जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली । बहुचर्चित और विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक अब बिहार विधानसभा चुनाव समाप्त होने के बाद ही संसद में आएगा जहां भाजपा नीतीश कुमार सरकार का सफाया करने की उम्मीद लगा रही है । कांग्रेस राजग के इस विधेयक का इस्तेमाल ‘किसान विरोधी’ सरकार की तस्वीर पेश करने में कर रही है। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस द्वारा विधेयक के उपबंधों के अध्ययन के लिए कुछ और समय मांगे जाने के कारण विधेयक की जांच पड़ताल करने वाली संसद की संयुक्त समिति ने आज रिपोर्ट को अंतिम रूप देने के लिए कुछ और समय मांगा है।
संसद के शीत सत्र के पहले सप्ताह तक समिति का कार्यकाल बढ़ाने की मांग करने का फैसला भाजपा और कांग्रेस सदस्यों के बीच तीखे वाकयुद्ध के बाद लिया गया। कांग्रेस ने 1894 के अधिनियम के तहत अधिग्रहित भूमि के मुआवजे संबंधी मामलों को निपटाने में विधेयक के पूर्वप्रभावी उपबंध में किसी भी प्रकार के बदलाव का विरोध किया। इसी 1894 के अधिनियम के स्थान पर 2013 में नया विधेयक लाया गया था जिसे संप्रग सरकार के कार्यकाल में पारित किया गया था।
कुछ उपबंधों का बारीकी से अध्ययन करने के लिए कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों की मांग को स्वीकार करते हुए समिति के अध्यक्ष एस एस अहलूवालिया ने फैसला किया कि समिति 13 अगस्त को समाप्त हो रहे इस मानसून सत्र में अपनी रिपोर्ट दाखिल नहीं करेगी और इसके बजाय शीत सत्र के पहले सप्ताह में रिपोर्ट सौंपेगी।
समिति को इससे पूर्व दिए गए विस्तार में उसे 11 अगस्त तक का समय दिया गया था। कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस सदस्यों की और समय की मांग के बाद अहलूवालिया ने लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन से समिति को एक और सेवा विस्तार देने की अपील करने का फैसला किया क्यांकि वह सर्वसम्मत रिपोर्ट सौंपना चाहते हैं।
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समिति की आज की बैठक में तीन महत्वपूर्ण मुद्दों पर सर्वसम्मति बनने की उम्मीद की जा रही थी जिसमें जमीन का इस्तेमाल पांच साल तक नहीं होने पर उसे उसके मालिक को लौटाने का प्रावधान भी शामिल है। हालांकि केवल पूर्व प्रभावी उपबंध को ही संक्षेप में लिया गया जिसके दौरान कांग्रेस सदस्यों ने संप्रग अधिनियम के प्रावधान 24 (2) में किसी भी बदलाव का आक्रामक तरीके से विरोध किया। इस प्रावधान को राजग के विधेयक में हल्का कर दिया गया है।
समिति के सूत्रों ने बताया कि जब यह कहा गया कि कांग्रेस पार्टी ‘देरी के हथकंडे ’अपना रही है तो पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री और समिति में कांग्रेस के सदस्य जयराम रमेश खफा होकर बैठक से चले गए।
लेकिन बताया जाता है कि अहलूवालिया ने बाद में उन्हें बैठक में लौटने के लिए मना लिया।
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संप्रग सरकार का कानून कहता है कि 1894 का भूमि अधिग्रहण अधिनियम उन मामलों में लागू रहेगा जहां पहले से ही फैसला दिया जा चुका है। लेकिन यदि ऐसा कोई फैसला ‘भूमि अधिग्रहण , पुनर्बसाहट और पुनर्वास: अधिनियम में उचित मुआवजे के अधिकार और निष्पक्षता अधिनियम’ के लागू होने से पांच या उससे अधिक साल पहले हुआ है लेकिन जमीन का अधिग्रहण नहीं हुआ है या मुआवजे का भुगतान नहीं किया गया है तो संप्रग का कानून लागू होगा।
राजग का विधेयक कहता है कि जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया अदालत के स्थगनादेश के कारण रूक जाती है या जहां जमीन का कब्जा लिया गया लेकिन मुआवजा अदालत या किसी खाते में जमा है तो इस प्रक्रिया में लगने वाले समय को गिना नहीं जाएगा।
आज की बैठक में कांग्रेसी सदस्यों ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे धारा 24 (2) में बदलाव के खिलाफ हैं जिसमें सरकार संशोधन करना चाहती है।
धारा 24 (2) पर समिति की 27 जुलाई को हुई बैठक में विस्तार से चर्चा की गयी थी। ऐसा माना जाता है कि सरकार ने तब बैठक में बताया कि दिल्ली , मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, उत्तर प्रदेश , ओडिशा और पश्चिम बंगाल तथा चंडीगढ़ ने अधिनियम की धारा 24 (2) पर आपत्ति जताते हुए इसमें संशोधन की मांग की है।
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इस मुद्दे पर मतभेद उभरने के तुरंत बाद समिति का समय बढ़वाए जाने का फैसला लिया गया इसलिए गैर इस्तेमाल भूमि को लौटाने तथा समीक्षा अवधि जैसे अन्य प्रावधानों पर चर्चा नहीं हो सकी। पिछले सप्ताह समिति ने मोदी सरकार के विधेयक में महत्वपूर्ण बदलावों को सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी थी जिनमें सहमति उपबंध भी शामिल है। सहमति उपबंध संप्रग सरकार के कानून का हिस्सा था।
समिति के सभी 11 भाजपा सांसदों द्वारा संप्रग के भूमि कानून के महत्वपूर्ण प्रावधानों को वापस लाए जाने की मांग करते हुए संशोधन पेश किए जाने के बाद सरकार ने कदम पीछे खींचे। इनमें सहमति उपबंध और सामाजिक प्रभाव आकलन उपबंध भी शामिल था। इस बैठक में मोदी सरकार द्वारा पिछले दिसंबर में किए गए बदलावों को भी हटाया गया जिनके लिए तीन बार अध्यादेअश जारी किया गया था।
सरकार भी समिति की सिफारिशों को स्वीकार करने की इच्छा जाहिर कर चुकी थी जिसने संप्रग सरकार द्वारा लाए गए कानून के कुछ प्रावधानों को हटाए जाने के बाद उन्हें बहाल कर दिया है। लेकिन सरकार का कहना है कि यह कदम पीछे खींचने वाली बात नहीं है क्योंकि वह सर्वसम्मति वाले बदलावों को स्वीकार करने के लिए हमेशा तैयार रही है।
अब समिति द्वारा संसद के शीतकालीन सत्र में रिपोर्ट सौंपने का फैसला करने के बाद सरकार अध्यादेश को फिर से जारी कर सकती है। इस प्रकार यह चौथा अध्यादेश होगा। पहला अध्यादेश पिछले वर्ष दिंसबर में जारी किया गया था।