जनजीवन ब्यूरो
लंदन । क्या फेसबुक के गूगल से ज्यादा बड़ी कंपनी बनने की अब भी कोई संभावनाएं बाकी हैं? ग्लोबल ऐडवर्टाइजिंग एजेंसी नेटवर्क ‘हवास’ के पूर्व सीईओ डेविड जोन्स ने साल 2012 में घोषणा की थी कि फेसबुक गूगल को पीछे छोड़ देगा। जोन्स ने पिछले साल ही हवास को अलविदा कहकर यू ऐंड मिस्टर जोन्स के नाम से अलग कंपनी बना ली थी।
जोन्स फेसबुक को लेकर हमेशा आशावादी रहे हैं। साल 2012 में फेसबुक के आईपीओ लॉन्च से कुछ दिनों पहले ही जनरल मोटर्स ने करीब 10 मिलियन डॉलर के सभी ऐड्स फेसबुक से यह कहते हुए वापस ले लिए थे कि ऐड्स के लिए उसका प्लैटफॉर्म काम नहीं कर रहा है। जोन्स ने तब ब्लूमबर्ग टीवी पर दिए एक साक्षात्कार में फेसबुक का बचाव किया था। जोन्स ने कहा था, कि जनरल मोटर्स के हाथ खींच लेने से सोशल नेटवर्किंग साइट पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। और दो सालों के भीतर ही ये इसके प्लैटफॉर्म पर ऐडवर्टाइजिंग वापस आ जाएगी।
लेकिन तीन सालों के बाद भी गूगल को पीछे छोड़ पाना फेसबुक के लिए अभी दूर की कौड़ी ही लग रही है। फिलहाल गूगल का कुल मार्केट कैप करीब 362 बिलियन डॉलर का है, जबकि फेसबुक का कुल मार्केट कैप 241 बिलियन डॉलर का।
लंदन में बिजनस इनसाइडर से बातचीत के दौरान जोन्स ने फेसबुक के पक्ष में उम्मीद जताते हुए कहा कि इसके पीछे बहुत ही साधारण सा तर्क है। जोन्स बताते हैं कि गूगल का कोर बिजनस (सेलिंग ऐड्स ऑन सर्च) अभी भी इंटेंट सिग्नल पर काम कर रहा है, जबकि फेसबुक का कोर बिजनस आईडेंटिटी सिग्नल्स पर।
दरअसल इंटेंट सिग्नल्स के तहत यदि आप गूगल पर कुछ सर्च करते हैं तो गूगल किसी प्रॉडक्ट में आपकी रुचि, लोकेशन, जेंडर आदि को भांपकर संबन्धित परिणाम शो करता है।
लेकिन फेसबुक पर वह आपके बारे में पूरी जानकारी रखता है, क्योंकि यूजर ने उसे पहले ही अपने बारे में जानकारी दे रखी है। जब भी फेसबुक यूजर अपने पेज पर लाइक या डिसलाइक करता है, तो दरअसल वह फेसबुक को किसी प्रॉडक्ट के बारे में अपनी पसंद और नापसंद भी बता रहा होता है।
हालांकि, गूगल भी अब आईडेंटिटी सिग्नल को अपनाने लगा है। जोन्स ने तब कहा था, कि वो यह बिलकुल नहीं कह रहे हैं कि गूगल को नुकसान होने वाला है, बल्कि मैं तो ये कहना चाहता हूं, कि फेसबुक उससे बड़ी कंपनी बनने वाली है।