जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली नागपुर । सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज होने के बाद याकूब मेनन ने महाराष्ट्र के राज्यपाल से क्षमा याचना की गुहार लगाई है। नागपुर जेल के सुप्रींटेंडेंट ने याकूब का आवेदन राज्यपाल को भेज दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई में 1993 में हुये बम विस्फोट की घटनाओं के मामले में मौत की सजा पाने वाले एक मात्र दोषी याकूब अब्दुल रजाक मेमन को इस महीने के अंत में फांसी देने का मार्ग प्रशस्त करते हुये उसकी सुधारात्मक याचिका आज खारिज कर दी। प्रधान न्यायाधीश एच एल दत्तू की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने मेमन की याचिका खारिज करते हुये कहा कि इसमें बताये गये आधार सुधारात्मक याचिका पर फैसले के लिये शीर्ष अदालत द्वारा 2002 में प्रतिपादित सिद्धांतों के दायरे में नहीं आते हैं। मेमन को 30 जुलाई को फांसी दी जानी है।
मेमन ने अपनी याचिका में कहा था कि वह 1996 से सिजोफ्रेनिया से ग्रस्त है और करीब 20 साल से जेल की सलाखों के पीछे है। उसने मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील करने का अनुरोध करते हुये कहा था कि एक दोषी को एक ही अपराध के लिये उम्र कैद के साथ ही मृत्यु दंड नहीं दिया जा सकता।
न्यायाधीशों ने कहा, ‘याचिकाकर्ता ने सुधारात्मक याचिका में कुछ आधार बताये हैं जो रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा एवं अन्य के मामले में प्रतिपादित सिद्धांतों के दायरे में नहीं आते हैं। चूंकि सुधारात्मक याचिका में शामिल कोई भी आधार रूपा अशोक हुर्रा प्रकरण में निर्धारित पैमाने के दायरे में नहीं आते हैं, इसलिए सुधारात्मक याचिका खारिज की जाती है।’ शीर्ष अदालत ने इस साल नौ अप्रैल को मौत की सजा के फैसले पर पुनर्विचार के लिये मेमन की याचिका खारिज कर दी थी। न्यायालय ने 21 मार्च, 2013 को उसकी मौत की सजा बरकरार रखी थी।
संविधान पीठ की एक व्यवस्था के आलोक में शीर्ष अदालत के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मेमन की पुनर्विचार याचिका पर खुली अदालत में सुनवाई की थी। संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि पुनर्विचार याचिकाओं पर चैंबर में सुनवाई की परंपरा से हटकर मौत की सजा के मामलों में खुली अदालत में सुनवाई की जानी चाहिए। शीर्ष अदालत ने दो जून, 2014 को मेमन की मौत की सजा के अमल पर रोक लगाते हुये उसकी याचिका इस सवाल पर विचार के लिये संविधान पीठ को सौंप दी थी कि क्या मौत की सजा के मामले में पुनर्विचार याचिका पर खुले न्यायालय में या चैंबर में सुनवाई होनी चाहिए। मेमन ने इस मामले में उसकी मौत की सजा बरकरार रखने के शीर्ष अदालत के 21 मार्च, 2013 के फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया था। मुंबई में 12 मार्च, 1993 को एक के बाद एक 13 बम विस्फोट हुये थे जिनमें 350 व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी थी और 1200 लोग जख्मी हुये थे।