जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली। संसद में कांग्रेस के अलग थलग करने को लेकर न तो मुलायम सिंह यादव सफल हो पाए और न ही मोदी सरकार। आखिरकार मुलायम और सरकार ने कैसे मामले को अपने पाले में मोड़ने की कोशिश की? आइए थोड़ा उसे समझने की कोशिश करते हैं।
सुबह 11 बजे लोकसभा की कार्यवाही शुरू हुई तो प्लेकार्ड के साथ कांग्रेस की नारेबाजी और हंगामा भी शुरू हो गया। इसी बीच में मुलायम सिंह यादव ने उठकर स्पीकर से कहा कि वे बहस के लिए तैयार हैं, ‘लेकिन आप हमें बुलाती नहीं। हम चाहते हैं कि इधर के (कांग्रेस) और उधर के (सरकार) नेता साथ में बैंठे और मसला सुलझाएं।’ इस पर स्पीकर ने कहा कि ‘अगर खड़गे जी बात करने को तैयार हैं तो मैं लोकसभा स्थगित करने को तैयार हूं।’ इसके थोड़ी देर बात लोकसभा को 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
फिर लोकसभा अध्यक्ष के कमरे में मीटिंग शुरू हुई। पहले इसमें सिर्फ मुलायम के अलावा आरजेडी, जेडीयू और टीएमसी के नेता शामिल थे। बाद में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे और ज्योतिरादित्य सिंधिया भी शामिल हुए। स्पीकर के कमरे में आते-जाते दोनों ही समय खड़गे ने पत्रकारों से कहा कि वे सिर्फ पार्टी का पक्ष रखने जा रहे हैं। कांग्रेस की जो शर्त है उसके मुताबिक सरकार अगर चले तो संसद चलेगी। कांग्रेस अपनी बात कह आई। इसके थोड़ी ही देर बाद सरकारी सूत्रों ने जानकारी दी कि मुलायम ने मीटिंग में कांग्रेस को अल्टीमेटम दे दिया है। उसके बाद की खबरों से हम सभी वाकिफ हैं।
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मुलायम जब संसद से बाहर आए तो पत्रकारों ने घेरा। पूछा आपने मीटिंग में क्या बोला। थोड़ा मान मनुहार के बाद मुलायम बोले मैंने वही बोला है जो संसद में बोला। हम चाहते हैं कि संसद चले, बहस हो, सबको अपनी बात रखने का मौका मिले। सुषमा स्वराज भी अपनी बात रखें। फिर उनसे किसी को कोई सवाल करना हो तो करें। मैंने उनसे जानना चाहा कि क्या वे कभी सुषमा स्वराज या बीजेपी के दो मुख्यमंत्रियों के इस्तीफे के पक्ष में थे। उनका कहना था कभी नहीं। कहते भी कैसे। मुलायम सिंह यादव ने सुषमा के इस्तीफे के सवाल पर हम पत्रकारों से बात करते ही तो कहा था कि सब लोग एक महिला के पीछे पड़े हैं। महिलाओं को सौ खून माफ। इतना ही नहीं सपा के ही रामगोपाल यादव समेत कई राज्यसभा सांसद कई बार यह दोहरा चुके हैं कि सपा कांग्रेस के पीछे चलने वाली पार्टी नहीं है। उसका अपना एजेंडा है, वह उस पर चल रही है। बात भी सही है। समाजवादी पार्टी ने जब-जब लोकसभा में वेल में आकर हंगामा किया, उसके सांसदों के हाथों में जातीय जनगणना के आंकड़ों को जारी करने की मांग थी। ऐसी ही मांग की तख़्ती लेकर आरजेडी और जेडीयू के सांसद वेल में आते रहे। ललितगेट और व्यापम के मुद्दे पर यह पार्टियां कभी भी कांग्रेस के साथ नहीं थीं, टीएमसी भी नहीं।
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जब पिछले सोमवार को कांग्रेस के 25 सांसदों को निलंबित किया गया तो टीएमसी ने बीच-बचाव की पूरी कोशिश की। सौगत राय और सुदीप्तो बंदोपाध्याय ने स्पीकर से बार-बार गुज़ारिश की कि इतना कड़ा कदम न उठाएं। जब निलंबन हो गया तो फिर टीएमसी ने भी कांग्रेस के साथ पांच दिनों तक लोकसभा के बहिष्कार का ऐलान किया। मुलायम तब भी कांग्रेस के साथ नहीं आए। मुलायम कांग्रेस के साथ अगले दिन यानि मंगलवार को आए जब वे लोकसभा में स्पीकर से निलंबन वापसी का अनुरोध करने गए, लेकिन स्पीकर ने उनकी मांग को तवज्जो नहीं दिया। फिर मुलायम बाहर निकलकर पत्रकारों से मुखातिब हुए। सबसे एक साथ भी बात की और अलग-अलग भी। वही मुलायम आज की मीटिंग के बाद मीडिया से बात करने को तैयार नहीं हुए।
संदेश साफ है। मुलायम की जब सरकार ने नहीं सुनी तो वे सदन के बहिष्कार पर उतर आए। अगर मुलायम जैसा चाह रहे हैं, कांग्रेस वैसा नहीं कर रही तो वे सरकार के साथ होने का संदेश दे रहे हैं। सरकार को भी मौका मिल गया है विपक्षी पार्टियों में फूट दिखाने का। बीजेपी के हर नेता और सरकार के हर मंत्री इसी बात की दुहाई दे रहे हैं कि कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई है। उधर कांग्रेस के गुलाम नबी आज़ाद राज्यसभा का हवाला देकर कह रहे हैं कि सभी विपक्षी पार्टियों ने एक सुर में कहा है कि सरकार ने गतिरोध तोड़ने के लिए कुछ नहीं किया है। विपक्ष में कोई दरार नहीं।
दरअसल मुलायम सिंह यादव अपनी राजनीतिक चालों के लिए जाने जाते हैं। वे क्या कहते हैं और करते क्या हैं, इसका अंत तक अंदाज़ा कोई नहीं लगा पाता। यही वजह है कि पिछले हफ्ते जहां उन्होंने कांग्रेस के प्रदर्शन में शामिल होने के लिए अपने सांसदों को भी भेज दिया, वहीं आज सरकारी सूत्रों के हवाले से आ रही जानकारी पर तस्वीर साफ करने की जरूरत नहीं समझी। राजनीति में सब कुछ ब्लैक एंड व्हाइट नहीं होता। फंसा कर खेलने वाला ही असल खिलाड़ी होता है।
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