जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली : सीबीआई बनाम सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जबरन छुट्टी पर भेजे गए सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा को आज बड़ी राहत देते हुए उन्हें उनके पद पर बहाल कर दिया।
राकेश अस्थाना और आलोक वर्मा की नाक की लड़ाई बढ़ती देख केंद्र सरकार ने दोनों को ही सीबीआई से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। बाहर का रास्ता दिखाए जाने के बाद सीबीआई निदेशक ने उन्हें छुट्टी पर भेजे जाने के मामले को संजीदगी से लिया और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।
75 दिनों की लड़ाई के बाद मिली राहत
आज इस मामले में उन्हें 75 दिन बाद राहत मिली है। अदालत ने सरकार के 23 अक्तूबर को दिए आदेश को निरस्त कर दिया है। यानी उनकी पद की गरिमा बरकरार रखा गया है लेकिन उनके हांथों को बांध दिया है। अदालत ने सीवीसी जांच पूरी होने तक वर्मा कोई भी बड़ा निर्णय नहीं लेने का आदेश दिया है। सीबीआई के अतंरिम निदेशक नागेश्वर राव की नियुक्ति को रद्द कर दिया गया है।
फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के आदेश को रद्द करने के बाद आलोक वर्मा को सीबीआई निदेशक के पद पर बहाल कर दिया है। अदालत का कहना है कि डीएसपीई अधिनियम के तहत उच्च शक्ति समिति एक हफ्ते के अंदर उनके मामले पर कार्रवाई करने का विचार करें। जब तक उच्च स्तरीय समिति आलोक वर्मा पर कोई फैसला ने ले वह कोई बड़ा फैसला नहीं ले सकते हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि सरकार को आलोक वर्मा को हटाने के मामले को भारत के मुख्य न्यायाधीश, प्रधान मंत्री और विपक्ष के नेता वाली चयन समिति के पास भेजा जाना चाहिए था। बता दें कि वर्मा का सीबीआई मुखिया के तौर पर कार्यकाल 31 जनवरी को समाप्त हो रहा है।
क्या है पूरा मामला
सीबीआई के दोनों वरिष्ठ अधिकारी के बीच जंग अक्तूबर 2017 से चल रही थी, जो धीरे-धीरे सुर्खियां बटोरती रही थी। लेकिन 15 अक्तूबर को आर-पार की लड़ाई में तब बदल गई जब आलोक वर्मा ने अपने दूसरे नंबर के अधिकारी राकेश अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज कराया और अपने ही मुख्यालय में छापा मारकर एक डीएसपी को हिरासत में लिया।
मीडिया में यह खबर सुर्खियां बनी और दो अधिकारियों की नाक और साख की लड़ाई अब खुलकर सामने आ गई। आलोक वर्मा के खिलाफ भी जांच कमेटी बैठी और अस्थाना के खिलाफ भी। लगातार चल रही सुनवाई के बाद लगातार कोर्ट में सुनवाई चलती रही और लगातार 12 से अधिक चली सुनवाई के बाद 8 जनवरी 2019 को आलोक वर्मा को बड़ी राहत मिली है।
पिंजरे का बंद तोता सीबीआई
यह पहली बार नहीं है जब सीबीआई पर और उनके अधिकारी भ्रष्टाचार के आरोप झेल रहे हों। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की तीखी आलोचना करते हुए इसकी तुलना पिंजरे में बंद तोते से की गई थी। इसके पिछले दो प्रमुखों रंजीत सिन्हा और ए।पी। सिंह पर भ्रष्टाचार के अभियुक्त बनाए गए, लेकिन फिलहाल जो कुछ चला, उसको देखते हुए यही कहा जा सकता है कि जो बातें अतीत में सामने आईं वे तो महज छोटी-मोटी फुंसियां थीं, असली नासूर तो अब उभरा है।
क्या कहते हैं पुराने सीबीआई निदेशक
एजेंसी के पुराने लोग नाराज और निराश हैं। सनसनीखेज मामलों की जांच करके सुर्खियां बटोरती रही सीबीआई आज खुद जांच के दायरे में है। एक के बाद एक विवाद उसकी पोल खोल रहे हैं। पूर्व सीबीआई निदेशक डी।आर। कार्तिकेयन कहते हैं, “जो हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद है, इससे बचा जा सकता था।
‘दोनों की नाक इतनी बड़ी हो गई जिसने 55 साल पुरानी संस्थान की साख को क्षति पहुंचाई है। दोनों की नासमझी ने अपने कैडर को बांटकर रख दिया है और ऐसी स्थिति खड़ी कर दी है कि सरकार को देश की उच्च नौकरशाही पर हावी हो जाने का मौका मिल गया। सवाल तब और गंभीर हो जाता है जब सवाल उठा कि आखिर प्रधानमंत्री एजेंसी में चल रहे खींचतान को वक्त रहते भांपने में कैसे नाकाम रहे, जो सीधे उनके कार्यालय के तहत काम करती है।