जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । 2019 के आम चुनाव से पहले राजनीतिक दल अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में जुटे हैं। सत्तारूढ़ बीजेपी की भी कोशिश है कि रोजगार, किसानों से जुड़े मुद्दे, विदेश नीति, निवेश, व्यापार आदि को लेकर जनता के बीच सकारात्मक संदेश जाए। ऐसे में बीजेपी एक विस्तारवादी आर्थिक नीति के पक्ष में है। पार्टी के एक प्रवक्ता के मुताबिक BJP का मानना है कि राजकोषीय घाटे को GDP का 3.3% बनाए रखने का सरकार का प्लान ज्यादा कारगर नहीं है।
दरअसल, आम चुनाव मई में होने की संभावना है। इससे पहले हाल में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को करारी हार का सामना करना पड़ा है। अब बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने कई अहम घोषणाएं की हैं। सबसे ज्यादा फोकस उन लाखों किसान पर है, जो फसलों की कम कीमत मिलने से नाराज हैं। दूसरे राजकोषीय कदम छोटे उद्यमों की मदद करने को लेकर है।
कहां से आएगा पैसा?
इन कदमों से एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में काफी खर्च करना पड़ सकता है, हालांकि मोदी सरकार को पूरी उम्मीद है कि भारतीय रिजर्व बैंक 300-400 लाख करोड़ रुपये का एक अंतरिम लाभांश मार्च तक ट्रांसफर कर देगा। रॉयटर्स ने पिछले हफ्ते सूत्रों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में यह जानकारी भी दी थी।
नौकरियों का सृजन बड़ी चुनौती
ग्राहकों की क्रय शक्ति और कृषि क्षेत्र के कमजोर होने के कारण पहले से ही आर्थिक विकास तेज गति से नहीं हो रहा है, जो पीएम मोदी के लिए सिरदर्द का बड़ा कारण है। पीएम के सामने नौकरियों के सृजन का महत्वाकांक्षी टारगेट पूरा करने की चुनौती है।
पिछले साल खत्म हुईं 1.1 करोड़ नौकरियां
स्वतंत्र थिंक-टैंक ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी’ के अनुसार भारत में पिछले साल 1.1 करोड़ नौकरियां खत्म हो गईं, जिसमें 83 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों से थी। इसकी मुख्य वजह छोटे कारोबारियों के लिए ऑपरेशनल कॉस्ट का बढ़ना माना गया। ये कॉस्ट्स 2017 में लागू किए गए राष्ट्रीय सेल्स टैक्स (GST) के शुरू होने से बढ़े और इससे पहले 500 और 1000 रुपये के नोटों को अमान्य ठहराए जाने (नोटबंदी) का भी आर्थिक प्रभाव पड़ा था।
अब बात राजकोषीय घाटे की
कृषि क्षेत्र के संदर्भ में बीजेपी के प्रवक्ता गोपाल कृष्ण अग्रवाल ने कहा, ‘यहां मांग है, एक बहस भी है- मेरे सभी साथी कह रहे हैं कि राजकोषीय घाटे पर नजर रखने की क्या जरूरत है जबकि एक खास क्षेत्र में संकट है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘हमसे जुड़े थिंक-टैंक भी इसी तरह की बातें कह रहे हैं। घरेलू स्तर पर कुछ लोग ही हैं जो राजकोषीय सावधानी की बात कर रहे हैं। केवल विदेशी थिंक-टैंक्स राजकोषीय घाटे पर सतर्कता की बातें कर रहे हैं। मेरा मानना है कि विस्तारवादी नीति पार्टी को फायदा पहुंचा सकती है।’
अग्रवाल C.A. और सरकारी बैंक ऑफ बड़ौदा में डायरेक्टर हैं और लघु एवं मझोले उद्यमों पर बनी एक सरकारी समिति के सदस्य भी हैं। उन्होंने कहा कि मोदी अपनी पार्टी के अपने सहयोगियों के विचारों से वाकिफ हैं लेकिन अभी इस पर अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। वित्त मंत्रालय के प्रवक्ता डीएस मलिक ने इस पर फोन और ईमेल का फौरन जवाब नहीं दिया।