जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । ‘वंदे मातरम’ गीत को राष्ट्रगान का दर्जा देने की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है। जिसमें देश के सभी स्कूलों में प्रतिदिन वंदे मातरम गाये जाने को अनिवार्य बनाने की मांग भी की गई है। दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डीएन पटेल और न्यायाधीश सी हरिशंकर की बेंच मंगलवार को इस याचिका पर सुनवाई करेगी।
पेशे से वकील भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय ने अपनी इस याचिका में कहा है कि देश की आजादी में वंदे मातरम का अहम योगदान रहा है। हर धर्म, जाति, वर्ग के लोगों ने वंदे मातरम गीत को गाकर देश की आजादी के आन्दोलन में हिस्सा लिया था। लेकिन दुर्भाग्य से देश के आजाद होने के बाद ‘जन गण मन’ को तो पूरा सम्मान दिया गया, लेकिन वंदे मातरम को भुला दिया गया।
राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ की तरह वंदे मातरम को लेकर कोई नियम भी नहीं बनाए गए। इसलिए उन्होंने कोर्ट से मांग की है कि वंदे मातरम को देश का राष्ट्रगान घोषित किया जाए। इसको गाने के लिए नियम बनाए जाएं और देश के सभी बच्चों में देशभक्ति की भावना पैदा करने के लिए प्रतिदिन स्कूलों में इसे गाना अनिवार्य किया जाए।
गौरवशाली है वंदे मातरम का अतीत
आजादी के समय कांग्रेस की सभी बैठकों में वंदे मातरम गाया जाता रहा है। देश के लिए पहला झंडा 1907 में मैडम भीका जी कामा के द्वारा बनाया गया था। इस झंडे में बीच में चक्र के निशान की जगह वंदे मातरम लिखा हुआ था। इसके अलावा लाहौर से वंदे मातरम के नाम से एक अखबार भी प्रकाशित होता था जो आजादी के दीवानों का प्रतीक बन गया था।
देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा की अंतिम बैठक में भी यह बात कही थी कि आजाद हिन्दुस्तान में वंदे मातरम को ‘जन-गण-मन’ की तरह महत्त्व दिया जाएगा। हालांकि, उनकी यह बात अनजाने कारणों से अमल में नहीं आ पाई।