जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । कर्नाटक के बागी विधायकों पर सुप्रीम कोर्ट कल सुबह साढ़े 10 बजे फैसला सुनाएगा। आज हुई सुनवाई के दौरान सभी पक्षों की दलील सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर फैसला कल सुबह सुनाया जाएगा।
सुनवाई के दौरान बागी 10 विधायकों ने इस्तीफे मंजूर करने की दलील दी। साथ ही अयोग्यता की कार्यवाही का विरोध किया। इस दौरान सीजेआई ने पूछा कि बागी विधायकों के इस्तीफे और अयोग्य ठहराने की तारीख क्या थी। वहीं कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष के आर रमेश कुमार की ओर वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि बागी विधायकों की अयोग्यता और उनके त्यागपत्र के मामले में वह बुधवार तक निर्णय ले लेंगे। साथ ही अध्यक्ष ने न्यायालय से इस मामले में यथास्थिति बनाये रखने के पहले के आदेश में उचित सुधार करने का अनुरोध किया।
बागी विधायकों ने कोर्ट से कहा कि अध्यक्ष ने उन्हें अयोग्य घोषित करने की मंशा के साथ उनके त्यागपत्र लंबित रखे हैं। उन्होंने कहा कि अयोग्यता से बचने के लिये त्यागपत्र देने में कुछ भी गलत नहीं है। बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि अध्यक्ष को इन विधायकों के इस्तीफों पर अपराह्न दो बजे तक निर्णय लेने का निर्देश दिया जा सकता है और वह उनकी अयोग्यता के मसले पर बाद में निर्णय ले सकते हैं। पीठ ने रोहतगी से सवाल किया कि क्या अयोग्यता के बारे में निर्णय लेने के लिए अध्यक्ष की कोई संवैधानिक बाध्यता है जो इन विधायकों के इस्तीफे के बाद शुरू की गई है, रोहतगी ने कहा कि नियमों के अनुसार इस्तीफे पर ‘अभी निर्णय’ लें।
सिंघवी ने विधायकों पर उठाए सवाल
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस अनिरूद्ध बोस की पीठ के समक्ष अध्यक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कोई यह नहीं कह सकता कि अध्यक्ष से गलती नहीं होती लेकिन उन्हें समय सीमा के भीतर मामले का फैसला लेने के लिए नहीं कहा जा सकता। सिंघवी ने पीठ से सवाल किया, ‘अध्यक्ष को यह निर्देश कैसे दिया जा सकता है कि मामले पर एक विशेष तरह से फैलसा लिया जाए? इस तरह का आदेश तो निचली अदालत में भी पारित नहीं किया जाता है।’ उन्होंने कहा कि वैध त्यागपत्र व्यक्तिगत रूप से अध्यक्ष को सौंपना होता है और ये विधायक अध्यक्ष के कार्यालय में इस्तीफे देने के पांच दिन बाद 11 जुलाई को उनके समक्ष पेश हुए।
रोहतगी बोले-बीजेपी ने नहीं रची साजिश
बागी विधायकों की तरफ दलील रखते हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘अध्यक्ष इन्हें लंबित कैसे रख सकते हैं?’ बागी विधायकों ने कहा कि राज्य सरकार अल्पमत में आ गई है और उनके इस्तीफे स्वीकार नहीं करके अध्यक्ष विश्वासमत के दौरान सरकार के पक्ष में मत देने के लिये दबाव बना रहे हैं। रोहतगी ने कहा कि संविधान की 10वीं अनुसूची के तहत अयोग्यता की कार्यवाही संक्षिप्त सुनवाई है और इस्तीफे का मामला अलग है और इन्हें स्वीकार करने का एकमात्र आधार होता है कि ये स्वेच्छा से दिए गए हैं या नहीं। उन्होंने कहा कि ऐसा कोई भी तथ्य नहीं है जिससे यह पता चलता हो कि बीजेपी ने इन बागी विधायकों के साथ मिलकर कोई साजिश की है। रोहतगी ने कहा कि अयोग्यता की कार्यवाही और कुछ नहीं बल्कि बागी विधायकों के इस्तीफों को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास है।
‘कर्नाटक संकट से उबरने का एकमात्र उपाय बागी विधायकों के इस्तीफे हों स्वीकार’
उन्होंने कहा कि अयोग्यता की कार्यवाही सदन में पार्टी के प्रति अनुशासित नहीं रहने के लिए की जाती है न कि सदन के बाहर बैठकों में शामिल होने के लिए। पीठ ने जानना चाहा कि क्या अयोग्य घोषित करने के लिये सारे आवेदनों का आधार एक समान है तो रोहतगी ने कहा कि कुल मिलाकर ऐसा ही है। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष को यह देखना है कि त्यागपत्र स्वेच्छा से दिए गए हैं या नहीं। रोहतगी ने कहा कि कर्नाटक के मौजूदा राजनीतिक संकट से उबरने का एकमात्र उपाय इन बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करना ही है ।
अयोग्यता की कार्यवाही पर भी उठे सवाल
बागी विधायकों की ओर से रोहतगी ने कहा, ‘मैं जो भी करना चाहता हूं, वैसा कर सकूं यह मेरा मौलिक अधिकार है और अध्यक्ष द्वारा मेरा इस्तीफा स्वीकार नहीं किए जाने को लेकर मुझे बाध्य नहीं जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि कर्नाटक विधानसभा में विश्वासमत होना है और बागी विधायकों को इस्तीफा देने के बावजूद विप का पालन करने पर मजबूर होना पड़ सकता है। रोहतगी ने कहा कि 10 विधायकों ने छह जुलाई को इस्तीफा दिया और अयोग्यता की कार्यवाही दो विधायकों के खिलाफ लंबित है।
15 बागी विधायकों ने SC का दरवाजा खटखटाया है
इस पर पीठ ने जब यह पूछा कि ‘आठ विधायकों के खिलाफ अयोग्यता प्रक्रिया कब शुरू हुई?’ रोहतगी ने कहा कि उनके खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही 10 जुलाई को प्रारंभ हुई। बता दें कि कोर्ट में कर्नाटक के राजनीतिक संकट की जड़ बने 15 बागी विधायकों की याचिका पर सुनवाई चल रही है। राज्य के 10 बागी विधायकों के बाद कांग्रेस के पांच अन्य विधायकों ने 13 जुलाई को शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि विधानसभा अध्यक्ष उनके त्यागपत्र स्वीकार नहीं कर रहे हैं। इन विधायकों में आनंद सिंह, के सुधाकर, एन नागराज, मुनिरत्न और रोशन बेग शामिल हैं। शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को विधानसभा अध्यक्ष के आर रमेश कुमार को कांग्रेस और जेडीएस के बागी विधायकों के इस्तीफे और उन्हें अयोग्य घोषित करने के लिये दायर याचिका पर 16 जुलाई तक कोई भी निर्णय लेने से रोक दिया था। इन दस बागी विधायकों में प्रताप गौडा पाटिल, रमेश जारकिहोली, बी बसवाराज, बी सी पाटिल, एस टी सोमशेखर, ए शिवराम हब्बर, महेश कुमाथल्ली, के गोपालैया, ए एच विश्वनाथ और नारायण गौडा शामिल हैं। इन विधायकों के इस्तीफे की वजह से कर्नाटक में एच डी कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार के सामने विधानसभा में बहुमत गंवाने का संकट पैदा हो गया है।
कर्नाटक में 18 जुलाई को विश्वासमत पर चर्चा
इससे पहले बागी विधायकों ने सुप्रीम कोर्ट उनकी याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की थी। ये बागी विधायक मुंबई के एक होटल में रुके हुए हैं। इस बीच कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारमैया ने सोमवार को ऐलान किया कि 18 जुलाई को विधानसभा में विश्वासमत पर चर्चा होगी। सिद्धारमैया ने बताया कि सीएम एचडी कुमारस्वामी ने विधानसभा के अंदर विश्वास प्रस्ताव रखा और 18 जुलाई को इस पर चर्चा होगी।