ैसले को लेकर संवैधानिक सवालों पर चर्चा हो रही है। कहा जा रहा है कि इस फ़ैसले के साथ ही सिरीसेना और विक्रमासिंघे के बीच जारी सियासी चूहे और बिल्ली का खेल ख़त्म हो गया है। सिरीसेना से राजपक्षे के चुनाव हारने के बाद से ही यह खेल चल रहा था।
इस खेल को तब और हवा मिली जब राजपक्षे समर्थित श्रीलंका पोडुजाना पेरामुना (एसएलपीपी) को स्थानीय चुनाव में जीत मिली। यह धड़ा श्रीलंका फ़्रीडम पार्टी से अलग होकर बना था। हालांकि इसके बावजूद श्रींलका फ़्रीडम पार्टी में पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे के विश्वासपात्र मौजूद थे।
विश्लेषकों का मानना है कि राष्ट्रपति के रूप में अपने दूसरे कार्यकाल में राजपक्षे का भारत से संबंध अच्छा नहीं रहा। राजपक्षे को चीन के क़रीब बताया जाता है। चीन के साथ राजपक्षे ने ऐसे कई समझौते किए जो भारत को असहज करने वाले थे। कहा तो ये भी जाता है कि चीन ने 2014 में राजपक्षे को चुनाव में जीत दिलाने की कोशिश की थी, लेकिन राजपक्षे हार गए थे।
राजपक्षे की हार को भारत की जीत के तौर पर देखा गया था। इसी साल जून में न्यूयॉर्क टाइम्स में रिपोर्ट छपी थी कि चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड (सीएचईसी) ने राजपक्षे को चुनाव जिताने के लिए 70।6 लाख डॉलर की रक़म दी थी। हालांकि राजपक्षे, कोलंबो में चीनी दूतावास और चीन की सरकारी कंपनी सीएचइसी ने न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया था।
जुलाई में सिरीसेना की गठबंधन सरकार ने संसद में इस मुद्दे पर बहस कराई थी और इसकी जांच की घोषणा की थी। जब सिरीसेना सत्ता में आए थे तो उन्होंने राजपक्षे के कार्यकाल में शुरू की गईं चीन समर्थित परियोजनाओं को भ्रष्टाचार, ज़्यादा महंगा और सरकारी प्रक्रियाओं के उल्लंघन का हवाला देकर रद्द कर दिया था। हालांकि एक साल बाद ही सिरीसेना ने मामूली बदलावों के साथ सभी परियोजनाओं को बहाल कर दिया। 2009 में श्रीलंका में एलटीटीई का ख़ात्मा हुआ 26 साल पुराने गृह युद्ध के बाद चीन पहला देश था जो उसके पुनर्निर्माण में खुलकर सामने आया था।
भारत ने 2014 में सिरीसेना की उम्मीदवारी का समर्थन करने की बात कही थी और विक्रमासिंघे को भारत के दोस्त के तौर पर देखा गया था। हालांकि भारत ने राजपक्षे की लोकप्रियता को भी ख़ारिज नहीं किया।
पिछले साल जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीलंका गए तो उन्होंने राजपक्षे से मुलाक़ात की थी और अगस्त महीने में राजपक्षे ने भारत आकर मोदी से मुलाक़ात की थी। पिछले शनिवार को विक्रमासिंघे दिल्ली आए थे, लेकिन उस वक़्त तक कुछ ही अंदाज़ा नहीं था कि श्रीलंका में उनके ख़िलाफ़ इतना कुछ चल रहा है।