अमलेंदु भूषण खां / नई दिल्ली । 26 नवंबर 2008 को मुंबई में हुए आतंकी हमले ने हमारी तटीय सुरक्षा (कोस्टल सिक्यॉरिटी) में एक बड़ी खामी को उजागर किया था। दस साल बाद कोस्टल सिक्यॉरिटी को मजबूत बनाने के काम हुए हैं। इंटेलिजेंस और सुरक्षा एजेंसियों के बीच बेहतर तालमेल सुनिश्चित किया गया है। हालांकि सुरक्षा को और बेहतर बनाने वाले कुछ प्रॉजेक्ट्स में हो रही देरी चिंता का विषय है।
कोस्टल सिक्यॉरिटी के आधुनिकीकरण की योजनाएं समय से पीछे चल रही हैं। कोस्ट गार्ड ने 15 सालों (2017 से 2032) के लिए 2 लाख करोड़ की योजनाएं बनाई हैं। 2023 तक कोस्ट गार्ड के बेड़े में 190 जहाज और 100 एयरक्राफ्ट शामिल करने की योजना है लेकिन पिछले कुछ सालों में सालाना डिफेंस बजट में इसके लिए काफी कम पैसा बढ़ाया जा रहा है। ऐसे में कोस्ट गार्ड को जरूरी फंड मिलता नहीं दिख रहा।
मोदी सरकार ने 15 से अधिक मैरिटाइम एजेंसियों के बीच समन्वय के लिए 2014 में ही राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (NMA) का वादा किया था। हालांकि अबतक यह वादा पूरा नहीं हो पाया है क्योंकि इसके लिए कोस्टल सिक्यॉरिटी बिल लाना होगा जिसपर अभी बहस होनी बाकी है।
इसके अलावा मछुआरों की करीब 2।2 लाख नावों की पहचान करने का सिस्टम भी योजनाबद्ध तरीके से नहीं बन पाया है। बता दें कि 2008 में आतंकी कसाब और उसके साथियों ने एक नाव को हाइजैक कर ही मुंबई तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की थी। इस चूक ने भारत के सीने पर वह घाव किया जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है।
समुद्र तटों पर त्रीस्तरीय सुरक्षा
हमारे समुद्र तटों पर सुरक्षा की त्रीस्तरीय व्यवस्था है। यह व्यवस्था नेवी, कोस्ट गार्ड और समुद्र तटीय प्रदेशों की मरीन पुलिस से मिलकर बनती है। प्रदेशों की मरीन पुलिस तटों से 12 नॉटिकल मील तक की सीमा को गार्ड करती है। कोस्ट गार्ड 12 से 200 नॉटिकल मील और नेवी 200 नॉटिकल मील के बाद की सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाती है।
क्यों है त्रीस्तरीय सुरक्षा की व्यवस्था
इसका जवाब भारत के समुद्र तटों की स्थिति में छिपा हुआ है। भारत के 9 राज्य और 4 केंद्रशासित प्रदेशों से सटे समुद्र तट दुनिया के व्यस्ततमपारंपरिक समुद्री व्यापार मार्गों में से एक हैं। ये श्रीलंका, बांग्लादेश, पाकिस्तान और गल्फ देशों के करीब हैं, जिससे सुरक्षा में सेंध का खतरा मंडराता रहता है। उदाहरण के तौर पर लें तो गुजरात और संयुक्त अरब अमीरात के बीच की दूरी 2000 किमी से भी कम है।
26/11 के बाद क्या बदला
तटीय सुरक्षा में चूक की वजह से मुंबई को एक डेडली और योजनाबद्ध आतंकी हमले का शिकार होना पड़ा। मुंबई हमले से करीब दो दशक पहले कोस्टल सिक्यॉरिटी स्कीम बनाई गई थी लेकिन इसे हमले के बाद लॉन्च किया गया। इसके तहत कोस्टल पुलिस स्टेशन बनाए गए, कोस्टलाइन पर अतिरिक्त रेडार स्टेशन बनाए गए। अभी सुरक्षा बेड़े में 200 बोट, जहाजों को शामिल करने की योजना है। इसके लिए 60 जेटी भी बनाई जानी हैं।
मुंबई में हुए इतिहास के सबसे भयानक आतंकी हमले को 10 साल हो गए हैं। पाकिस्तानी आतंकियों ने ताज और ट्राइडेंट होटल के साथ-साथ छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पर हमला किया था। देश के कुछ बहादुर पुलिसकर्मियों और एनएसजी के जवान ने इन आतंकियों का डटकर सामना किया और कई लोगों की जान बचाई। उनमें से 5 ने देश और देश के लोगों की रक्षा के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। आइए आज देश के उन 5 हीरों के बारे में जानते हैं।।।
मुंबई एटीएस के चीफ हेमंत करकरे रात में अपने घर पर उस वक्त खाना खा रहे थे, जब उनके पास आतंकी हमले को लेकर क्राइम ब्रांच ऑफिस से फोन आया। हेमंत करकरे तुरंत घर से निकले और एसीपी अशोक काम्टे, इंस्पेक्टर विजय सालस्कर के साथ मोर्चा संभाला। कामा हॉस्पिटल के बाहर चली मुठभेड़ में आतंकी अजमल कसाब और इस्माइल खान की अंधाधुंध गोलियां लगने से वह शहीद हो गए। मरणोपरांत उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।
करकरे ने मुंबई सीरियल ब्लास्ट और मालेगांव ब्लास्ट की जांच में भी अहम भूमिका निभाई थी।
मुंबई पुलिस के एएसआई तुकाराम ओंबले ही वह जांबाज थे, जिन्होंने आतंकी अजमल कसाब का बिना किसी हथियार के सामना किया और अंत में उसे दबोच लिया। इस दौरान उन्हें कसाब की बंदूक से कई गोलियां लगीं और वह शहीद हो गए। शहीद तुकाराम ओंबले को उनकी जांबाजी के लिए शांतिकाल के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।
अशोक काम्टे मुंबई पुलिस में बतौर एसीपी तैनात थे। जिस वक्त मुंबई पर आतंकी हमला हुआ, वह एटीएस चीफ हेमंत करकरे के साथ थे। कामा हॉस्पिटल के बाहर पाकिस्तानी आतंकी इस्माइल खान ने उन पर गोलियों की बौछार कर दी। एक गोली उनके सिर में आ लगी। घायल होने के बावजूद उन्होंने दुश्मन को मार गिराया।
एक समय मुंबई अंडरवर्ल्ड के लिए खौफ का दूसरा नाम रहे सीनियर पुलिस इंस्पेक्टर विजय सालस्कर कामा हॉस्पिटल के बाहर हुई फायरिंग में हेमंत करकरे और अशोक काम्टे के साथ आतंकियों की गोली लगने से शहीद हो गए थे। शहीद विजय को मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।
मेजर संदीप उन्नीकृष्णन नैशनल सिक्यॉरिटी गार्ड्स (एनएसजी) के कमांडो थे।
वह 26/11 एनकाउंटर के दौरान मिशन ऑपरेशन ब्लैक टारनेडो का नेतृत्व कर रहे थे और 51 एसएजी के कमांडर थे।
जब ताज महल पैलेस और टावर्स होटल पर कब्जा जमाए बैठे पाकिस्तानी आतंकियों से लड़ रहे थे तो एक आतंकी ने पीछे से उन पर हमला किया जिससे घटनास्थल पर ही वह शहीद हो गए। मरणोपरांत 2009 में उनको अशोक चक्र से सम्मानित किया गया।
इन पांच बहादुरों के अलावा हवलदार गजेंद्र सिंह, नागप्पा आर।महाले, किशोर के।शिंदे, संजय गोविलकर, सुनील कुमार यादव और कई अन्य ने भी बहादुरी की मिसाल पेश की।