जनजीवन ब्यूरो
नई दिल्ली। स्वच्छ भारत, जनधन योजना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शिशु मृत्यु दर को समाप्त करने के लिए इस माह अपनी रणनीति की घोषणा कर सकते हैं। माना जा रहा है कि 27 व 28 अगस्त को आयोजित होने वाले दो दिवसीय सम्मेलन में मोदी इसका खुलासा करेंगे। इसी बावत केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधिकारी कॉल टू एक्शन सम्मेलन को लेकर मंथन कर रहे हैं और वास्तविक हालात को लेकर चिंता जता रहे हैं । मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव सी.के.मिश्रा ने संवाददाताओं को बताया कि पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम की तरह शिशु मृत्यु दर कम करने में सरकार निजी भागीदारों की मदद ले सकती है साथ ही कॉरपोरेट घराने को शामिल कर सकती है । देश के नौ ऐसे राज्य हैं जो शिशु मृत्यु दर के मामले में पूरे देश की छवि खराब कर रहे हैं।
वर्ष 2000 में केंद्र सरकार ने पाच साल से कम उम्र के शिशुओं की मौत को कम करने के लिए मिलिनियम विकास लक्ष्य यानी एमजीडी 2015 तय किया गया था। यानी प्रत्येक 1000 बच्चों में से 26 बच्चों की मौत पर लाना था। तय समय समाप्त होने में अब मात्र चार माह ही बचे हैं और वर्तमान में भारत में प्रत्येक 1000 बच्चों में से 42 बच्चों की मौत हो जाती है। ऐसे में लक्ष्य हासिल करना ना मुमकिन है। बकौल सी.के.मिश्रा भारत, नाइजीरिया, कांगो, पाकिस्तान और इथोपिया पांच ऐसे देश हैं जो शिशु मृत्यु दर को समाप्त करने में मात्र 50 फीसदी ही लक्ष्य हासिल कर सके हैं। जबकि बांगलादेश, मालदीव, नेपाल, लाइबेरिया, टूनिशिया जैसे देश इस मामले में 70 फीसदी से ज्यादा का लक्ष्य हासिल कर चुके हैं।
मंत्रालय के संयुक्त सचिव डॉ.राकेश कुमार के अनुसार केरल, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पंजाब, हिमाचल और पश्चिम बंगाल राज्यों में शिशु मृत्यु दर काफी कम है। केरल व तमिलनाडु में तो देश के औसत आंकडें से भी कम है। जबकि मध्य प्रदेश, ओडीशा, असम, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, बिहार और आंध्र प्रदेश में शिशु मृत्यु दर सबसे ज्यादा है। मध्य प्रदेश में यह आंकड़े सबसे ज्यादा है जहां प्रत्येक 1000 शिशु में से 58 की मौत हो जाती है।
हालात यह है कि शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियो की कई दौर की बातचीत चल रही है। आर.सी.मिश्रा के अनुसार शिमला में इसको लेकर चर्चा की गई और 38 बिंदुओं की पहचान की गई। उलके अनुसार आदिवासी इलाके समेत देश के 184 जिलों की पहचान की गई है जहां बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए चलाए जा रहे अभियान को सही तरीके से नहीं अंजाम नहीं दिया जा रहा है। ऐसे इलाके में खास अभियान चलाने की योजना सरकार की है।