जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम सामने आने के बाद अब 2019 के महारण के लिए स्टेज सेट हो चुका है। कांग्रेस समेत लगभग पूरा विपक्षी केंद्र की बीजेपी सरकार के खिलाफ अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग गठबंधन बनाने के गणित पर काम कर रहा है। इनमें सबसे अहम है यूपी का महागठबंधन लेकिन इसे जुड़ा जो सबसे बड़ा सवाल अभी तक अनुत्तरित है, वह यह है कि 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन की शक्ल क्या होगी?
एसपी-बीएसपी के बीच दिख रहा तालमेल गठबंधन की शक्ल अख्तियार कर पाएगा या नहीं? इस गठबंधन में कांग्रेस को जगह मिल पाएगी या नहीं? कांग्रेस को परंपरागत वोटों का एक बड़ा हिस्सा अपर कास्ट से आता है। रोचक पहलू यह है कि कुछ जगहों पर कांग्रेस से अलग राह का फायदा अखिलेश यादव को मिला है, जबकि कांग्रेस का साथ रास नहीं आया है।
हाल के महीनों में यूपी में एसपी-बीएसपी कांग्रेस के साथ जिस तरह की दूरी बना कर चल रहे हैं, उसके मद्देनजर दोनों के गठबंधन में कांग्रेस के लिए बहुत कम जगह बनती दिख रही है। राजस्थान और मध्यप्रदेश के नतीजों के बाद सरकार बनाने के लिए एसपी-बीएसपी ने कांग्रेस के प्रति जिस तरह का उदार रवैया दिखाया, उससे यूपी में कांग्रेस को साथ लेने की संभावनाओं को बल मिला था, लेकिन दोनों दलों की तरफ से यह साफ कर दिया गया कि राजस्थान और मध्यप्रदेश के फैसले को यूपी से जोड़कर नहीं देखा जाए। इस वजह से महागठबंधन की शक्ल को लेकर बात जहां ठहरी हुई थी, वहीं अभी भी ठहरी दिखाई दे रही है। हां, यह जरूर है कि एसपी-बीएसपी के बीच गठबंधन होने की संभावनाओं को रोज-ब-रोज बल मिल रहा है।
झिझक की वजह
एसपी और बीएसपी, दोनों के अंदर यूपी में कांग्रेस को लेकर बहुत ज्यादा उत्साह न दिखाने की वजह बहुत स्पष्ट नजर आ रही है। इन दोनों पार्टियों को इस बात का डर सता रहा है कि कांग्रेस को साथ लेने से बीजेपी को फायदा हो सकता है। कांग्रेस को शहरी और ग्रामीण सीटों पर जो भी वोट मिलता है, उसका एक बड़ा हिस्सा अपर कास्ट से आता है। कांग्रेस के एसपी-बीएसपी के साथ होने पर यह वोट बैंक न तो कांग्रेस के पक्ष में आता है, न ही एसपी-बीएसपी उम्मीदवारों को ट्रांसफर होता है बल्कि यह बीजेपी के साथ चला जाता है। नजदीकी मुकाबलों में यह बीजेपी की जीत का बड़ा कारण बन जाता है। इस बात का अनुभव कांग्रेस के साथ 1996 में गठबंधन कर चुनाव लड़ने से बीएसपी को भी हो चुका है और 2017 में एसपी को भी।
ऐसा लग रहा है कि 2017 में यूपी हार जाने के बाद एसपी चीफ अखिलेश यादव के मन में भी शायद कांग्रेस को लेकर कोई मोह नहीं रह गया। 2018 में गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीटों के उपचुनाव में जब कांग्रेस एसपी को समर्थन देने के लिए अपने उम्मीदवार हटाने को उतावली हो रही थी, तब अखिलेश यादव ने समर्थन लेने से इनकार कर दिया था। उन्होंने इससे अलग स्थानीय कांग्रेस उम्मीदवारों को मजबूती के साथ चुनाव लड़ते रहने के लिए अपने स्तर से जो भी मदद संभव थी, वह भी की थी क्योंकि अखिलेश यादव को लग रहा था कि अपरकास्ट के वोट कांग्रेस के जरिए अगर बीजेपी से कटते हैं तो यह उनके लिए मुफीद होगा।
कुछ ऐसा हुआ भी। गोरखपुर और फूलपुर की दोनों सीटें एसपी जीती भी थी। इन दोनों सीटों पर एसपी ने बीएसपी का समर्थन लिया था और जीत के बाद बीएसपी सुप्रीमो का शुक्रिया अदा करने के लिए उनके घर भी गए थे। यहीं से दोनों दलों के बीच दोस्ती का दरवाजा खुला था। यूपी में 2012 के चुनाव में एसपी अकेले चुनाव लड़ी थी और कांग्रेस अकेले। कांग्रेस ने जिन विधानसभा सीटों पर 5 हजार से ज्यादा वोट पा लिया था, उनमें से ज्यादातर सीटों पर एसपी को जीत मिल गई थी। एसपी की जीत 224 सीटों तक पहुंच गई थी जो कि अब तक का रेकार्ड है। वहीं 2017 में जब एसपी और कांग्रेस मिलकर लड़े तो कांग्रेस अपने परंपरागत अपरकास्ट वोट बैंक को न अपने पाले रोक पाई और न एसपी को ट्रांसफर करा पाई। नतीजा एसपी को न केवल सत्ता से बेदखल होना पड़ा बल्कि उसकी
रणनीतियों का टकराव
दिलचस्प बात यह कि यूपी में एसपी-बीएसपी के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस में भी दो राय हैं। जिन नेताओं को यूपी से लोकसभा चुनाव लड़ना है वे तो किसी भी कीमत पर एसपी-बीएसपी से गठबंधन चाहते हैं क्योंकि उन्हें इन दो पार्टियों के जरिए दलित+मुस्लिम+यादव का मजबूत वोट बैंक मिलने की उम्मीद है, जिसके जरिए उनकी जीत का रास्ता आसान हो जाता है। मगर रणनीति तय करने में अहम भूमिका निभाने वाले नेताओं का नजरिया है कि पार्टी को एसपी-बीएसपी से अलग चुनाव लड़ने का रास्ता अख्तियार करने में कोई संकोच नहीं दिखाना चाहिए। 2009 के लोकसभा चुनाव में अकेले अपने दम पर एसपी-बीएसपी की मौजूदगी के बावजूद वह 21 सीटें जीत कर सबको चौंका चुकी है।
इस नतीजे की उम्मीद खुद कांग्रेस को भी नहीं थी। एसपी-बीएसपी के लिए हतप्रभ हो जाना तो स्वाभाविक था ही। यह यूपीए-1 की मनरेगा स्कीम, बीजेपी के कमजोर होने से अपर कास्ट के वोटरों के कांग्रेस की तरफ बढ़े रुझान और बैकवर्ड कार्ड के रूप में बेनीप्रसाद वर्मा को आगे किए जाने का असर माना गया था कि कांग्रेस यूपी में वापसी करती दिखी थी। हालांकि इसके बाद 2012 के विधानसभा चुनाव में वह इस करिश्मे को नहीं दोहरा पाई थी। कांग्रेस के कुछ नेताओं का यह भी मानना है कि अगर यूपी में एसपी-बीएसपी कांग्रेस को शामिल न करके भी बड़ी जीत दर्ज करती हैं तो अंतत: कांग्रेस को ही फायदा मिलेगा क्योंकि ये पार्टियां कम से कम बीजेपी को सरकार बनाने में मददगार नहीं होंगी। इस वजह से कांग्रेस को एसपी-बीएसपी के रुख को लेकर बहुत परेशानी नहीं है।