जनजीवन ब्यूरो / चंडीगढ़ । हरियाणा की कुछ सीटों पर टक्कर बेहद कड़ी है। हिसार, अंबाला और रोहतक में मुकाबले में ऊंट किस करवट बैठेगा यह कहना बेहद मुश्किल है। इन तीनों सीटों पर पूरे राज्य की खास नजर है।
भाजपा का इन तीन में से एक सीट पर कब्जा था, लेकिन इस बार वह तीनों सीटों पर जीत का दावा कर रही है। हिसार में पिछली बार भाजपा ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा था। इस बार वह दमदार तरीके से मैदान में है। रोहतक सीट वह कांग्रेस से छीनने के दावे कर रही है। अंबाला में कुमारी सैलजा और भाजपा सांसद रतनलाल कटारिया के बीच कड़ा मुकाबला दिख रहा है। आइये जानें इन तीनों का हाल।
हिसार
नहीं खिल सका कभी कमल
हिसार के रण में देवीलाल, भजनलाल और बीरेंद्र सिंह के परिवारों की नई पीढ़ी के बीच कांटे की जंग है। राज्य की 10 लोकसभा सीटों में हिसार एकमात्र ऐसी सीट है, जहां भाजपा कभी कमल नहीं खिला सकी। पिछले चुनाव में भाजपा और हजकां के बीच गठबंधन था। इसके बावजूद गठबंधन के उम्मीदवार कुलदीप बिश्नोई इनेलो के दुष्यंत चौटाला से चुनाव हार गए। इस बार के हालात पिछले चुनावों से काफी जुदा हैं।
हिसार के रण में इस दफा तीन बड़े राजनीतिक घरानों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल का इस संसदीय क्षेत्र में एकछत्र राज रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में पूर्व उप प्रधानमंत्री देवीलाल के पड़पोते दुष्यंत चौटाला ने भजनलाल के परिवार को खुली चुनौती दी। इनेलो अब दो फाड़ हो चुका है। दुष्यंत चौटाला यहां जननायक जनता पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ रहे हैं।
भजनलाल के पोते भव्य बिश्नोई कांग्रेस के उम्मीदवार हैं। उनके पिता कुलदीप बिश्नोई हिसार से सांसद रह चुके हैं। मां रेणुका बिश्नोई हांसी विधानसभा का प्रतिनिधित्व करती हैं। भाजपा ने यहां दीन बंधु सर छोटू राम के नाती बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेंद्र सिंह पर दांव खेला है। बृजेंद्र सिंह की गिनती सीनियर आइएएस अधिकारियों में होती है।
इधर, दुष्यंत चौटाला के सामने चाचा अभय चौटाला ने सुरेश कौथ के रूप में इनेलो उम्मीदवार को उतारकर उनकी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। यहां तीनों ही उम्मीदवार दुष्यंत, भव्य और बृजेंद्र युवा हैं। तीनों बड़े राजनीतिक घरानों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और तीनों की पढ़ाई विदेश में हुई। हालांकि जातीय समीकरण अहम हैं। जेजेपी के दुष्यंत चौटाला और भाजपा के बृजेंद्र सिंह दोनों जाट हैं, जबकि कांग्रेस के भव्य बिश्नोई गैर जाट उम्मीदवार हैं।
उनके पिता कुलदीप बिश्नोई को कांग्रेस का गैर जाट नेता माना जाता है। इसका लाभ भव्य को मिल सकता है, लेकिन बृजेंद्र सिंह को मोदी लहर का लाभ मिलने की पूरी संभावना है। मोदी लहर के आगे दूसरे उम्मीदवारों की चुनौती बढ़ती जा रही है। दुष्यंत चौटाला को आम आदमी पार्टी के साथ हुए गठबंधन का फायदा मिलने की पूरी संभावना है। अरविंद केजरीवाल उनके लिए प्रचार करने में लगे हैं। चौटाला परिवार को बड़े पैमाने पर जाट समुदाय का वोट मिलता है, लेकिन आज के हालात ऐसे हैं कि यह परिवार और पार्टी दोनों दो फाड़ हो चुके हैं।
अंबाला
सैलजा बनाम कटारिया
हरियाणा में साइंस सिटी के नाम से विख्यात पौराणिक शहर अंबाला। देश के 40 फीसद वैज्ञानिक उपकरण यहीं बनते हैं। माता अंबिका के प्रति लोगों की आस्था आज भी उतनी है। राजपूतों के बसाए इस शहर में सेना की छावनी है। आज भी यहां सिक्का अनुसूचित जाति के लोगों का चलता है। यहां सामान्य जाति का कोई नेता सांसद नहीं बन सकता क्योंकि पहले संसदीय चुनावों से ही अंबाला लोकसभा क्षेत्र दलितों के लिए आरक्षित है। हालांकि, 1957 में यहां लोकसभा की दो सीटें थीं जिनमें एक अनुसूचित जाति और दूसरी सामान्य जाति के लिए रखी गई, लेकिन बाद में फिर यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित कर दी गई। कांग्रेस की कद्दावर नेता कुमारी सैलजा और भाजपा के नामचीन रतनलाल कटारिया के बीच यहां कांटे की टक्कर है।
1999 में भाजपा के टिकट पर रतन लाल कटारिया कांग्रेस के फूलचंद मुलाना को हराकर पहली बार सांसद बने तो 2004 और 2009 के चुनावों में उन्हें कुमारी सैलजा से शिकस्त झेलनी पड़ी। 2014 में मोदी लहर पर सवार कटारिया ने कांग्रेस के राजकुमार वाल्मीकि को 3.40 लाख वोटों से हरा दिया। मौजूदा चुनावी रण में सीट पर कब्जा बनाए रखने के लिए भाजपा ने फिर से रतनलाल कटारिया पर दांव चला तो कांग्रेस ने कुमारी सैलजा को मैदान में उतारा है।
कुमारी सैलजा कांग्रेस की राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा नाम हैं। सोनिया गांधी के विश्वासपात्रों में शामिल सैलजा न केवल केंद्र में मंत्री रहीं बल्कि राज्यसभा सदस्य भी हैं। हुड्डा को मुख्यमंत्री बनाने में सैलजा के राजनीतिक योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भाजपा के रतनलाल कटारिया इस चुनावी रण में मोदी मैजिक के सहारे वैतरणी पार लगाने की जुगत में हैं। उनके पिता आज भी अपना पुश्तैनी जूते बनाने का काम करते हैं।
आम आदमी पार्टी व जजपा गठबंधन के पृथ्वी राज और इनेलो के रामपाल वाल्मीकि मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के प्रयास में हैं, मगर टक्कर सैलजा व कटारिया के बीच ही है। यहां से अभी तक नौ बार कांग्रेस ने विजय पताका फहराई है, जबकि छह बार जनसंघ-जनता पार्टी-भाजपा ने मैदान मारा। बसपा एक बार जीती। लेकिन इनेलो का कभी खाता नहीं खुल पाया। बसपा-इनेलो गठबंधन के उम्मीदवार अमन कुमार नागरा अंबाला से पहली बार एकमात्र सांसद बने थे।
रोहतक
सबसे रोचक मुकाबला
हरियाणा के पांच जिलों जींद, सोनीपत, भिवानी, झज्जर और हिसार से घिरी है रोहतक लोकसभा सीट। यह वही इलाका है, जिसे जीतने के लिए भाजपा कोई कोरकसर बाकी नहीं छोड़ना चाह रही। भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब हरियाणा के मुख्यमंत्री थे, तब प्रदेश की राजनीति, यूं कहिए कि सरकार यहीं से चलती थी। भाजपा सरकार के मुखिया मनोहर लाल भी रोहतक जिले के निदाना गांव के रहने वाले हैं। जनसंघ के बैनर तले 1962 और 1971 के बाद भाजपा यहां आज तक कमल नहीं खिला सकी।
पिछले चुनाव में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस के दीपेंद्र सिंह हुड्डा रोहतक लोकसभा सीट से जीत की हैट्रिक लगाने में कामयाब हो गए थे। अब भाजपा ने उनके सामने पूर्व सांसद डा. अरविंद शर्मा को रण में उतारा है। दीपेंद्र अपने पिता भूपेंद्र हुड्डा की तरह जाट और युवा राजनीति का बड़ा चेहरा हैं। भाजपा ने ब्राह्मण राजनीति के बड़े चेहरे पूर्व सांसद डा. अरविंद शर्मा पर दांव लगाकर गैर जाट कार्ड खेला है। दीपेंद्र और अरविंद शर्मा में एक समानता है। दोनों ही तीन-तीन बार सांसद रह चुके हैं।
अरविंद शर्मा कांग्रेस की पृष्ठभूमि के नेता हैं और राजनीति के तमाम दांवपेंच से वाकिफ हैं। 1996 में एक बार सोनीपत से आजाद और 2004 व 2009 में दो बार करनाल लोकसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर सांसद चुनकर आ चुके हैं। सरल और सौम्य व्यवहार के दीपेंद्र लगातार तीन बार रोहतक से सांसद बनते आ रहे हैं। उनसे पहले पिता भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दादा चौ. रणबीर सिंह रोहतक से सांसद बनते रहे। पिछले चुनाव में मोदी लहर के बावजूद दीपेंद्र की जीत की मार्जिन करीब पौने दो लाख वोट थी।
जननायक जनता पार्टी व आम आदमी पार्टी के गठबंधन ने रोहतक में प्रदीप देसवाल और इनेलो ने धर्मवीर फौजी को मैदान में उतारा है। जाट आरक्षण आंदोलन का केंद्र रहे रोहतक की नौ विधानसभा सीटों में से पांच पर कांग्रेस और चार पर भाजपा का कब्जा है। इस इलाके में भाजपा के जाट नेता ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु, शमशेर सिंह खरकड़ा और गैर जाट नेता मनीष ग्रोवर का अपना वजूद है तो कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा, आनंद सिंह दांगी, डा. रघुबीर कादियान और शादी लाल बत्रा का पूरा प्रभाव है। मनोहर लाल का भी असर भी काफी है।