जनजीवन ब्यूरो / रांची । अभी चल रहा लोकसभा चुनाव चल रहा है. साल के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव होना है. विधायकों के लिए लोकसभा चुनाव को सेमीफाइनल माना जा रहा है. लोकसभा चुनाव में मोदी मैजिक के बावजूद मुख्यमंत्री रघुवर दास ने अपना पूरा दमखम लगा रखा है. भाजपा में टिकट की खातिर अंदरूनी कलह की जो परिस्थितियां बनी है, भीतरघात से शीर्ष नेतृत्व चिंतित था. समय रहते रघुवर दास ने संभावित संकट का काट निकाल लिया. उन्होंने अपने नेताओं को संदेश दिया, जो कारगर साबित होता दिख रहा है. हाल ही में गिरिडीह जिले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसभा हुई थी. कार्यक्रम से कुछ दिनों पूर्व दास ने एक तैयारी बैठक में विधायकों को साफ शब्दों में चेताया. कहा कि उनके क्षेत्र में बीजेपी या गठबंधन के प्रत्याशी को बढ़त नहीं मिली, तो विधानसभा चुनाव के वक्त उनकी मुश्किलें बढ़ सकती हैं यानी उनका टिकट काटा जा सकता है. मुख्यमंत्री की ये बातें अपने विधायकों, नेताओं व कार्यकर्ताओं को कितना बांधे रखेगी, यह वक्त तय करेगा. लेकिन एक बात स्पष्ट है कि इस संदेश ने विधायकों की बेचैनी बढ़ा दी है.
धनबाद लोकसभा का चुनाव इस बार कई मायनों में रोचक बन गया है. वर्ष 2014 का इलेक्शन रिकॉर्ड मतों से जीतने वाले पार्टी प्रत्याशी पशुपतिनाथ सिंह के सामने पूर्व क्रिकेटर तथा तीन बार सांसद रह चुके कांग्रेस के कीर्ति झा आजाद हैं. मैदान में उनके उतरने से धनबाद के पुराने कांग्रेसियों के साथ-साथ महागठबंधन के नेताओं में भी सरगर्मी आ गयी है. दोनों दलों ने अपने विधायकों व नेताओं को विजय पताका फहराने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी सौंपी है. दोनों दल लगातार एक-दूसरे को घेरने में जुटे हैं. ग्राउंड लेवल के अलावा सोशल मीडिया पर भी राजनीतिक वार जारी है. ऐसे में भाजपा के पीएन सिंह की राह थोड़ी मुश्किल नजर आती है. हालांकि श्री सिंह अपनी जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हैं. उन्हें अबकी भी मोदी लहर का सहारा मिलने की पूरी उम्मीद है. इन सबके बीच पार्टी नेतृत्व पिछले लोकसभा चुनाव के जैसे प्रदर्शन की रणनीति पर काम कर रहा है. भाजपा के जिलाध्यक्ष चंद्रशेखर सिंह कहते हैं- हमारी आंतरिक संरचना पूरी तरह दुरुस्त है. बूथ लेवल के कार्यकर्ता वरीय नेताओं के साथ घर-घर घूम रहे हैं. हमारे विधायक व प्रत्याशी पीएन सिंह स्वयं जनसंपर्क में जुटे हैं.
धनबाद लोकसभा में विधानसभा की छह सीटें हैं. इनमें से पांच पर भाजपा व एक सीट पर मार्क्सवादी समन्वय समिति (मासस) का कब्जा है. चंदनकियारी से झाविमो के टिकट पर जीते सूबे के मंत्री अमर बाउरी बाद में भाजपा में चले गये. बोकारो से बिरंची नारायण, धनबाद से राज सिन्हा, सिंदरी से फूलचंद मंडल और झरिया से संजीव सिंह विधायक हैं. वहीं प बंगाल से सटे निरसा से मासस के अरूप चटर्जी एमएलए हैं. देश की कोयला राजधानी कहे जाने वाले धनबाद लोकसभा क्षेत्र में दो बड़े शहर धनबाद और बोकारो आते हैं. यहां बाहरियों की संख्या अत्यधिक है. पार्टी नेताओं का इन वोटों पर अधिक दारोमदार है. इस्पात नगरी बोकारो के वोटरों पर कीर्ति आजाद भी डोरे डाल रहे हैं, क्योंकि यहां वह नौकरी कर चुके हैं. वहीं भाजपा शहरी वोटरों को अपने पाले में लाने की खातिर हर तरह की जतन कर रही है. बोकारो सेक्टर-9 में रहने वाले सुशील कुमार पांडेय किस प्रत्याशी को चुनेंगे, इसके सवाल पर मुस्कुरा देते हैं. श्री पांडेय कहते हैं कि इसे राज ही रहने दें. जाते-जाते सुशील पांडेय कह जाते हैं कि हमारे लिये विकास ही मुद्दा है. बहरहाल, चुनावी गणित का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह 23 मई को ही पता चल सकेगा.
धनबाद में 1996 में सबसे ज्यादा 54 प्रत्याशी थे मैदान में
धनबाद लोकसभा चुनाव को लेकर गतिविधियां लगातार तेज होती जा रही हैं. वोटरों को रिझाने के लिए तरह-तरह के उपक्रम किये जा रहे हैं. इस बार कुल 20 उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं. धनबाद लोक सभा चुनाव में प्रत्याशियों की बात करें, तो सबसे ज्यादा प्रत्याशी 1996 में खड़े हुए थे. उस वर्ष कुल 54 प्रत्याशियों ने भाग्य आजमाया था. वहीं सबसे कम प्रत्याशी 1957 में खड़े हुए थे. इस साल मात्र चार उम्मीदवारों ने भी भाग्य आजमाया था.
एक नजर प्रत्याशियों की संख्या पर
1952 लोक सभा चुनाव में सात, 1957 में चार, 1962 में सात, 1967 में छह, 1971 में 15, 1977 में 13, 1980 में 20, 1984 में 24, 1989 22, 1991 में 40, 1996 में 54, 1998 में नौ, 2004 में 10, 2009 में 32, 2014 में 31 प्रत्याशी मैदान में थे.
इस बार भी कई निर्दलीय आजमा रहे भाग्य
धनबाद लोक सभा में इस बार भी कई निर्दलीय भाग्य आजमा रहे हैं. पिछली बार के निर्दलीय प्रत्याशी डॉ केसी सिंहराज ने दस हजार से अधिक वोट लाकर सबको अपने ओर आकर्षित किया था. वह अपने अलग प्रचार के लिए जाने जाते हैं.
इस बार (2019) के चुनाव में भी फिर से भाग्य आजमा रहे हैं. इसके साथ प्रेम प्रकाश पासवान, हीरालाल शंखवार सहित अन्य इस बार भी चुनाव में खड़े हैं. सभी अपने-अपने पक्ष में मतदान के लिए अपील भी कर रहे हैं.
2014 में नोटा में 7,675 वोट पड़े थे
वर्ष 2014 चुनाव में 31 प्रत्याशी थे, इसके बावजूद 7,675 लोगों ने अपना मतदान नोटा को दिया था. यह कुल वोटिंग का 0.67 प्रतिशत था.