अमलेंदु भूषण खां
वंशवाद की राजनीति पर मतदाताओं ने इस बार चुन-चुनकर मुहर लगाई है। बीजेपी के वंशवाद को जहां सराहा गया है, वहीं विपक्षी दलों के वंशवाद को सिरे से नकारा गया है। चाहे वो बिहार हो या कर्नाटक, महाराष्ट्र हो या पश्चिम बंगाल सभी जगह शहजादों को मुंह की खानी पड़ी है। बीजेपी ने अपनी पार्टी के दिग्गज नेताओं की बेटी, बेटा, बहू और पत्नियों को सीटें दी तो उनमें से ज्यादातर जीत कर संसद तक पहुंच गए। शिवसेना ने चार नेताओं के परिवार के सदस्यों को टिकट दिए थे। इनमें तीन की जीत हुई। भारत की राजनीति में परिवार व जाति आधारित राजनीति और घपले- घोटालों को जनता बर्दाश्त नहीं कर सकती है। भाजपा ने राष्ट्रवाद को चुनाव में मुद्दा बनाया है। हालांकि, भाजपा का राष्ट्रवाद बिल्कुल अलग प्रकार का है। राष्ट्रवाद की अलग-अलग परिभाषा हो सकती हैं। देश के अलग-अलग हिस्सों में क्षेत्रीय दल किसी एक खास परिवार पर निर्भर हो चुके हैं, उनकी राजनीति और रणनीति भी इन्हीं परिवारों के इर्द-गिर्द घूमती है, जबकि राजनीति हमेशा ऐसी संकीर्णताओं से ऊपर उठकर होनी चाहिए।
महाराष्ट्र में एनसीपी में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ही जीत सकीं, जबकि उनके परिवार के दूसरे सदस्य पार्थ हार गए। कांग्रेस के परिवार को मतदाताओं ने पूरी तरह से खारिज कर दिया। नारायण राणे के बेटे को भी मतदाताओं ने नकार दिया।
दक्षिण भारत में देखें, तो कर्नाटक में भाजपा का प्रदर्शन बहुत शानदार रहा। देवगौड़ा का पूरा परिवार इस बार चुनाव मैदान में था। पूरी पार्टी को परिवार के भरोसे चलाना कहां तक उचित है। पार्टी खुद ही अंदरूनी विवादों से जूझ रही है। एमएलए एक-दूसरे के साथ खून-खराबा कर रहे हैं।
जब पार्टी बिना उद्देश्य और तैयारी के मैदान में उतरेगी, तो यही हश्र होगा। केरल में सबरीमाला मामले को तूल देने की भरपूर कोशिश हुई, लेकिन इसका कोई असर केरल की राजनीति में नहीं हुआ। कर्नाटक में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन फेल होने का सबसे बड़ा कारण परिवारवाद की राजनीति है। देवगौड़ा का पूरा परिवार पार्टी पर काबिज हो चुका है। देवगौड़ा के बेटे, पोते सबके सब मैदान में थे, सात सीटों में से पांच पर एक ही परिवार के लोग मैदान में उतरे। राजनीति को जागीरदारी की तरह लेकर चुनाव तो नहीं लड़ा जा सकता है। राजनीति का तौर-तरीका बदल रहा है। पुरानी और एक ही ढर्रे पर चलनेवाली राजनीति से लोग थक चुके हैं।
आंध्र प्रदेश की राजनीति में भी बड़ा परिवर्तन हुआ है, जनादेश इस बार वाईएसआर के पक्ष में गया है। तेलंगाना में केसीआर को झटका लगा है। परिवारवाद के पैरोकारों को सभी राज्यों में इस बार तगड़ा झटका लगा है। जनता ने अब फैसला कर लिया है कि परिवारवाद और जातिवाद की राजनीति को ज्यादा बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। राजद हो, कांग्रेस हो या जेडीएस, अकाली हो या कोई अन्य क्षेत्रीय दल परिवारवाद की राजनीति को झटका लगा है।
बीजेपी के परिवार को आशीर्वाद
बीजेपी ने 8 सीटों पर अपनी पार्टी के नेताओं के रिश्तेदारों को टिकट दिया। दिग्गज नेता एकनाथ खडसे की बहू रक्षा खडसे को रावेर, पूर्व केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की बेटी प्रीतम को बीड, प्रमोद महाजन की बेटी पूनम को उत्तर मध्य मुंबई और नंदूरबार से डॉ. हिना गावित को टिकट दिया था। कांग्रेस से बीजेपी में प्रवेश करने वाले डॉ. सुजय विखे पाटील को अहमदनगर से टिकट दिया, जो कांग्रेस नेता राधाकृष्ण विखे पाटील के बेटे हैं।
कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए रणजीत सिंह नाईक-निंबालकर को पार्टी ने माढा सीट पर उम्मीदवारी दी। रणजीत पूर्व सांसद हिंदूराव नाईक-निंबालकर के बेटे हैं। एनसीपी छोड़कर बीजेपी में शामिल हुईं डॉ. भारती पवार दिंडोरी सीट से चुनाव जीत गई हैं। भारती के ससुर एटी पवार युति सरकार में मंत्री थे। बीजेपी समर्थित राष्ट्रीय समाज पक्ष के विधायक राहुल कुल की पत्नी कांचन बारामती से चुनाव हार गई हैं।
शिवसेना का परिवारवाद
शिवसेना ने अपने चार नेताओं के परिवार के सदस्यों को टिकट दिया था, जिनमें से तीन जीत गए। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री एकनाथ शिंदे के बेटे डॉ. श्रीकांत शिंदे को कल्याण, पूर्व सांसद निवेदिता माने के बेटे धैर्यशिल माने को हातकणंगले सीट से और कांग्रेस के नेता रहे पवनराजे निंबालकर के बेटे ओमराजे निंबालकर ने उस्मानाबाद सीट से टिकट दिया। सभी जीत गए, जबकि दिग्गज माथाडी नेता अण्णासाहब पाटील के बेटे नरेंद्र पाटील को सातारा से टिकट दिया, लेकिन वह हार गए।
एनसीपी से सुप्रिया की जीत
एनसीपी में परिवार का डंका बजता है, लेकिन इस बार मतदाताओं ने शरद पवार की बेटी सुप्रिया को ही पसंद किया। सुप्रिया को बारामती से जीत मिली। मावल से अजित पवार के बेटे पार्थ को जनता ने हरा दिया, जबकि पूर्व मंत्री छगन भुजबल के भतीजे समीर भुजबल नासिक, पूर्व सांसद दिवंगत प्रकाश परांजपे के बेटे आनंद परांजपे ठाणे सीट से और पूर्व सांसद पद्मसिंह पाटील के बेटे उस्मानाबाद से राणा जगजीत सिंह पाटील हार गए हैं। महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य अरुण काका जगताप के बेटे संग्राम जगताप के बेटे अहमदनगर सीट से चुनाव हार गए हैं। विधायक रवि राणा की पत्नी व अमरावती सीट से निर्दलीय उम्मीदवार नवनीत राणा को समर्थन देने का राष्ट्रवादी कांग्रेस का फैसला सही साबित हुआ।
कांग्रेस में नहीं चला परिवारवाद
पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली देवड़ा के बेटे मिलिंद देवडा दक्षिण मुंबई, सुनील दत्त की बेटी प्रिया दत्त उत्तर-मध्य मुंबई, कांग्रेस नेता व पूर्व मंत्री रोहिदास पाटील व धुलिया सीट से उम्मीदवार कुणाल पाटील, प्रभाराव की बेटी चारूलता टोकस वर्धा से और वरिष्ठ नेता केशराव औताडे के बेटे विलास औताडे जालना सीट से हार गई हैं।
पाटील और नीलेश भी हारे
कांग्रेस नेता व प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वसंतदादा पाटील के नाती विशाल पाटील को स्वाभिमानी शेतकरी संगठन ने मैदान में उतारा था, लेकिन विशाल को हार का सामना करना पड़ा है। महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष के मुखिया व पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे के बेटे नीलेश राणे रत्नागिरी-सिंधुदुर्ग सीट से हार गए हैं।
नरेंद्र मोदी और शाह की यह निश्चित ही बहुत बड़ी रणनीतिक जीत हुई है। पिछली लोकसभा के लिए जब नरेंद्र मोदी चुनावी मैदान में थे, तो कांग्रेस के खिलाफ लड़ने के लिए उनके पास ढेरों मुद्दे थे। अन्य विपक्षी पार्टियों के मुकाबले कांग्रेस के खिलाफ मोदी ज्यादा प्रभावी और सक्रिय रहे, जिसका परिणाम हुआ कि कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए गठबंधन को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। इस बार भी मोदी ने अपने हिसाब से मुद्दे सेट किये।
आर्थिक मामलों और हालातों पर पूरे चुनाव में कोई चर्चा नहीं हुई। वे सीधे तौर पर इन मुद्दों से बचते रहते हैं। विपक्ष के पास विमुद्रीकरण, रोजगार और आर्थिक हालातों से जुड़े मुद्दे थे, लेकिन चुनाव के दौरान कहीं कोई चर्चा नहीं हुई। विपक्ष पूरे चुनाव के दौरान मोदी को घेरने में पूर्ण रूप से असफल रहा। विपक्ष ने जीतने के लिए जाति की राजनीति की, जिससे जनता के ठुकरा दिया है। ऐसे में भाजपा की धर्म की राजनीति भारी पड़ी।