जे सी वर्मा
नई दिल्ली। केन्द्र सरकार ने आज कहा कि किसानों के हितों को ध्यान में रखकर देश के विकास के साथ कोई समझौता नहीं किया जायेगा। केन्द्रीय वित मंत्री अरूण जेटली ने यहां नीति आयोग की बैठक के बाद सवांददाताओं के सवाल का जवाब देते हुये कहा कि किसानों के हितों के मद्देनजर देश में विकास के साथ कोई समझौता नहीं किया जायेगा।
जेटली ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग के संचालन परिषद की द्बितीय बैठक में 16 राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भाग लिया। इस बैठक में भाग लेने वाले मुख्यमंत्रियों ने अपना मत व्यक्त किया है कि भूमि अधिग्रह्णा कानून को संशोधित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने नीति आयोग की बैठक में अपनी प्रारंभ्भिक टिप्पणी में कहा कि देा से गरीबी को समाप्त करने के लिये केन्द्र और राज्यों को एकजुट होकर कार्य करना चाहिये। प्रधानमंत्री ने कहा कि भूमि अधिग्रह्णा पर राजनीतिक गतिरोध की वजह से स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों और सिंचाई परियोजना सहित ग्रामीण विकास पर गंभीर रूप से प्रभावित हो रही हैं। मोदी ने दोहराया कि जहां तक बढ़े हुये मुआवजा का सवाल है उस केन्द्र और राज्य के बीच कोई अलग रूख नहीं है। उन्होंने कहा कि राज्यों के विकास की चिंताओं को ध्यान में रखकर अध्यादेा लाया गया था ताकि किसानों को उनका तर्कसंगत हक भी मिलता रहे।
जेटली ने कहा कि किस प्रकार से तत्कालीन सरकार द्बारा पारित भूमि अधिग्रहण कानून को अधिकांश राज्य सरकारें क्रियान्वनित नहीं कर सकी। कई राज्यों ने अपनी राय व्यक्त करते हुये कहा कि भूमि अधिग्रह्णा कानून को संशोधित किया जाना चाहिये। विकास के लिये भूमि की जरूरत है और इसके बारे में कोई दो राय नहीं है।
वित मंत्री के साथ संवाददाता सम्मेलन में केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्री चौधरी बीरेन्दर सिंह, नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविन्द पनगढिया और नीति आयोग की मुख्यकार्याधिकारी सिंधुश्री खुल्लर भी मौजूद थी।
जेटली ने जोर देते हुये कहा, कई मुख्यमंत्रियों ने बताया कि भूमि अधिग्रहण के क्रियान्वयन में देरी की वजह से परियोजनाओं की गति धीमी पड़ गई है। आम राय थी केन्द्र को फिर से इस पर आम सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिये। प्रधानमंत्री ने बैठक के समापन पर अपने विचार व्यक्त करते हुये कहा कि सभी राज्यों की चिंताओं को ध्यान में रखा जायेगा। उन्होंने कहा, मुख्यमंत्रियों ने उसी वक्त कहा कि वे आम सहमति के लिये अनिचितकाल तक इंतजार नहीं कर सकते। अगर केन्द्र आम सहमति नहीं बना पाता है तो राज्यों को भूमि अधिग्रहण के बारे में अपना कानून बनाने की छूट दी जानी चाहिये।
कांग्रेस शासित राज्यों के नौ मुख्यमंत्रियों के साथ साथ पश्चिम बंगाल,तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और ओडिशा के मुख्यमंत्रियों ने इस बैठक से दूरी बनाई रखी। लेकिन बैठक में राष्ट्रीय जनतात्रिक गठबंधन शासित राज्यों के अलावा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीा कुमार, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक सरकार शामिल हुये। जम्मू और कमीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने भी इस बैठक में भाग लिया।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में नीति आयोग की संचालन परिषद में सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्र शासित प्रदेाों के उप राज्यपाल सदस्य होते है। कांग्रेस नेताओं ने इससे पहले कहा था कि उनकी पार्टी द्बारा शासित प्रदेाों के मुख्यमंत्री इस बैठक में शामिल नहीं होगें ताकि सरकार विवादास्पद भूमि विधेयक को सहमति बनाने में कामयाब न हो सके। कांग्रेस शासित प्रदेाों के मुख्यमंत्रियों ने संसदीय समिति को एक जैसा पत्र भेजकर सूचित किया कि वे विधेयक के प्रावधानों का विरोध करते है। उन्होंने समिति से यह भी कहा है कि वे भूमि अधिग्रह्णा कानून 2०13 में किसी प्रकार का संशोधन नहीं चाहते है। उनका मानना है कि ये संशोधन किसानों के हितों के खिलाफ होगें और ग्रामसभा तथा आदिवासी समुदाय के अधिकारों का हनन करेगा।
कांग्रेस शासित राज्यों में केरल, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेा, उत्तराखंड, असम, मणिपुर, मेघालय, अरूणाचल प्रदेा और मिजारम शामिल है। इन मुख्यमंत्रियों ने कहा है कि वर्ष 2०13 का कानून देाभर में दो साल तक चली व्यापक चर्चा और विचार विर्मा के बाद संसद ने सितंबर 2०13 में सर्वसम्मति से पारित किया गया था।
गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी ने नेतृत्व में 14 विपक्षी पार्टियों ने बजट संत्र के दौरान इस विधेयक के खिलाफ राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को एक ज्ञापन भी सौंपा था।