जनजीवन ब्यूरो / नई दिल्ली । लोकसभा में तीन तलाक बिल पर हंगामा मचा हुआ है। एनडीए की सहयोगी जनता दल यूनाइटेड (JDU) और बहुजन समाज पार्टी (BSP) ने जहां बिल का विरोध किया, वहीं शिवसेना इसके समर्थन में खड़ी हुई। तीन तलाक को लेकर सदन में मीनाक्षी लेखी और अखिलेश यादव के बीच तीखी नोकझोंक भी हुई। तीन तलाक बिल पर सरकार का पक्ष रखते हुए केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने शायराना अंदाज में कहा कि यह ऐसा कांटा है, जो हम ही निकाल सकते हैं। नकवी ने कहा कि बिल के विरोध में कुतर्क दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग जेल जाने के प्रावधान का विरोध कर रहे हैं, लेकिन ऐसा काम ही क्यों करें कि जेल काटनी पड़े।
रविशंकर प्रसाद ने कहा कि तीन तलाक पर रोक लगाने संबंधी विधेयक सियासत, धर्म, सम्प्रदाय का प्रश्न नहीं है बल्कि यह नारी के सम्मान और नारी-न्याय का सवाल है। हिन्दुस्तान की बेटियों के अधिकारों की सुरक्षा संबंधी इस पहल का सभी को समर्थन करना चाहिए।
शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के राजीव गांधी सरकार के फैसले का जिक्र करते हुए नकवी ने कहा कि उस दौर की सजा आज तक लोगों को भुगतनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि 1986 की खता की आज तक मुस्लिम महिलाओं को सजा मिल रही है। उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इस सदन ने तीन तलाक बिल पास भी किया। लोकसभा चुनाव के चलते यह बिल फिर लाना पड़ा। यह देश इस बात का गवाह है कि सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह पर रोक जैसी कुप्रथाओं को दूर किया है।’ उन्होंने कहा कि तीन तलाक भी उसी तरह की कुप्रथा है, जो इस पर तर्क दे रहे हैं कि पति जेल चला जाएगा तो घर कौन देखेगा। भाई ऐसा काम ही क्यों करो कि जेल जाना पड़ेगा। यह तो ऐसी बात हुई कि हमने कत्ल किया तो परिवार की देखभाल कौन करेगा। यह तर्क नहीं कुतर्क है।
मीनाक्षी लेखी ने कहा और भड़क गए अखिलेश
एक साथ तीन तलाक की कुप्रथा को खत्म करने की अपील करते हुए मुख्तार अब्बास नकवी ने एक गजल की चार पंक्तियां भी सुनाईं- ‘न हमसफर न हमनशीं से निकलेगा, हमारे पांव का कांटा, हमीं से निकलेगा मेरे जुनूं का नतीजा जरूर निकलेगा, इसी स्याह समंदर से नूर निकलेगा।’
जनवरी 2017 से अब तक सामने आए 574 मामले
चर्चा की शुरुआत करते हुए केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने हाल के कई मामलों का जिक्र करते हुए कहा कि एक साथ तीन तलाक पर रोक और सजा के लिए कानून जरूरी है। उन्होंने कहा कि 2017 में सुप्रीम कोर्ट के इस पर फैसला देने के बाद मुझे लगा था कि मामला सुलझेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। रविशंकर प्रसाद ने मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक को लेकर कहा, ‘जनवरी 2017 से अब तक 574 ऐसे मामले सामने आए हैं।’ एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि निकाह के बाद महज 12 घंटे बाद एक शख्स ने पत्नी को तलाक दे दिया। वजह यह थी कि पत्नी तंबाकू वाला मंजन करती थी। मोबाइल ऑपरेटर पत्नी का अश्लील विडियो बना रहा था, विरोध किया तो तलाक, तलाक, तलाक दे दिया। ऐसी स्थिति में क्या किया जाए।
रविशंकर प्रसाद ने क्या कहा
रविशंकर प्रसाद ने मुस्लिम बहुल मुल्कों का उदाहरण देते हुए कहा कि उन्होंने भी इस तरह की कुप्रथा को समाप्त कर दिया है। उन्होंने कहा कि हम तो सेक्युलर मुल्क हैं। कानून मंत्री विरोधियों पर तीखे तेवर दिखाते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया, लेकिन क्या हम सिर्फ उसे टांग लें। संविधान की दुहाई दी जाती है, उसका मकसद समानता देना है, लेकिन इस मसले में ऐसा क्यों नहीं सोचा जाता।
लेखी बोलीं, निकाह बना मजाक, तलाक, तलाक, तलाक हो गया
बीजेपी सांसद मीनाक्षी लेखी ने कहा कि निकाह निकाह न रहा, मजाक बन गया। तलाक, तलाक, तलाक और तलाक हो गया। कुछ करने की जरूरत नहीं। आपने कहा और खत्म। एक बेबस औरत बच्चों के साथ घर के बाहर। एक औरत क्या सिर्फ बीवी होती है, उसके कोई मां-बाप नहीं हैं। उसका क्या कोई परिवार नहीं है। क्या वह किसी की बहन नहीं है। क्या वह किसी की बेटी नहीं है। जो लोग धर्म के नाम पर साक्ष्य देना चाहते हैं तो मैं उनको बता दूं कि धर्म के प्रति कानून अंधा है।’ इस बीच एसपी प्रमुख अखिलेश यादव ने बीच में टीका टिप्पणी की, जिस पर बीजेपी सांसद अनुराग ठाकुर ने भी कहा कि बीच में टोका-टोकी मत कीजिए, अच्छा संदेश नहीं जा रहा है।
आरएसपी के एन के प्रेमचंद्रन ने विधेयक पर चर्चा और पारित करने के लिए पेश किए जाने का विरोध करते हुए इस संबंध में सरकार द्वारा फरवरी में लाए गए अध्यादेश के खिलाफ सांविधिक संकल्प पेश किया। संकल्प पेश करने वालों में अधीर रंजन चौधरी, शशि थरूर, प्रो. सौगत राय, पी के कुन्हालीकुट्टी और असदुद्दीन ओवैसी भी शामिल हैं।
प्रेमचंद्रन ने कहा कि इस विधेयक को भाजपा सरकार लक्षित एजेंडे के रूप में लाई है । यह राजनीतिक है । इस बारे में अध्यादेश लाने की इतनी जरूरत क्यों पड़ी । उन्होंने यह भी कहा कि इस बारे में उच्चतम न्यायालय का फैसला 3:2 के आधार पर आया।