जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली: देश के जीवन रेखा माने जाने वाले ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) में एक लाइव सर्जरी वर्कशॉप के दौरान मरीज की मौत होने पर विवाद खड़ा हो गया है । सर्जरी जापान के सर्जन डॉ. गोरो हॉन्डा कर रहे थे। इस तरह के लाइव वर्कशॉप और मरीज के अधिकार पर सवाल उठे हैं । 2006 में अमेरिका में एक ऐसी ही वर्कशॉप के दौरान मरीज की मौत हो गई, जिसके बाद वहां की कुछ मेडिकल बॉडीज ने इस तरह के लाइव ऑपरेशन पर बैन लगा दिया।
31 जुलाई को एम्स और आर्मी रिसर्च रेफरेल हॉस्पिटल की ओर से एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया था। इसमें जापान के टोक्यो मेट्रोपॉलिटन कैंसर एंड इंफेक्शियस डिजीज सेंटर के डॉ गोरो हॉन्डा ने एक सर्जरी की, जिसे सैकड़ों अन्य सर्जनों ने लाइव देखा। जापानी सर्जन के साथ भारतीय डॉक्टरों की भी एक टीम थी। भारतीय डॉक्टरों की टीम की अगुआई डॉ सुजॉय पॉल कर रहे थे, जो एम्स में असोसिएट प्रोफेसर भी हैं। जिस मरीज की सर्जरी की गई, उसका नाम शोभा राम था। 62 साल के इस मजदूर को हेपेटाइटिस बी का इंफेक्शन था, जिसके बाद उसे लिवर सिरोसिस हो गया था। ऑपरेशन के दौरान मरीज को काफी ब्लीडिंग हुई और डॉक्टर खून का फ्लो रोकने के लिए संघर्ष करते नजर आए। सर्जरी कर रहे अन्य डॉक्टरों ने सलाह दी कि ओपन सर्जरी की जाए, लेकिन डॉ होन्डा ने लेप्रोस्कोपिक टेक्नीक से ही सर्जरी करने की ठानी। सात घंटे की सर्जरी के बाद लाइव फीड रोक दी गई और मरीज को आईसीयू ले जाया गया। करीब 90 मिनट बाद उसकी मौत हो गई।
इस घटना के बाद सर्जरी के उस तरीके पर सवाल उठ रहे हैं, जिसमें डॉक्टरों को सर्जरी करने के साथ-साथ अपने स्किल्स भी दर्शकों को दिखाने होते हैं। यह भी सवाल उठा है कि कि क्या आयोजनकर्ताओं ने एक विदेशी डॉक्टर से सर्जरी कराने से पहले मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया से मंजूरी ली थी? अगर जापानी डॉक्टर लेप्रोस्कोपिक टेक्नीक से ही सर्जरी करने पर जोर न देते तो क्या मरीज की जान बच सकती थी? क्या मरीज से इस सर्जरी के लिए मंजूरी ली गई? इस तरह के ऑपरेशन के लिए मरीज चुनने का क्या तरीका है?
इस तरह की सर्जरी को कीहोल सर्जरी भी कहते हैं। यह एक मॉडर्न टेक्नीक है, जिसमें ऑपरेट किए जाने वाले ऑर्गन से दूर छोटे चीरे लगाए जाते हैं। इसमें लेप्रोस्कोप नाम के फाइबर ऑप्टिकल केबल सिस्टम के जरिए दूर से ही प्रभावित ऑर्गन को देखा जा सकता है। इस ऑपरेशन का फायदा यह है कि इसमें दर्द और ब्लीडिंग कम होती है और रिकवरी भी जल्दी होती है।